भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय के मूल्य समाहित हैं
उज्जैन/सामाजिक न्याय की अवधारणा समाज में संगठन को मजबूत करने पर जोर देती है, इसमें समता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व के मूल्यों पर समाहित हैं तथा मानव अधिकारों के मूल्य, नागरिकों की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता तथा प्रतिष्ठा सम्मिलित हैं । नागरिकों के मध्य सामाजिक स्थिति के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव न हो, इसके लिए भारतीय संविधान में सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय की स्थापना के प्रावधान किए गये हैं । सामाजिक न्याय का आदर्श एक न्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित एवं विकसित करके लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने की परिकल्पना करता है ।
उक्त उद्गार डॉ. अम्बेडकर पीठ के आचार्य शैलेन्द्र पाराशर ने डॉ.बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू द्वारा ‘भारतीय संविधान और सामाजिक न्याय’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में उद्बोधन देते हुए व्यक्त किए ।
दो सत्रों के समन्वित सत्र् में सहअध्यक्ष प्रो. एस.एल. गायकवार, एस.डी.एम. संदीप महू, औरंगाबाद, भिक्कुणी मैत्रिया एवं भनते सूर्यवंशी, मुम्बई, डॉ. हल्केभाई रायसेन, डॉ. हरीमोहन धवन उज्जैन एवं एच.एम. बुरूआ उज्जैन, डॉ. आर.के. दोहरे फैजाबाद, मिलीन्द्र मानखेड़ा आदि वक्ताओं ने शोधोन्नमुखी विचार व्यक्त किए । सत्र् का संचालन मनीषा सक्सेना ने किया । आभार प्रो. डी.के. वर्मा ने अभिव्यक्त किया ।