जीव हत्या और आत्महत्या सबसे बड़ा पाप- उमाकांत महाराज
उज्जैन। जीव हत्या के कारण प्राणी अपने निर्धारित समय से पूर्व अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। जहां उसे प्रेत के शरीर में रहना पड़ता है और प्रेतों का मुंह सूई जैसे और पेट हाथी के समान होता है जिस कारण जीवों को बेहद पीड़ा उठानी पड़ती है। इस हत्या की बहुत बड़ी सजा मनुष्य को मिलती है इसलिए हमारे धर्मग्रंथों में जीव हत्या को सबसे बड़ा पाप बताया गया है। अतः मनुष्य को जीव हत्या नहीं करनी चाहिये। सुख-दुख लोगों के कर्मों के अनुसार आता है इसलिए मानव को दुनिया में किये गये कर्मों का लेन देन समझ के काट लेना चाहिये, परेशान होने पर आत्महत्या नहीं करनी चाहिये। संत सतगुरू की शरण में पूरे विश्वास के साथ जाना चाहिये वो समर्थ होते हैं और अपनी दया से मानव की तकलीफों को खत्म या कम कर देते हैं। ये मानव शरीर भगवान, खुदा की इबादत और पूजा के लिये मिला है इसलिए नशे का सेवन कभी मत करना जिससे दिल, दिमाग काम करना बंद कर दे और मां, बहन, बहू, बेटी की पहचान आंखों से खत्म हो जाए।
उक्त संदेश बाबा जयगुरूदेव महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी बाबा उमाकांत महाराज ने होली पर्व के प्रथम दिन शनिवार को पिंगलेश्वर स्थित आश्रम पर आयोजित सत्संग में कही। महाराजजी ने सत्संग में बताया कि जीवन में सुख, शांति प्राप्त करने के लिए अंडा, मांस, मछली, शराब का सेवन एवं मां, बहन, बहू, बेटी के साथ बुरे कर्म नहीं करने चाहिये। महाराजजी ने सभी भक्तों को ईश्वर प्राप्ति का रास्ता अर्थात नामदान भी दिया। बाबा जय गुरूदेव धर्म विकास संस्था के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी सुनील कौशिक ने बताया कि इस होली पर्व पर आश्रम पर उमाकांत महाराज के सानिध्य में भक्तगण भक्ति के रंग से सराबोर हो रहे हैं। 13 मार्च तक प्रतिदिन सुबह 5.30 बजे और शाम 5 बजे सत्संग और नामदान देंगे। आने वाले भक्तों को दर्शन और उनकी समस्याओं का समाधान भी करेंगे।