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दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार भारत, हथियार बनाने में कब आत्मनिर्भर होगा भारत ?



डॉ. चंदर सोनाने 
 
            स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिप्री) ने वर्ष 2012-16 के बीच हुई हथियारों की बिक्री की रिपोर्ट जारी की हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार उक्त अवधि में एशिया और ओसीनिया के देशों ने दुनिया के 43 प्रतिशत हथियार खरीदे। यह खरीदी वर्ष 2007-11 के मुकाबले 7.7 प्रतिशत अधिक हैं। उक्त अवधि में सबसे अधिक 13 प्रतिशत हथियार भारत ने खरीदे। चीन ने 4.5 प्रतिशत और पाकिस्तान ने 3.2 प्रतिशत हथियार खरीदे। भारत ने उक्त दोनों देशों के कुल आयात से दोगुना से भी अधिक हथियार खरीदे। हथियार खरीदने में विदेशी मुद्रा  लगती हैं।  विदेशी मुद्रा बचाने के लिए जरूरी हैं कि भारत भी हथियार बनाने में चीन के समान आत्मनिर्भर बनें। इसके लिए केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय को विशेष प्रयास करने की आवश्यकता हैं। 
            सिप्री की रिपोर्ट के अनुसार चीन टॉप 10 आयातकों में शामिल होने के बावजूद नए हथियार बनाकर आत्मनिर्भर देश बन रहा हैं। भारत वर्तमान में चीन से काफी पीछे हैं । हमारा देश हथियार टेक्नोलॉजी में अब भी रूस, अमेरिका, इजराइल और यूरोपीय देशों पर निर्भर हैं। विश्व के सिर्फ 10 देश ही ऐसे खरीददार है जो दुनिया के आधे हथियार खरीदते हैं। इन देशों में भारत 13 प्रतिशत हथियार खरीदकर पहले पायदान पर हैं। सऊदी अरब 8.2 प्रतिशत हथियार खरीद कर दूसरे स्थान पर हैं। अन्य 8 देशों में निम्न लिखित देश हैं-  यूएई 4.6 प्रतिशत , चीन 4.5 प्रतिशत, अल्जीरिया 3.7 प्रतिशत, तुर्की 3.3 प्रतिशत , ऑस्ट्रेलिया 3.3 प्रतिशत , इराक 3.2 प्रतिशत , पाकिस्तान 3.2 प्रतिशत और वियतनाम 3.0 प्रतिशत हथियार खरीदते है। 
            दुनिया के केवल पांच देश हैं , जो 75 प्रतिशत हथियार बेचते हैं। ये देश हैं अमेरिका , रूस, चीन , फ्रांस और जर्मनी। पिछले पांच सालों में अमेरिका 33 प्रतिशत हथियारों की बिक्री के साथ सबसे ऊपर हैं। दूसरे नंबर पर रूस हैं। इसने 23 प्रतिशत हथियार बेचे। चीन ने 6.2 प्रतिशत, फ्रांस ने 6.0 प्रतिशत और जर्मनी ने 5.6 प्रतिशत हथियार बेचे । सबसे ज्यादा हथियार बेचने वाले पांच में से चार कंपनियां अमेरिका की हैं। सिप्री के मुताबिक सन 2015 में ही 24.81 लाख करोड़ रूपये के हथियार बेचे गए। इसमें टॉप 10 कंपनियों ने ही आधे से ज्यादा यानि 12.77 लाख करोड़ रूपये के हथियार बेचें।
          अमेरिकी कॉन्ग्रेशनल रिसर्च सर्विस के मुताबिक सन 2008 से 2015 के बीच भारत ने रक्षा खरीदी पर 2.27 लाख करोड़ रूपये खर्च किए हैं। यह बहुत बड़ी राशि हैं। हथियार खरीदने में विदेशी मुद्रा लगती हैं। चीन ने धीरे धीरे हथियारों का आयात न केवल कम किया , बल्कि वह आत्मनिर्भर भी बन गया हैं। यही नहीं , वह हथियारों के निर्यात में भी विश्व के पांच देशों में शामिल हो गया है। उसने यह उन्नति हथियार टेक्नोलॉजी में लगातार शोध करके प्राप्त की हैं। भारत को भी चाहिए कि वे हथियार टेक्नोलॉजी में लगातार शोध करें । इसके लिए रक्षा विभाग अलग से विभाग बनाए और जिस प्रकार अंतरिक्ष टेक्नोलॉजी में हमारा देष प्रमुख देशों में शामिल हो गया हैं , उसी प्रकार हथियारों के उत्पादन में भी भारत को आत्मनिभर बनने की आवश्यकता हैं। 
          देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री श्री मनोहर पार्रिकर को चाहिए कि वे भारत को आधुनिक हथियारों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए विशेष प्रयास करें। इसके लिए हथियार टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में विशेष शोध करने के लिए शोध संस्थान बनाने की आवश्यकता हैं। भारत देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। जिस प्रकार  अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर हो गया हैं, उसी प्रकार यदि भारत के शीर्ष नेतृत्व गंभीरता पूर्वक विचार करें तो आगामी एक दशक में ही भारत भी हथियार टेक्नोलॉजी में चीन के समान आत्मनिर्भर हो सकता हैं।
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