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पेड़ों की सिर्फ पूजा ही नहीं उनसे प्रेम भी करों । - मोरारी बापू जी


संत मुरारी बापू ने जनमानस को दो संकल्प दिलाए। पहला यह है कि वे अपने शहर के पर्यावरण की सुरक्षा व संरक्षण के लिए आगामी 5 अप्रैल को राम नवमीं पर एक-एक पौधा अवश्य लगाएं। कथा में उपस्थित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से उन्होंने कहा कि इस दिन वे जहां कहेंगे, 11 पौधे वे खुद अपने हाथ से रोपेंगे। बापू ने कहा कि वैसे तो भोपाल हरा-भरा और ताल-तलैयों का शहर है, जिसकी सुंदरता कायम रहे, इसके प्रयास होते रहना चाहिए।

- उनका दूसरा संकल्प उन लोगों के लिए था, जो शराब का सेवन करते हैं। उन्होंने कहा कि इसकी बजाए प्रभु नाम का रस पीयो। इसकी खुमारी में जो आनंद है, वह दूसरी वस्तु में नहीं।
-बापू ने स्पष्ट किया कि वे कहते हैं कि विष्णु का दसवां अवतार सद् गुरु हैं, तो जरूरी नहीं कि गुरु कोई व्यक्ति ही हो। वह ग्रंथ के रूप में भी हो सकता है। व्यक्ति पूजा होनी भी नहीं चाहिए। गुरु व्यक्ति नहीं एक अस्तित्व होता है।

-संत बापू ने कहा कि प्रकट हुए परमात्मा ब्रह्मा द्व‌ारा बनाई सृष्टि की उत्पत्ति नहीं हैं। यह उससे भी ऊपर हैं। परमात्मा के बारे में कहा भी गया है कि आप प्रकट भये विधि न बनाए।
-बापू ने भक्तों से कहा कि जिस दिन आपके ह्रदय में राम प्रकट हों, उसी दिन राम नवमी समझ लेना। नर रूप में वे हरि है, पर हैं वे वैष्णव अर्थात अनंत हैं। राम और विष्णु में भेद करना पानी और बर्फ जैसी बात है। पानी जमने पर बर्फ बनता है, पिघलने पर वह फिर पानी बन जाता है। इसलिए राम और विष्णु एक ही हैं। नाम अलग-अलग हैं।

व्यास पीठ संकीर्ण नहीं होती
गुरु महिमा पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि व्यासपीठ राजपीठ की तरह संकीर्ण नहीं होती है। राजपीठ पर बैठने वाला अपने तक सबकों नहीं आने देता, जबकि व्यासपीठ पर बैठे गुरु के लिए सभी समान होते हैं। गुरु का ह्रदय विशाल होता है। उन्होंने कहा कि किसी को गुरु की तलाश में भटकना नहीं चाहिए। जो आपको रास आए, उसे अपना इष्ट बना लें। वे राम-कृष्ण, हनुमान और यहां तक कि राम चरित मानस तक हो सकती है। मानस एक ऐसा ग्रंथ है, जिसे घर में रखेंगे, तो वह गुरु की तरह आपके घर की सुरक्षा करेगा।

प्रकृति के सुख की भावना रखें
संत बापू ने सर्वजन हिताय सर्व जन सुखाय की जगह सर्व भूतो हिताय, सर्व भूतो सुखाय कहने की बात कहीं। उन्होंने कहा कि हमारा कर्तव्य है कि हम केवल जन हित या जन के सुख की ही बात नहीं करें, बल्कि, पेड़-पौधे, नदी, पहाड़, पशु, पक्षी अर्थात प्रकृति का हित हो, ऐसे कार्य करें। ऐसी भावना हमारे मन में होनी चाहिए। प्रकृति सुखी रहेगी, तो ही हम भी सुखी रह सकेंगे।
पेड़ों की केवल पूजा न करें, प्रेम भी करें
उन्होंने कहा कि सार्थकता पेड़ों की पूजा भर करने में नहीं है, बल्कि उनसे प्रेम करने में है। हम जिससे प्रेम करते हैं, उसे कष्ट नहीं पहुंचाते हैं। पेड़ों से प्रेम करेंगे, तो फिर हम उसे काटेंगे भी नहीं। बापू ने सभी से कहा कि वे राम नवमीं पर एक-एक पौधा रोपें। राम नवमीं पौधे रोप कर मनाई जाए, तो बेहतर होगा। वे स्वयं भी इस दिन पौधे रोपेंगे। संत बापू ने कहा कि हम सूरज वे पेड़ पौधों की तरह कर्मवादी बनें। सूरज और पेड़ बगैर आलस्य किए, बगैर अवकाश लिए रोज अपना काम करते हैं, उसी तरह हम अपना काम करते रहें।

बापू ने जीवन से जुड़ी तमाम समस्याओं को सुलझाने को तौर-तरीके भी बताए। उन्होंने ये सीख दीं-
कोई भी वस्तु लें, तो देने वाले के प्रति आभार प्रकट जरूर करें।
अच्छी बातों का अभिमान करें, तो चलेगा, पर पाखंड से बचें।
सूर्य की तरह बनें। वह रात्रि का नाश करने नहीं, सबको रोशनी देने आता है।
मुखरता दोष से बचें। अर्थात बड़बोले न बनें।
कृष्ण की तरह कर्मयोगी बनो। कर्म को प्रधानता दो। राम की तरह मर्यादित रहो।

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