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जातिवाद के जहर का शर्मनाक वाक्या, दलित दूल्हे को घोड़ी पर बैठने से रोका



डॉ. चंदर सोनाने
 
           यदि किसी दूल्हे का बाना बैंडबाजे और घोड़ी पर बैठ कर निकले तो भला किसे ऐतराज हो सकता हैं ? किंतु हाल ही में उज्जैन जिले के बडनगर तहसील मुख्यालय से मात्र चार किलोमीटर दूर ग्राम जाफला में एक वाक्या सामने आया हैं। यहां के एक दलित दूल्हें को घोडी पर बैठकर बैंडबाजे के साथ बारात निकालने पर सवर्ण समाज के कुछ लोगों ने उसे जबरन रोका और बाना निकालने पर रोक लगा दी।
          ग्राम जाफला के रहने वाले रणछोड़ पिता रामलाल के बेटे नीरज और बेटी सपना की शादी होनी थी। गत सोमवार को खुशी खुशी नीरज घोड़ी पर बैठकर गांव में वरनिकासी के लिए निकला। साथ में चल रहे बैंडबाजे पर नाचते हुए रिश्तेदार चल रहे थे। गांव में कुछ ही दूर चलने पर गांव के कुछ सवर्ण समाज के लोगों ने बाना रोका और जबरजस्ती दूल्हें को घोडी से उतार दिया गया । उनका कहना था कि अभी तक गांव में दलित वर्ग के किसी भी दूल्हें ने घोडी पर बैठकर बैंडबाजे के साथ बाना नही निकाला हैं तो तुम कैसे निकाल रहे हों ! इससे नाराज होकर शिक्षित नीरज और उसकी बहन सीधे थाने जा पहुंचे। दूल्हें और परिजनों की शिकायत पर बड़नगर के एसडीएम श्री अवि प्रसाद ने तुरंत ही कारवाई की । उन्होंने तहसीलदार सुदीप मीणा और थाना प्रभारी विवेक कनौडिया तथा पुलिस फोर्स को लेकर गांव जा पहुंचे।  प्रषासन के साये में बाना फिर से पूरे गांव में निकला। 
           उक्त वाक्या जातिप्रथा के नाम पर समाज के नाम एक कलंक हैं। ऐसा नही होना चाहिए। किंतु हुआ हैं। देश की आजादी के साठ साल बाद भी कोई दलित दूल्हा बैंडबाजे के साथ घोड़ी पर बैठकर अपना बाना नही निकाल पाए यह सबके लिए शर्म की बात हैं। शिक्षित दूल्हें और उसकी शिक्षित बहन ने थाने में शिकायत कर दी तो पुलिस और प्रशासन के संरक्षण में उनका बाना निकल पाया। यदि दूल्हा और उसकी बहन साहस नही करते और न ही उनके परीवार वाले साहस दिखाते और वे चुप रह जाते तो मनमसोस कर अपने दिल की खुशी जाहिर नहीं कर पाते । किंतु उन्होंने साहस किया । इसलिए वे बधाई के पात्र हैं। बधाई के पात्र एसडीएम , तहसीलदार और थाना प्रभारी भी हैं , जिन्होंने सूचना मिलते ही तुरंत मौके पर पहुंचे और उन्होंने न केवल माहौल को शांत किया बल्कि गांव में दलित दूल्हें का बाना भी बैंड बाजे और दूल्हें को घोडी पर बैठाकर निकाला।  
           ग्राम जाफला में उक्त घटना हमें बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देती हैं। हालांकि पुलिस ने छह लोगों के विरूद्ध विभिन्न धाराओं में प्रकरण भी दर्ज किए हैं और उन्हें गिरफ्तार भी किया हैं। आज समाज के विभिन्न वर्गो में इस विषय पर गंभीर रूप से चिंतन मनन की आवश्यकता हैं। केवल पुलिस के डर से या प्रशासन के खौफ से समाज में बदलाव नहीं लाया जा सकता । इसके लिए लोगों की सोच में बदलाव आवश्यक हैं। और इस सोच में बदलाव शिक्षा से ही संभव हो सकेगा। संभवतः दलित दूल्हें की बारात रोकने वाले लोग शिक्षित नही हैं। अन्यथा ऐसा नही होता।
    जातिवाद का यह जहर शहरों की अपेक्षा गांव में अभी भी हैं । यह उक्त उदाहरण से स्पष्ट होता हैं। प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को चाहिए कि ऐसे प्रकरणों को वे गंभीरता से लें तथा सामाजिक बदलाव की दिशा में ऐसे जातिगत भावना से पीडित गांमीण अंचलों में शिविर लगाकर उन्हें शिक्षित करें ताकि भविष्य में इस प्रकार के और प्रकरण नहीं होने पाए। सामाजिक समरसता के लिए यह आवश्यक भी हैं कि सभी समाज के सभी वर्गो के लोग आपस में मिल जुलकर जीवन निर्वाह करें।                 
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