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चांदी के पालने में झूले नंदलाल, माखन मिश्री खा भक्त हुए निहाल



उज्जैन। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा सामाजिक न्याय परिसर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में तीसरे दिन कृष्ण जन्मोत्सव मनाया। जन्मोत्सव में भगवान कृष्ण को चांदी के पालने में झूलाकर भक्त निहाल हो उठे। भक्त झूम उठे और फूलों की बारिश हुई। बच्चे पीले वस्त्रों में कृष्ण बनकर आए तो भक्तों ने खूब माखन मिश्री का प्रसाद पाया।
अजीत मंगलम के अनुसार मुख्य यजमान हरिसिंह यादव, रवि राय, श्याम जायसवाल ने भगवान कृष्ण का पूजन अर्चन किया तत्पश्चात हजारों भक्तों ने भगवान के पालना दर्शन किये। साध्वी पदमहस्ता भारती ने बलि वामन व कृष्ण जन्म प्रसंगों की कथा सुनाते हुए कहा कि जब जब धरा पर धर्म की हानि होती है अधर्म, अत्याचार, अन्याय, अनैतिकता बढ़ती है तब-तब धर्म की स्थापना के लिए करूणानिधान ईश्वर अवतार धारण करते हैं। आपने कहा कि धर्म कोई बाह्य वस्तु नहीं है, धर्म वह प्रक्रिया है जिससे परमात्मा को अपने अंतर्घट में ही जाना जाता है। स्वामी विवेकानंद कहते हैं परमात्मा का साक्षात्कार ही धर्म है। जब-जब मनुष्य ईश्वर भक्ति के सनातन-पुरातन मार्ग को छोड़कर मनमाना आचरण करने लगता है तब धर्म के संबंध में अनेक भ्रांतियां फैल जाती हैं। धर्म के नाम पर विद्वेष, लड़ाई-झगड़े, भेद भाव, अनैतिक आचरण होने लगता है तब प्रभु अवतार लेकर बाह्य आडंबरों से त्रस्त मानवता में ब्रह्मज्ञान के द्वारा प्रत्येक मनुष्य के अंदर वास्तविक धर्म की स्थापना करते हैं। कृष्ण का प्राकट्य केवल मथुरा में ही नहीं हुआ, उनका प्राकट्य तो प्रत्येक मनुष्य के अंदर होता है, जब किसी तत्वदर्शी ज्ञानी महापुरूष की कृपा से उसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है। ईश्वर साक्षात्कार के अभाव में मनुष्य का जीवन घोर अंधकारमय है, कर्मो की काल कोठरी से निकलने का कोई उपाय नहीं है, विषय विकार रूपी पहरेदार उसे कर्म बंधनों से बाहर नहीं निकलने देते। परंतु जब परमात्मा का प्राकट्य मनुष्य हृदय में होता है तो परमात्मा के दिव्य प्रकाश से समस्त अज्ञान रूपी अंधकार दूर हो जाता है, कर्म बंधनों के ताले खुल जाते हैं। कथा के समापन पर मुख्य यजमान हरिसिंह यादव, रवि राय, अजीत मंगलम, श्याम जायसवाल, पूर्व महापौर मदनलाल ललावत, पूर्व मंत्री शिवनारायण जागीरदार, गोपाल बागरवाल, महेश तिलक, किरण मेहता ने आरती की। कथा में स्वामी विद्यानंद, साध्वी अवनी भारती, श्यामला भारती, सर्वज्ञा भारती, बोध्या भारती, अर्चना भारती, संपूर्णा भारती, निधि भारती, स्वामी हितेन्द्रानंद, स्वामी मुदितानंद, गुरूभाई अनिरूध्द, गुरूभाई ताना, व पवन आदि उपस्थित थे।

 

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