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लागत मूल्य के आधार पर फसल की कीमत तय हों



डॉ. चंदर सोनाने
 
              प्र्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आगामी पांच साल में कृषि आय को दोगुनी करने का ऐलान किया हैं। इसी प्रकार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कृषि को लाभ का व्यापार बनाने की ठानी हैं। किंतु यह कहने मात्र से नहीं होगा। इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार को ठोस नीति बनानी पडेगी। किसानों को ही ये अधिकार मिलना चाहिए कि वे अपने लागत मूल्य के आधार पर अपनी फसल की कीमत खुद तय कर सकें। 
            वर्ष 2014 में  हर रोज देश के औसत 34 अन्नदाताओं ने आत्महत्या कर अपनी जान दे दी। कर्ज के बोझ और फसल तबाह होने से निराश होकर देश के किसानों ने मजबूर होकर यह अप्रिय कदम उठाया। यह जानकारी संसद में कृषि राज्य मंत्री मोहनबाई कुंडारिया ने एक लिखित जवाब में दी । एनसीआरबी की वर्ष 2014 की रिपोर्ट के आधार पर बताया गया कि किसान समुदाय में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी हैं। वर्ष 2014 में कुल 12,307 किसानों व कृषि मजदूरों ने आत्महत्या की । जबकि वर्ष 2013 में यह संख्या 11,772 थी। वर्ष 2012 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 13,754 थी। 
           यहां यह प्रश्न उठता हैं कि हर वर्ष हजारों की तादात में किसानों द्वारा आत्महत्या करने के मूल कारण क्या हैं ? केंद्र और राज्य सरकार को चाहिए कि वे मूल कारणों पर जाए। उसकी पडताल करें । और फिर ऐसी रीति नीति बनाएँ जिससे कि किसानों को आत्महत्या करने के लिए बाध्य नहीं होना पडें। यह तभी संभव हैं जब राज्य सरकार और केंद्र सरकार मिलकर किसानों के हित में गंभीरता पूर्वक चिंतन मनन कर ठोस नीति बनाएंगे। 
            हाल ही में केंद्र सरकार ने एक और खेल खेला हैं । एक और तो वह कहता हैं कि आगामी पांच सालों में किसानों की आय को दोगुना किया जाएगा। दूसरी और किसानों की हर वर्श हजारों की तादात में आत्महत्या करने के आंकडो को शडयंत्रपूर्वक कम करने का प्रयास किया जा रहा हैं। हाल ही में उन्होंने ऐसे शडयंत्र किए हैं, जिससे यह पता चलेगा कि आत्महत्या करने वाले किसान कितने हैं और कृशि पर आधारित मजदूरी करने वाले किसान कितने। दोनों की मौत के आंकडे अलग अलग कर सरकार यह बताने का प्रयास करेगी कि किसानों की आत्महत्या के प्रकरणों मे कमी आ रही हैं । यह आपराधिक शडयंत्र हैं। इस पर तुरंत रोक लगना चाहिए। कृशि पर आधारित किसान हो या मजदूर, उनको अलग-अलग रखने के बजाय एक साथ रखे जाने की आवश्यकता हैं। इन दोनें में कभी भेद नही रहा हैं। और न ही रहेगा।
            गत वर्ष प्याज की बंपर उपज होने के परिणामस्वरूप किसानों को अपनी उपज का लागत मूल्य भी नहीं मिलने पर उन्होंने प्याज को फेंक दिया था। इस वर्ष भी लगभग यही हाल आलू , टमाटर और मटर के साथ हो रहा हैं। आलू , टमाटर और मटर की बंपर उपज आने के कारण किसान पांच रूपये प्रति किलों में इन्हें बेचने को मजबूर हो रहें हैं। इससे उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही हैं।  यही हाल आगामी समय में तुवर की दाल के साथ होने की संभावना दिखाई दे रही हैं। सरकार ने वर्ष 2016 को दलहन वर्ष घोषित कर किसानों को दलहन बोने के लिए प्रोत्साहित किया था। क्योंकि इसके पहले दलहनों की बेतहासा बढ़ती कीमतों के कारण देशभर में हाहाकार मचा हुआ था। किसानों ने सरकार की बात मानी । और अब हाल यह हैं कि तुवर दाल की बंपर उपज हो रही हैं। 25 साल में पहली बार तुअर दाल की इतनी अधिक फसल आई हैं। एक अनुमान के अनुसार मध्यप्रदेश में ही 10 लाख 45 हजार मैट्रीक टन तुवर दाल की बंपर फसल आने की संभावना व्यक्त की गई हैं। फसल आना भी शुरू हो गई है। किंतु प्रदेश सरकार ने मात्र एक लाख मैट्रिक टन तुवर दाल ही समर्थन मूल्य पर खरीदने की व्यवस्था की हैं। अर्थात उपज का मात्र 10 प्रतिशत उपज ही समर्थन मूल्य पर सरकार खरीदेगी। नौ लाख 45 हजार मैट्रिक टन का क्या होगा ? यह सहज ही अंदाज लगाया जा सकता हैं। किसानों को मन मार कर व्यापारियों को कम दाम पर अपनी उपज बेचने के लिए बाध्य होना पडेगा।
            प्याज हो या आलू, टमाटर हो या मटर या हो तुवर दाल । जब तक किसानों को अपनी फसल का लागत मूल्य के आधार पर कीमत तय करने के अधिकार नही मिलेगे, तब तक वह इसी प्रकार लूटता रहेगा। आज आवश्यकता इस बात की हैं कि ऐसी नीति राज्य व केंद्र सरकार बनाए, जिसमें किसानों को अपनी फसल का लागत मूल्य के आधार पर कीमत तय करने का हक मिले। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी व मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को चाहिए कि वे इस दिशा में गंभीरता पूर्वक विचार कर नीति बनाए । यह नीति हर हाल में किसानों के हित में ही होनी चाहिए। तभी हमारे देश का अन्नदाता खुशहाल होगा। यदि किसान खुशहाल होगा , तो देश खुशहाल होगा। 
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