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बैंक किसानों का कर्जा माफ करें



डॉ. चंदर सोनाने
 
               देश के सरकारी बैंको का नॉन परफार्मिंग एसेट्स यानी एन पी ए रिकार्ड 6 लाख 80 हजार करेड के पार पहुंच गया हैं। आश्चर्य की बात इसमें यह हैं कि इसमें से 70 प्रतिशत हिस्सेदारी कॉर्पोरेट घरानों की हैं। जबकि किसानों का हिस्सा केवल एक प्रतिशत ही हैं। 
            बडे उद्योग घराने के बडे लोग देश के सरकारी बैंको से कर्जा ले लेते हैं। किंतु बाद में उसे नहीं चुकाते हैं । इस कारण बैंके उनके कर्जे को एनपीए में डाल देती हैं। एक तरह से उनके कर्जे की वसूली बैंक नही ं करती हैं । जबकि जिन किसानों ने सरकारी बैंको से कर्जा लिया है, उनमें से कर्जा नहीं चुकाने वालों की संख्या केवल एक प्रतिशत है। बैंके बडे औद्योगिक घरानों से तो वसूली नहीं करती हैं। किंतु किसानो से वसूली के लिए उनके घर जाकर उनके घर के घरेलू सामान तक उठा लाती हैं। 
           एन पी ए में पिछले वर्श लगभग साढे छप्पन प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली हैं। यह रिपोर्ट केयर रेटिंग्स नामक ऐजेंसी के विश्लेषण से प्राप्त हुई हैं। सरकारी बैंकों द्वारा दिए गए कुल खर्चे का 11 प्रतिशत हिस्सा अब एन पी ए हो चुका हैं। यानी बैंको द्वारा दिए गए कुल कर्ज में से 11 प्रतिशत डुबते कर्ज हैं। यह एक बहुत बडा आंकड़ा हैं । इस पर ध्यान देने की जरूरत हैं। यह पुरा पैसा वह हैं जो कॉर्पोरेट घराने बैंक से कर्ज लेकर चुका नहीं रहे हैं।  
          किसानों द्वारा बैंको से लिए गए कर्ज की वसूली किस तरह से की जाती हैं ,  उसका एक उदाहरण हाल ही में देखने मे आया हैं। उज्जैन तहसील के तहसीलदार ने 248 किसानों और युवाओं को 85 लाख रूपये जमा करने का आदेश देते हुए नोटिस जारी किया हैं। इस नोटिस में उनसे कहा गया हैं कि राशि नही जमा करने पर उनकी चल अचल संपत्ति कुर्क की जाएगी। यानी किसानों से उनकी जमीन जब्त कर उसे नीलाम कर दिया जाएगा। ऐसा पूर्व में भी हो चुका हैं। किसानों की जमीन नीलाम कर दी गई हैं। अब किसान, किसान न होकर मजदूर हो गए हैं। ऐक और उदाहरण देखने में आया हैं, बिजली विभाग ने अपने बकाया बिजली बिलो की वसूली नहीं होने पर किसानो ंसे उनकी 50-60 मोटरसाईकिले जब्त कर ली हैं।  अब उसे नीलाम करने की कारवाई की जा रही हैं । ये मात्र कुछ उदाहरण हैं। मध्यप्रदेश के हर जिले में इसकी बानगी सहज ही देखी जा सकती हैं। 
           पांच साल में किसानों की आय दोगुनी करने के दावों के बीच किसानों की बदहाली की एक बेहद दुखद तस्वीर भी सामने आई हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने खुलासा किया हैं कि वर्ष 2015 में देश में कुल 8007 किसानों ने आत्महत्या की हैं। जो वर्ष 2014 में आत्महत्या करने वाले 5650 किसानों की तुलना में 42 फीसदी अधिक हैं। यह अत्यंत दुखद स्थिति हैं। यहां हमें यह ध्यान देने की जरूरत हैं कि भारत का किसान गरीब जरूर हैं , किंतु वह मेहनती और ईमानदार हैं। फसल नहीं होने या कर्ज में डुबे होने के कारण हताष होकर ही वह आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर होता हैं। 
              बडे औद्योगिक घराने जब बैंको से कर्जा लेते हैं और नहीं चुकाने पर उनके द्वारा लिया गया कर्जा बैंक द्वारा डूबत खाते में डाल दिया जाता हैं । बैंक बडे उद्योग घराने के विरूद्ध कुछ भी कारवाई नहीं करती हैं। यहाँ तक कि बैंक बडे कर्जदारों के नाम  पेपर में छापने के लिए भी नहीं देता हैं। उसे छिपाकर रखता हैं। दूसरी तरफ किसानों की सरेआम बेइज्जती की जाती हैं। कर्ज नहीं चुकाने पर उनकी चल अचल संपत्ति जब्त कर ली जाती हैं। किसानों से उसकी रोजी रोटी देने वाली खेती छीन ली जाती हैं। यह दो तरफा नीति सरकार की हैं। इसे तुरंत बद होना चाहिए। यदि बडे औद्योगिक घरानों से बैंक वसूली नहीं कर पाती हैं तो फिर किसानों की सरेआम बेइज्जती क्यों की जाती हैं ? 70 प्रतिशत कर्जा औद्योगिक घराने ने लेकर उसे डूबते खाते में डाल दिया हैं। जबकि किसानों का कर्जा केवल एक प्रतिशत हैं। इसलिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से अपेक्षा हैं कि वे किसानों का कर्ज माफ करें , ताकि वे अपनी खेती पर मेहनत कर अपनी रोजी रोटी कमा सकें। यदि किसान खुश रहेगा तो देश खुश रहेगा । यह केंद्र सरकार को सोचना चाहिए । और तुरंत इस पर अमल करना चाहिए।
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