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कन्या भ्रूण की रक्षा ही सर्वोच्च उद्देश्य, निष्पक्ष होकर कार्यवाही करें दोषियों पर



संभाग स्तरीय पीसी एंड पीएनडीटी कार्यशाला आयोजित
    उज्जैन । शहर की होटल क्षिप्रा रेसीडेंसी में शनिवार को कार्यालय क्षेत्रीय संचालक स्वास्थ्य सेवाएं उज्जैन संभाग द्वारा पीसी एण्ड पीएनडीटी (पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक) अधिनियम के अंतर्गत उज्जैन संभाग के जिलों की जिला स्तरीय सलाहकार समिति के सदस्यों को अधिनियम से परिचित कराने के उद्देश्य से एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई।

    उल्लेखनीय है ‍कि पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए भारत की संसद द्वारा पारित एक संघीय कानून है। इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक "पीएनडीटी" एक्ट के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जॉच पर पाबंदी है। ऐसे में अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रा सोनोग्राफी कराने वाले जोडे या करने वाले डॉक्टर व लेब कर्मी को तीन से पॉच साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। 

    कार्यशाला में बताया गया कि समितियों का सर्वोच्च उद्देश्य कन्या भ्रूण की रक्षा करना है और दोषियों पर बिना किसी पक्षपात के कार्यवाही की जाना चाहिए। समिति द्वारा पीएनडीटी एक्ट के क्रियान्वयन में सक्रिय भूमिका निभाई जाना चाहिए।  क्षेत्रीय संचालक स्वास्थ्य सेवाएं उज्जैन डॉ. निधी व्यास द्वारा उज्जैन संभाग में शिशु लिंग अनुपात की स्थिति के बारे में पॉवर पाइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से बताया गया । डॉ. व्यास ने बताया कि किसी भी समाज के सामाजिक स्वास्थ्य तथा बालिकाओं के प्रति समाज की संवेदनशीलता का महत्वपूर्ण एवं सशक्त सूचक शिशु लिंग अनुपात है। यह जन्म के समय लिंगानुपात व बाल्यावस्था में मृत्यु में लिंग आधारित अंतर से प्रभावित होता है। 

    सामान्यत: जन्म के समय लिंगानुपात प्रति 1000 बालकों के जन्म पर 952 बालिकाओं का जन्म होता है। भारत में शिशु लिंगानुपात वर्ष 1961 में 976 से घटकर वर्ष 2001 में 927 व वर्ष 2011 में 914 हो गया है जो कि चिंताजनक स्थिति है। सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में शिशु लिंगानुपात में गिरावट दर्ज की गई है, तथा देश के पचास प्रतिशत जिलों में शिशु लिंगानुपात में राष्ट्रीय औसत की तुलना में अधिक गिरावट आयी है। हरियाणा में 830, पंजाब में 846, व जम्मू कश्मीर में 859 सबसे कम शिशु लिंगानुपात पाया गया है। पिछले दशक में 10 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में शिशु लिंगानुपात में 22 से 82 बिंदुओं की गिरावट दर्ज की गई है।

    पहले शिशु के जन्म पर , जन्म के समय लिंगानुपात में कोई विशेष अंतर नहीं पाया गया परंतु यदि पहली संतान लड़की है तो दूसरे बच्चे पर जन्म के समय शिशु लिंगानुपात में बहुत अधिक गिरावट पायी गई है। ये रूझान शिक्षित एवं सम्पन्न परिवारों में अधिक पाये गये हैं। ज्ञात हो कि भारत में 2001 से 2007 के बीच में 6,01,468 लड़कियाँ प्रसव पूर्व लिंग चयन के कारण प्रति वर्ष जन्म नहीं ले पाईं। यदि उज्जैन जिले की स्थिति पर गौर किया जाए तो यहां शिशु लिंगानुपात वर्ष 2001 में 938 तथा 2011 में 919 पाया गया। 

    कार्यशाला में बताया गया कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में पूरे विश्व में गर्भावस्था के दौरान भ्रूण जाँच की तकनीकों का उपयोग जेनेटिक असामान्यता की जाँच करने के लिए हो रहा है। परंतु भारत में इस तकनीक का दुरूपयोग पिछले तीन दशकों से गर्भावस्था में भ्रूण के लिंग की जाँच, विशेष रूप से बालिकाओं का पता कर उन्हें समाप्त करने में किया जा रहा है। इसी के चलते पूरे देश एवं प्रदेशों में भ्रूण लिंग की जाँच बढ़ी और उससे जुड़े अपराध आसानी से होने लगे। इस कारण महिलाओं के प्रति हिंसा और लैंगिक अपराधों में वृध्दि होती हैं तथा लड़के की चाह में बार-बार गर्भपात जैसे कार्यों को अंजाम दिया जाता है। लड़का पैदा करने मे असमर्थ महिलाओं को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है जिससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। गिरते हुए लिंगानुपात को रोकने के उद्देश्य से ही पीएनडीटी अधिनियम पारित किया गया है। 

