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भगवान शिव किस भांग का नशा करते थे?



(सारा जहां है जिसकी शरण में, नमन है उस शिव के चरण में, बने उस शिव के चरणों की धूल, आओ मिल के चड़ाए हम श्रद्धा के फूल)
(महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ)
(महाशिवरात्रि पर्व हमे आंतरिक भक्ति की प्रेरणा देता है)
महाशिवरात्रि - फाल्गुन के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी की अंधकारमय रात! ग्रन्थ और मनीषी बताते है कियह रात साधारण नहीं, विशेषातिविशेष है| इस पावन (विशेष) दिवस पर शिव उपासक उनकी अर्चना-अराधना करते है|“हर -हर महादेव! जय शिवशंकर!बम-बम भोले!“के जयघोष से सम्पूर्ण वातावरण गूँजउठता है| महादेव की मूरत या लिंग का पूजन किया जाता है|शिव उपासना का यह ढंग “कौलाचार” कहलाता है| परन्तु महापुरुष समझाते है कि शिव का वास्तविक पूजन तो अंतर्जगत में संपन्न होता है, जिसे शैव ग्रंथो में “समयाचार” कहा जाता है | इसमें आत्मा (समय) आचार अर्थात आराधना करती है | वास्तव में महाशिवरात्रि  का पर्वहर वर्ष इसी “आंतरिक पूजन” की प्रेरणा देता है|आचार्य शंकर ने भी अपनी वाणी में यही उद्घोष किया - “न रीते ज्ञानेन मुक्ति:” - भाव आत्मा के ज्ञान के बिना मुक्ति संभव नहीं, और ऐसे ज्ञान को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को पूर्ण गुरु की शरण में जाना होगा |
जब मनुष्य के जीवन में पूर्ण गुरु आते है तो वह उसकी आत्मा का मिलाप “शिव” रूपी परमात्मा से करवाते है | महाशिवरात्रि “शिव” (परमात्मा) और भक्ति (आत्मा) के मिलन की रात है | स्वयं शिव जी अपने वचनों में कहते है -
“शिवपूजारतो वापि विष्णु पूजारतोsथवा |
गुरुतत्वविहीनशचेतत्व्सर्वं व्यर्थमेव हि ||”

अर्थात शिव की पूजा में रत हो या विष्णु की पूजा में रत हो, परन्तु यदि गुरु तत्व के ज्ञान से रहित हो, तो वह पूजा सब व्यर्थ है |
लोगों की धारणा है कि भगवान शिव भांग का नशा किया करते है, परन्तु यह कथन अनुचित है! बल्कि भगवान शिव किसी बाहरी भांग या धतूरे का नशा नहीं करते, वे तो परमात्मा के आलौकिक नाम के नशे में सदा आनंदित रहते हैं! केवल शब्दों में हीनहीं, भगवान शिव ने तो अपने स्वरुप व श्रृंगार तक के द्वारा मानवजाति को यही उपदेश दिया| कितना विचित्र स्वरुप है, भोले बाबा का! भृकुटी में तीसरा नेत्र है! मस्तक परचन्द्रमा सुशोभित है| जटाओं में गंगा बह रही है| समीप ही एक त्रिशूल खड़ा है! उस पर एक डमरू बंधा है! कैसे अद्भुत श्रृंगार से परिपूर्ण हैं शिव!भला कोई जटाजूट में चंद्रमा धारण करता है? इन सबके पीछे अध्यात्मिक रहस्य है जो समाज को समझाना चाहते है कि जब एक जिज्ञासु सतगुरु के सान्निध्य में जाता है, शिव रुपी गुरु उसे तत्व ज्ञान द्वारा शिव नेत्र प्रदान करते है जिसके द्वारा वह अपने भीतर उस परमात्मा का दर्शन करता है! 
तत्व ज्ञान को जानकार ही भगवान शिव का सही तरह से अनुकरण किया जाता हैं! शिवरात्रि पर्व पर उनकी सच्ची भक्ति व उनका परम सम्मान करते हैं!
अत: भगवान शिव को समझने व उनके पर्व को सही तौर पर मनाने के लिए हमें सर्वप्रथम शिवनेत्र प्राप्त करना होगा! जैसे माँ पार्वती जी ने सतगुरु नारद जी से प्राप्त किया था! तभी भगवान शिव का प्रचण्ड प्रकाश हमारे भीतर के अन्धकारासुर का वध कर पायेगा! और हम जीवन में महाशिवरात्रि का आनंद प्राप्त कर भक्ति के मार्ग पर चल पाएगे!

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