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प्रभु की दिव्य लीलाएं मनुष्य को अध्यात्मिक मार्ग की ओर प्रेरित करती है –साध्वी पदम्हस्ता भारती


दिव्य ज्योतिजाग्रतिसंस्थानद्वारासामाजिक न्याय परिसर, उज्जैन मेंदिनांक22 से 28जनवरीतक ‘श्रीमद्भागवतकथाज्ञान यज्ञ’ काभव्य व विशालआयोजनकियाजारहाहै।

श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के चतुर्थ दिवस पर भगवान की अनन्त लीलाओं में छिपे गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों को कथा प्रसंगों के माध्यम से उजागर करते हुए दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या भागवताचार्या महामनस्विनी विदुषी सुश्री पदम्हस्ता भारती जी ने आज बाल-लीला के विभिन्न प्रसंगों को प्रस्तुत किया एवं इनमें छुपे हुए आध्यात्मिक रहस्यों से भक्त-श्रदालुओं को अवगत कराया।

            इस संसार के मूढ़ बुद्धि लोग मुझे मनुष्य शरीर में देखकर साधारण मनुष्य समझ लेते हैं पर वे मेरे परम भाव को नहीं जानते कि मैं ही सभी भूत प्राणियों का स्वामी हूँ, गोकुल की गलियों में दौड़ते हुए इस गोप बालक को देखकर कौन कह सकता है कि वे परमात्मा है। वन में अपनी पत्नी के खो जाने पर विलाप करते हुए वृक्षों व लताओं से अपनी पत्नी के समाचार पूछने वाले वनवासी प्रभु राम को देखकर भला कौन कह सकता है कि यही परमात्मा हैं। परमात्मा की लीलाएं सदैव मनुष्य के लिए रहस्य बनी रहीं हैं क्योंकि वह परमात्मा को अपनी बुद्धि के द्वारा समझना चाहता है, जो संभव नहीं। इसलिए रावण, कंस, दुर्योध्न जैसे लोग भी प्रभु की लीलाओं से धेखा खा गए। प्रभु की प्रत्येक लीला में आध्यात्मिक रहस्य छुपा होता है, जिनका उद्देश्य मनुष्य को आध्यात्मिक मार्ग की ओर प्रेरित करना है। जब एक मनुष्य पूर्ण सतगुरु की कृपा से ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करता है तब उसके अंदर में ही इन लीलाओं में छिपे हुए आध्यात्मिक रहस्य प्रकट होते हैं तथा पूर्ण सतगुरु की कृपा से हीं वह इन रहस्यों को समझ पाता है।

            भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के घरों से माखन चोरी की, इस घटना के पीछे भी आध्यात्मिक रहस्य है। दूध् का सार तत्व मक्खन है, उन्होंने गोपियों के घर से केवल मक्खन चुराया अर्थात् सार तत्व को ग्रहण किया और असार को छोड़ दिया। प्रभु हमें समझाना चाहते हैं कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है। इसलिए असार संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साध्न और सामथ्र्य का अपव्यय करने की अपेक्षा हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करना चाहिए। इसी से जीवन का कल्याण सम्भव है।

इस कथा प्रसंग में भगवान श्री कृष्ण की अनन्त लीलाओं का मार्मिक वर्णन करते हुए सुश्री पदम्हस्ता भारती जी ने कथा को रोचकता प्रदान की। साध्वी जी ने अपने विचारों में संस्थान के बारे में बताते हुए कहा कि संस्थान आज सामाजिक चेतना व जन जाग्रति हेतु आध्यात्मिकता का प्रचार व प्रसार कर रही है।

           

 

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