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मुनिश्री समतासागरजी महाराज ससंघ का हुआ धर्मध्वजा के साथ मंगल प्रवेश


 

उज्जैन। विद्यासागरजी महाराज के परम शिष्य मुनिश्री समतासागरजी महाराज ससंघ का मंगल प्रवेश सोमवार प्रातः महावीर दिगंबर जैन मंदिर लक्ष्मीनगर पर हुआ। पंचायती दिगंबर जैन मंदिर की पाठशाला के बच्चों ने सुमधुर बैंड की धुन छेड़कर मुनिश्री की अगवानी की। वहीं धर्मध्वजा और अन्य बैंडों के साथ मुनिश्री का मंगल प्रवेश हुआ।

राष्ट्रीय जैन मीडिया के अध्यक्ष सचिन कासलीवाल ने बताया कि शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर लक्ष्मीनगर होता हुआ जुलूस पाश्र्वनाथ पंचायती दिगंबर जैन मंदिर पहुंचा। जहां मुनिश्री ने संपूर्ण मंदिरों के दर्शन किये एवं धर्मसभा को संबोधित किया। प्रवचन के पूर्व श्रीजी के समक्ष चित्र अनावरण एवं दीप प्रज्जवलन सामाजिक संसद के अध्यक्ष नवनिर्वाचित अध्यक्ष अशोक जैनचायवाला, पंचायती दिगंबर जैन मंदिर के ट्रस्टी सुगनचंद सेठी, कैलाश दादा, नरेन्द्र डोसी, शरद जैन, निर्मल सोनी ने किया। सुनील जैन ट्रांसपोर्ट, कमल जैन, इंदरचंद जैन, महेन्द्र लुहाड़िया, शैलेन्द्र जायसवाल, शैलेन्द्र शाह, महेश जैन, अवतंश जैन, नितीन डोसी, संजय दादा, अनिल बुखारिया, सुनील कासलीवाल सहित सैकड़ों लोगों ने मुनिश्री को श्रीफल समर्पित किया। मंच संचालन करते हुए धर्मेन्द्र सेठी ने कहा कि मुनिश्री के चातुर्मास के लिए पहले भी प्रयास किये लेकिन वे नहीं आ पाए लेकिन अब हमें सौभाग्य मिला है। खातेगाव तथा हाटपिपलिया सहित अन्य स्थानों से भी लोग मुनिश्री के साथ पैदल विहार करते हुए उज्जैन पहुंचे। मुनिश्री ने कहा कि दुर्लभ व्यक्ति को ही विशेष वस्तुएं मिलती हैं। मान, प्रतिष्ठा, इज्जत, सम्मान, धन, व्यापार आदि सभी कई प्रकार की विशेष वस्तुएं बड़े सौभाग्य के बाद प्राप्त होती है। धर्म में दो प्रकार की विशेष दुर्लभ वस्तुएं होती हैं, अपने को पहचानना और अपने आप को पाना। अपने को पहचानने से तात्पर्य जिन शासन में अपने आप को पहचानकर सद्मार्ग पर चलना सबसे दुर्लभ होता है। अपने आप को पाना ही सर्वश्रेष्ठ दुर्लभ होता है जो हमें भगवान बनने के मार्ग पर ले जाता है। मुनिश्री ने उज्जैन के बारे में कहा कि आपको खुशी इस बात की है कि यहां दिगंबर मुनि आए हैं जो धर्म की गंगा बहाएंगे लेकिन मुझे खुशी इस बात की है कि मैं उज्जैन आया हूं। उज्जैन की यह नगरी अति प्राचीन है जिसका सभी ग्रंथों में उल्लेख है, जहां महावीर ने तप किया है।

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