प्रधानमंत्री श्री मोदी ने मन की बात में महत्वपूर्ण बात छेड़ी
संदीप कुलश्रेष्ठ
इस रविवार मन की बात में देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक महत्वपूर्ण बात उठाई हैं। उन्होंने अपनी पसंदीदा मन की बात में आम लोगों से खाने की बर्बादी रोकने की अपील की हैं। उन्होंने देश के सवा सौ करोड लोगों से इसका संकल्प लेने का आव्हान भी किया हैं।
आइए , हम देखते हैं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जो बात छेडी हैं ,उसके मायने क्या हैं ? प्रति दिन और वर्श भर में हम कितना खाना बर्बाद करते हैं। उसके बारे में एक सर्वे के अनुसार एक दिन में हम देश भर में 137 करोड़ रूपये का खाना बर्बाद कर देते हैं। खाद्यान बर्बादी में हम दुनिया में सातवें नंबर पर हैं। देश में हर साल 670 लाख टन खाना हम बरबाद कर देते है। विश्व में भूखमरी सूचंकांक में हम 97 स्थान पर है । हमारे देश की कुल 118 देशां में यह शर्मनाक स्थिति हैं।
आश्चर्य की बात यह हैं कि ऐसा उस देश में हो रहा हैं , जहाँ 6 हजार बच्चे रोज कुपोषण के शिकार होते हैं । एक और बात , हमारे देश में 50 हजार करेड़ रूपये का खाद्यान हर साल भंडारण के अभाव में नश्ट हो जाता हैं। यह देश के कुल खाद्यान उत्पादन का करीब 40 प्रतिशत हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 23 करेड टन दाल, 12 करेड़ टन फल और 21 करेड़ टन सब्जियां खराब हो जाती हैं। ब्रिटेन के सालाना अनाज उत्पादन के बराबर का अनाज हम यूं ही बरबाद कर देते है।
खाना बर्बाद नहीं हो , इसके लिए देश में सबसे पहले जम्मू कश्मीर राज्य ने हाल ही में एक कानून बनाया हैं। वहां सरकार शादियों में खाने की बर्बादी को रोकने के लिए कानून बना चुकी हैं। इसमें हर शादी में मीनू और खाने की मात्रा तय कर दी गई हैं । कांग्रेस की सांसद सुश्री रंजीत रंजन ने खाने की बर्बादी रोकने के लिए संसद में एक बिल भी प्रस्तुत किया हैं। अब संसद को चाहिए कि वह इसे मंजूर करें और देश भर में खाने की बर्बादी रोकने के लिए नियम भी बनाए।
एक सर्वे में दावा किया गया हैं कि अकेले बैंगलुरू में एक साल में होने वाली शादियों में ही 943 टन पका खाना फेंक दिया जाता हैं। इससे ढ़ाई करोड़ लोगों को एक समय का खाना दिया जा सकता हैं। कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट यह कहती हैं कि जितना खाना हम एक साल में बरबाद कर देते हैं , ब्रिटेन तो उतना उगा भी नहीं पाता है।
एक चौंकाने वाला आंकडा यह भी हैं कि जो भोजन हमारे देश में बरबाद हो जाता हैं। उसे उत्पन्न करने में 230 क्यूसेक पानी खर्च हो जाता हैं। इस पानी से 10 करेड़ लोगों की प्यास बुझाई जा सकती हैं। भोजन के अपव्यय से ही बरबाद होने वाली राशि को बचाकर पांच करेड़ बच्चों की जिंदगियां संवारी जा सकती हैं।
स्ंयुक्त राष्ट्र की फूड एजेंसी की एक रिपोर्ट कहती हैं कि हर साल दुनियाभर में करीब 1300 करेड़ क्विंटल खाना किसी न किसी कारण बरबाद हो जाता हैं। जबकि हालात यह हैं कि दुनिया में 8 में से 1 व्यक्ति के पास पर्याप्त खाना नहीं हैं। पांच साल पहले विष्व में अनाज की बढी कीमतों के कारण 12 दंगे हो गए थें। इस कारण संयुक्त राष्ट्र को खाद्यान्न संकट पर एक सम्मेलन भी बुलाना पडा था। दुनिया में रोज 24 हजार लोग किसी जानलेवा बीमारी से नहीं, बल्कि भूख से दम तोडते हैं। इस संख्या का करीब 1 तिहाई हिस्सा भारत के हिस्से में आता हैं । रोज भूख से मरने वाले इन 24 हजार में से 18 हजार तो केवल बच्चे ही हैं। इनमें से 6 हजार बच्चे भारतीय हैं।
आईये, अब देखते है मध्यप्रदेश के हालात । प्रदेश के सरकारी गोडाउन में पिछले दो साल में ही 54 लाख टन गेंहू और 103 लाख टन चावल खराब हुए हैं। प्रदेश के सरकारी गोदामों में 3800 करोड़ रूपये का अनाज सड़ गया । प्रदेश में अनाज के भंडारण की स्थिति बेहद गंभीर हैं। यह आंकडे उस प्रदेश के हैं, जहां अनाज की जबरजस्त पैदावार के लिए मध्यप्रदेश सरकार को चार बार कृषि कर्मण अवार्ड मिल चुका हैं। बीते दो साल में प्रदेश में सरकारी गेदामों में 157 लाख टन अनाज सड़ गया। इस अनाज की अनुमानित कीमत ही 3800 करेड़ रूपये हैं। यह खुलासा केंद्रीय उपभोक्ता मामले , खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी की गई रिपोर्ट में हुआ हैं। इसे संसद में पेश किया गया हैं। उल्लेखनीय हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने सन 2010 में केंद्र और राज्य सरकार को आदेश देते हुए कहा कि सडने से बेहतर हैं , अनाज गरीबों में बांट दिया जाए। हालांकि किसी भी राज्य ने ऐसा नहीं किया।
देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की इस अपील को देश के सभी राज्यों को ही नहीं बल्कि आम लोगों को भी गंभीरता से लेने की आवश्यकता हैं। हम सबकों घरों में , होटलों में और पार्टियों में खाद्यान का अपव्यव रोकने के लिए प्रयास करना चाहिए। घर ,होटल और पाटियों में बचे खाने को फेंकने के बजाय इसे रास्ते में , सड़क किनारे , झुग्गियों में रहने वाले बच्चों और उनके गरीब घर वालों में बांटा जा सकता हैं। इसके लिए अब हम सबको आगे आने की आवश्यकता हैं।
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