नियम ही सुव्यवस्थित समाज की नींव
गुरु-आज्ञा में बंध कर ही एक शिष्य उत्कृष्टता को प्राप्त होता है
व्यक्ति काश्रेष्ठ आचरण और व्यक्तित्व समाज के लिए प्रेरणा स्रोत
एक सुदृढ़ समाज का निर्माण भी नियमों के पालन से ही होता है
नियमबद्ध जीवन ही सफलता की कुंजी
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा दिल्ली स्थित दिव्य धाम धाम आश्रम में मासिक सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया! जिसमें गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य एवं शिष्याओं ने अध्यात्मिक प्रवचनों एवं सुमधुर भजनों की श्रंखला को आई हुई संगत के समक्ष रखा! साध्वी जी ने कहा कि आज केआधुनिकयुग में देखा जाए तो लोग अपनी जीवनशैली को नियमों में बाँधना पसंद नहीं करते हैं। फिर चाहे वे नियम उनके व्यावसायिक, सामाजिक या व्यक्तिगत जीवन से सम्बंधित क्यों न हों! उनके हिसाब से नियम स्वयं के फ्रीडम-जोन(स्वतंत्रता) में दखल पैदा करते हैं।
परन्तु वास्तविकता में यह नियमबद्ध जीवन ही सफलता की कुंजी होता है। पश्चिम अमरीका के प्रसिद्ध लेखक व युवा लीडरशिप कोच- इस्राएलमोरे आईवोर अपनी पुस्तक ‘शेपिंग द ड्रीम्स’ में लिखते हैं-‘Every game has rules. Life is also a game that has its respective rules; obey the rules’अर्थात् जिस प्रकार किसी भी खेल को खेलने के लिए उससे सम्बंधित नियम होते हैं, उसी प्रकार जीवन भी एक खेल है, जिसके कुछ विशेष नियम हैं। उन नियमों को निभाने पर ही जीवन रुपी खेल में विजयश्री का वरण किया जा सकता है।
एक सुदृढ़ समाज का निर्माण भी नियमों के पालन से ही पूरा होता है। अगर समाज में कोई नियम ही न हो, प्रत्येक व्यक्ति को मनचाहा कर्म करने की स्वतंत्रता हो- तो उस समाज में केवल अव्यवस्था, अन्याय, अत्याचार, अनुचित व अर्थहीन व्यवहार की ही झलक दिखेगी। इसे समझाते हुए साध्वी जी ने बताया कि गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जीअंक्सरा अपने प्रवचनों में एक दृष्टांत सुनाया करते हैं कि जब रूस को आजादी प्राप्त हुई, तब एक व्यक्ति सड़क के बीचोबीच चल रहा था। तभी एक ट्रैफिक पुलिसमैन की नजर उस व्यक्ति पर पड़ गई। उसने उसको सड़क के किनारे चलने की सलाह दी। उत्तरस्वरूप उस व्यक्ति ने कहा- ‘Russia is free! I am free! I can walk anywhere I like! (रूस आजाद है! मैं भी आजाद हूँ! जहाँ मेरा मन चाहेगा, मैं वहीं चलूँगा।’) प्रत्युत्तर में ट्रैफिक पुलिस मैन ने भी कह दिया-‘Yes, Russia is free. Then driver is also free! He can drive anywhere he likes! For if he does that, then he (driver) will be in jail and you will be in the grave!(हाँ, रूस आजाद है। तो फिर ड्राइवर भी आजाद है। वह भी मनचाही ड्राइविंग कर सकता है। और अगर ऐसा होता है, तो वह ड्राइवर जेल में होगा और तुम कब्र में!)’
अतः जब कोई नियम के विरुद्ध जाता है, तब वह स्वार्थी होकर स्वयं को ही नहीं बल्कि समूचे समाज को नुकसान पहुँचाता है। इसलिए कह सकते हैं कि नियम ही सुव्यवस्थित समाज की नींव होते हैं।
यदि हम बात करें गुरु-शिष्य के सर्वोत्तम सम्बन्ध की, तो यहाँ भी नियमों का विशिष्ट स्थान है। गुरुदेव की आज्ञाएँ शिष्य के लिए नियम समान होती हैं। हालांकि ये आज्ञा रूपी नियम कठोर अवश्य लगते हैं, कभी-कभी तो निजी-आजादी के अवरोधक भी। पर यह सर्वविदित है कि जो नदी स्वयं को बाँध् के समक्ष समर्पित कर देती है, वही संयमित होकर विद्युत उत्पन्न करने में भी सक्षम हो पाती है। लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन को रोशन करने का एक सशक्त माध्यम बन जाती है।
ठीक उसी प्रकार जब एक शिष्य गुरु-आज्ञा के बाँध् में बंध् जाता है, उसका शिष्यत्व तो उत्कृष्टता को प्राप्त होता ही है। साथ ही, वह अपने श्रेष्ठ आचरण और व्यक्तित्व से विश्व-पटल पर ऐसी अनूठी छाप छोड़ता है, जो आने वाली अनेक पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाती है।