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तपोभूमि में पहली बार बसंत पँचमी उत्सव ’“ग्रन्थ-निर्ग्रंथ पँचमी“ के रूप में मनाया गया



उज्जैन। ये पहला अवसर था जब एक साथ जैन धर्म के प्रथम ग्रन्थ ’“षट्खण्डागम“ की 16 गाथाओं की आराधना की गयी। 16 ग्रंथों को 16 पाण्डुकशिलाओं’ पर विराजमान कर भक्तों के द्वारा आराधना की गयी। मुनिश्री के द्वारा माँ जिनवाणी की महिमा का बखान किया गया। ये पहला अवसर था जब माँ जिनवाणी को जैन धर्म के ध्वज से सजाया गया। अंत में माँ जिनवाणी की 16 दीपकों से महा आरती की गयी इस अवसर पर मुनि प्रज्ञासागरजी महाराज ने कहा सरस प्लस वती सरस्वती उसे कहते हैं जिसमें सभी रसों का समायोजन होता है। जिसके पास सरस्वती होती है वह संपूर्ण श्रष्टि में पूजाता है। जीनवाणी मां एक ऐसी मां है जो भगवान तीर्थंकरों के मुख से बहती है। जीनवाणी मां को हम सरस्वती के रूप में पूजते हैं। बसंत पंचमी पर सरस्वती और मां जीनवाणी की आरती के साथ मनुष्य भवों का उद्ध्दार करे ऐसी सभी मुनियों की आशा होती है। संसार में सरस्वती से बढ़कर कुछ नहीं। अजय वीरसेन जैन को आरती का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस अवसर पर सामाजिक संसद के अध्यक्ष अशोक जैन चायवाला, सचिव महेश जैन, राजेन्द्र लुहाड़िया, दिनेश जैन, अशोक जेसवाल, सोहनलाल जैन, राजेन्द्र लुहाड़िया, तेजकुमार विनायका, प्रज्ञाकला मंच अध्यक्ष विनीता कासलीवाल, रश्मि कासलीवाल, सुगनचंद सेठी, पवन बोहरा, सुनील जैन ट्रांसपोर्ट, धर्मेन्द्र सेठी, फूलचंद छाबड़ा, ओम जैन, सुशील गोधा, धीरेंद्र सेठी, सचिन कासलीवाल, नेमीचंद जैन, इन्दरमल जैन, अमृतलाल जैन, देवेंद्र जैन, सुधीर चंदवाड़, विनोद बड़जात्या, महेंद्र लुहाड़िया, संजय बोहरा, जयेश जैन, सोहनलाल जैन, विकास सेठी, हेमंत गंगवाल, राजेंद्र बड़जात्या, निर्मल सेठी, सुनील जैन, संतोष लुहाड़िया, दीपक जैन, विमल जैन, कमल मोदी, रमेश जैन, संजय जैन, बसंत जैन, सौरभ कासलीवाल, संजय बड़जात्या आदि उपस्थित थे। 

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