    इस अधिनियम के क्रियान्वयन हेतु जिला स्तर पर एक सलाहकार समिति होती है जिसमें कलेक्टर, जिला स्वास्थ्य अधिकारी, जनसंपर्क अधिकारी, जिला अभियोजन अधिकारी, स्त्रीरोग विशेषज्ञ, शिशुरोग विशेषज्ञ, समाज सेवक, एनजीओ व पेथालॉजिस्ट समिति के सदस्य होते हैं। 

    इसके पश्चात कार्यशाला में उपसंचालक एवं राज्य नोडल अधिकारी पीसी एंड पीएनडीटी डॉ. वदंना शर्मा द्वारा उज्जैन संभाग में पीएनडीटी के क्रियान्वयन की स्थिति पर प्रकाश डाला गया। डॉ. शर्मा ने बताया कि इस एक्ट के क्रियान्वयन में देवास जिले में अच्छा कार्य हुआ है और इसके पश्चात उज्जैन, रतलाम व मंदसौर जिले में भी स्थिति संतोषजनक है। शाजापुर जिले में और सुधार की आवश्यकता है। डॉ. शर्मा ने कहा कि इस एक्ट के तहत जो भी लंबित प्रकरण न्यायालय में है उनका निराकरण शीघ्र करने का प्रयत्न किया जाए। कन्या भ्रूण हत्या से संबधित कहीं से भी कोई भी शिकायत वेबसाइट www.humaribitiya.in पर दर्ज कर सकता है। इसमें शिकायत कर्ता की पहचान भी गुप्त रखी जाती है। अभी तक वेबासाइट पर कुल 183 शिकायतें दर्ज की गई हैं। 

    कार्यशाला में ऐसे सोनोग्राफी सेंटर्स जहां भ्रूण का लिंग परिक्षण करवाया गया उन पर समिति द्वारा की गई कार्यवाही पर चर्चा की गई । बताया गया कि पीसी एंड पीएनडीटी पर राज्य स्तर पर एक सेल भी बनाया गया है। एमपीवीएचए इंदौर के संचालक व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य श्री मुकेश सिन्हा ने अधिनियम के क्रियान्वयन में सलाहकार समिति की भूमिका तथा समिति द्वारा मूल्यांकन एवं निरीक्षण के आवश्यक पहलुओं के बारे में विस्तार से बताया। श्री सिन्हा ने कहा कि समिति के सदस्यों के चुनाव में विशेष ध्यान रखा जाए। इसमें तीन डॉक्टर, एक लॉयर, एक एनजीओ, एक महिला प्रतिनिधी व एक जनसंपर्क अधिकारी सदस्य होते हैं। श्री सिन्हा ने कहा कि जनसंपर्क विभाग का इसमें विशेष महत्व होता है क्योंकि अधिनियम के बारे में लोगों को अधिक से अधिक जागरूक करने की आवश्यकता है।

     कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए समिति के सदस्य दृढ़ संकल्पित होकर कार्य करें। कार्यशाला में बताया गया कि समिति को अधिकार क्षेत्र से बाहर मशीन ले जाने की अनुमति कभी नहीं देनी चाहिए। समिति के निधि कोष हेतु एक ज्वांइट अकांउट खोला जाता है। कन्या भ्रूण हत्या से संबंधित सभी शिकायतों की जांच पड़ताल शिकायत प्राप्ति के 24 घंटों के अंदर करना चाहिए। इसके अलावा समय-समय पर कम से कम दो महिनों में एक बार समिति की बैठक विशेष रूप से आयोजित करना चाहिए। 

    श्री सिन्हा ने बताया कि समिति को यूएसजी सेंटरों की निगरानी तीन लेवल पर करना चाहिए। इनमें सबसे पहले डेस्करिव्यू तत्पश्चात प्रोसेस रिव्यू और उसके बाद अवलोकन प्रकिया को अपनाना चाहिए। सभी सोनोग्राफी सेंटर्स पर पीसी एंड पीएनडीटी की कॉपी अनिवार्य रूप से उपलब्ध होनी चाहिए ताकि आम जन को भी अधिनियम के बारे में जानकारी प्राप्त हा सके। 

    कार्यशाला में बताया गया कि सोनोग्राफी सेंटर कोई भी खोल सकता है परंतु संचालक को स्थान , मशीन व डॉक्टर का रजिस्ट्रेशन अनिवार्यत: करवाना होता है। इसके पश्चात उप संचालक अभियोजन डॉ. साकेत व्यास द्वारा अधिनियम के विधिक प्रावधानों से संबंधित न्याय दृष्टांतों पर चर्चा की गई। संभाग के अलग-अलग जिलों से आये समिति के सदस्यों द्वारा एक्ट के प्रभावी क्रियान्वयन में समस्त प्रतिभागियों से अपेक्षाएं पर दस मिनट का  पॉवर पाइंट प्रेजेनटेंशन प्रस्तुत किया गया। अंत में आभार व कार्यशाला का समापन उप संचालक स्वास्थय सेवाएं डॉ. लक्ष्मी बघेल द्वारा व्यक्त किया गया।

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