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तप से मिट जाता है दुर्भाग्य, वाणी ही मनुष्य का आभूषण है। - सुधांशु जी महाराज


भोपाल। आचार्य सुधांशु महाराज ने कहा कि सेवा बहुत बहुत बड़ा तप है। निस्वार्थ भाव से सेवा का तप करने से र्दुभाग्य की रेखाएं तक मिट जाती हैं। इसलिए दीन,दुखी,बुजुर्ग,माता-पिता की सेवा करने का अवसर कभी मत छोड़ना।

संतश्री रविवार को लाल परेड मैदान में आयोजित चार दिनी विराट सत्संग के चौथे दिन धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमेशा दूसरे का भला करोगे,तो आपका भला तो अपने आप हो जाएगा। जीवन में जितना श्वांस का महत्व है,उतना विश्वास का भी। इसलिए कभी किसी का विश्वास नहीं तोड़ना। आस(आशा) और विश्वास कभी नहीं छोड़ना चाहिए। दृढ़ विश्वास के साथ कर्म करते रहिए। अपनी खुशी पर अपने ऊपर निर्भर करना,कभी भी दूसरों की खुशी पर निर्मर नहीं रहना। साथ ही खुशी मनाने के लिए कभी कल का इंतजार नहीं करना,क्योंकि कल हो न हो।

वाणी ही व्यक्ति का आभूषण है
आचार्यश्री ने कहा कि पूज्य भृतहरिजी ने कहा है कि कोई भी व्यक्ति आभूषण पहनने भर से सुंदर नहीं हो जाता है। इंसान की वाणी ही उसका आभूषण है। इसलिए हमें हमेशा मुधुर वाणी का प्रयोग करना चाहिए। जितने भी बड़े युद्ध हुए हैं,सब कटाक्ष करने के कारण हुए हैं। इसलिए सोच संभल कर ही बोलना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेडिकल साइंस कहता है,कि शरीर में सिर्फ जीभ ही ऐसा अंग है,जिसपर लगा घाव सबसे जल्दी भरता है। लेकिन जीभ जो घाव देती है,उसका घाव जीवन भर नहीं भरता है। हमेशा अच्छे वचन बोलना वाणी का तप है।

अपनी परंपरा को भूलकर हम शक्तिहीन होते जा रहे हैं
सुधांशुजी ने कहा कि उतार-चढ़ाव भरे जीवन में हम सभी को शक्ति और सहारे की जरूरत होती है। सहारा तो परमात्मा देता है,लेकिन शक्ति हमें खुद अर्जित करना पड़ती है। इसके प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्ति को जागृत करने का प्रयास करना चाहिए। तपस्वी,साधक,सिद्धों के देश में रहने के बाद भी अपनी साधना,भक्ति को भूल गए हैं। दरअसल हम अपनी परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं।

आनंद परमपिता परमात्मा का स्वरूप है
सुधांशुजी ने कहा कि परमपिता परमात्मा का स्वरूप ही आनंद है। आनंद को प्राप्त करना हमारा कर्तव्य है। भगवान को हम अक्षत भेंट करते हैं। यह अक्षत हमारे मन का प्रतीक है। अतः भक्ति करते समय खंडित मन समर्पित नहीं करें। परमात्मा को अखंड मन अर्पण कर हम अखंड सौभाग्य प्राप्त कर सकते हैं। सफलताओं के बावजूद यदि हम आनंद को महसूस नहीं कर सके,तो सफलता निरर्थक है। हम आत्मा के जितने करीब जाएंगे,उतना ही आनंद हमें सहज ही प्राप्त होगा। सायंकालीन प्रवचन में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर,एमपी उपाध्याय,सुभाष बचकैंया,सतीश विश्वकर्मा,अजय श्रीवास्तव नीलू,वासुदेव भादे आदि उपस्थित थे।

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