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‘मेरे लिए प्रत्येक कथा एक प्रयोग है। मैं इसे प्रेम यज्ञ कहता हूं - बापू


लाल परेड ग्राउंड स्थित मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में पहले दिन बापू ने कहा- ‘मेरे लिए प्रत्येक कथा एक प्रयोग है। मैं इसे प्रेम यज्ञ कहता हूं। मैं मानस के माध्यम से एक प्रयोग कर रहा हूं। जो परिवार इसके निमित्त बनते हैं मानस में उन्हें उपकारी कहा गया है।’ पहले दिन मानस के आधार पर विष्णु की मंत्रमुग्ध कर देने वाली व्याख्या की, जिसमें उन्होंने जटिल जीवन के सरल सूत्र प्रस्तुत किए

1. जीवन में एक गुरु तो चाहिए, जो आपका दीप प्रज्ज्वलित करके अलग हो जाए। आत्मज्योति के लिए एक मार्गदर्शक, जो मुक्ति में सहायक हो।
2. धन कमाने की मनाही नहीं है। दोनों हाथों से कमाओ। मगर उसे चार हाथ से बांटो भी। विष्णु के चार हाथ इसी संदेश के प्रतीक हैं।
3. किसी को देखने मात्र से कोई नतीजा न निकालो कि यह काला है, गोरा है, भला है, बुरा है। वह वैसा ही है, जैसी उसकी श्रद्धा।
4. लंबी जिंदगी जीकर भी हम पूज्य नहीं हो पाते। मरने के तुरंत बाद बन जाते हैं। जो मृत्यु को, जहर को स्वीकार ले वही पूज्य। इसीलिए शंकर और जीसस पूज्य हैं।
5. हिंदू परंपरा में धर्म की व्याख्या में आकाश से तुलना की गई है। जिसकी दृष्टि संकीर्ण न हो, विशाल हो। जो सबको समाहित करे, वही सच्चा धर्म।

मातृवंदना से आरंभ होता है तुलसी का शास्त्र
तुलसी को नारी-निंदक मानने वाले ध्यान दें कि तुलसी का शास्त्र मातृवंदना से आरंभ होता है। सरस्वती की वंदना पहले है, गणेश की बाद में। शंकर से पहले भवानी की स्तुति है। राम के पहले सीता का गुणगान है। मैं इस कथा के लिए विष्णु काे लूंंगा, जिनके 24 अवतार माने गए। ब्रह्मा युगों में कभी-कभी किसी रूप में आए। शिव की अवतार परंपरा नहीं है। विष्णु माने व्यापक। कोई दीवार नहीं। कोई संकीर्णता नहीं।

विष्णु की प्रसिद्ध प्रार्थना में इन लक्षणों की चर्चा है- शांताकारम्, भुजगशयनम, पद्मनाभम्, सुरेशम्, विश्वाधारम्, गगनसदृश्यम्, मेघवर्णम्, शुभांगम्...। जगत में जिसमें ये 10 लक्षण दिखें, वह कोई भी हो, किसी भी धर्म और क्षेत्र का हो, उसे विष्णु के भाव से ही स्वीकार करना चाहिए। जो सर्प की शय्या पर भी शांत हो, जो हर पल को प्रसन्नता से व्यतीत करे, जो जीवंत हो, जो दिव्यता का शिरोमणि हो, जो आकाश की तरह व्यापक हो, जो मेघ के वर्ण का हो, जो लक्ष्मी का दास नहीं स्वामी हो...ऐसे विष्णु हमारे भय का निर्मूलन कर देते हैं। वे समस्त लोक के नाथ हैं। 14 ब्रह्मांडों के अधिपति हैं। जो शांत हो। उग्र और व्यग्र न हो।

इस जगत की अशांति में अगर कोई शांत बना रहे तो समझो विष्णु का एक अंश उसने जाग्रत कर लिया। गांधी ने कहा कि जो रामायण, महाभारत को नहीं जानता, उसे हिंदुस्तानी कहने का अधिकार नहीं। मेरी कथा धर्मशाला नहीं, प्रयोगशाला है। यह प्रयोग है, नारेबाजी नहीं। यह साधना शिविर है। यहां दायरों में बंधे किसी मजहब की नहीं, आकाश की चर्चा है, जिसमें सब समा जाते हैं।

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