मैत्रीभाव से भारत माता की सेवा करना चाहिये – लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती महाजन
उज्जैन। सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य के साथ-साथ व्यक्तित्व के विकास पर भी ध्यान देना आवश्यक है। समाज में सेवा का कार्य मन से किया जाना चाहिये। जो व्यक्ति समाज के साथ-साथ देशसेवा कर रहे हैं, वे अच्छे भाव से काम करें। कार्य करते समय कहीं लचीलापन तो कहीं कठोरता से काम लेना चाहिये। सेवाभावी व्यक्ति को मैत्रीभाव से भारत माता की सेवा कर दुर्बल व्यक्ति को सबल बनाने का काम किया जाना चाहिये।
इस आशय के विचार महाकाल मन्दिर के पास सेवा संगम के तीन दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने व्यक्त किये। उन्होंने उपस्थित सेवार्थियों से कहा कि भाव के अनुरूप काम करने वाले सेवाभावी व्यक्ति निरन्तर सेवा का काम करते चलें। जरूरतमन्द व्यक्ति का भला किया जाये। भला करते समय मन में यह भाव होना चाहिये कि वास्तविक उस व्यक्ति का हम भला दिल से कर रहे हैं। अगर व्यक्ति दुर्बल व्यक्ति का भला करने की अपने मन में ठान ले तो निश्चित ही उसका भला होगा। सेवाभावी व्यक्ति समाज के हित में सही दिशा से काम करे। उन्होंने महिला सेवार्थियों से भी कहा कि जिस प्रकार वे अपने घरों में जिम्मेदारी के साथ मन से सेवा का कार्य करती हैं, उसी तरह समाज की सेवा में भी अपने घर जैसा सेवा का कार्य मन से किया जाये।
लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती महाजन ने कहा कि व्यक्ति गृहस्थाश्रम के साथ-साथ समाजसेवा का काम भी करे। सेवार्थी अगर सेवा के भाव से समाजसेवा के लिये निकले हैं तो वह आखरी दम तक सेवा का काम अच्छे मन से करें। उन्होंने पेयजल की समस्या के बारे में भी विचार करने को कहा और इस पर भी हमें ध्यान देने की जरूरत बताई। जिस तेज गति से ट्यूबवेल खनन हो रहे हैं, इससे हमारे जल संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। इस पर भी हमें काम करना होगा और अधिक से अधिक लोगों को रिचार्जिंग सिस्टम के बारे में जानकारी देना होगी। उन्होंने कहा कि जैविक खेती तथा फसल पद्धति के बारे में भी जानकारी देते हुए परिवर्तन लाने पर विचार करना होगा। श्रीमती महाजन ने कहा कि देश का विकास सड़क बनाने से ही नहीं होगा, बल्कि हमें समाज के उत्थान के बारे में भी विशेष ध्यान देना होगा।
महर्षि उत्तम स्वामीजी महाराज ने इस अवसर पर कहा कि वे चार बातों क्रमश: श्वास, विश्वास, तलाश एवं प्रकाश पर समाज के हित में विशेष ध्यान दें। उक्त चार बातें मनुष्य के जीवन में आवश्यक हैं। व्यक्ति परोपकार कर पुण्य का काम समाज के हित में करे। परमार्थिक कार्य हमें करना चाहिये। धर्म के दस लक्षण हैं, उसका पालन हमें अनिवार्य रूप से करना चाहिये। हम सबके मन में मैत्री का भाव बना रहे और भारत माता की सेवा निरन्तर करते रहना चाहिये। श्री सुहासराव हिरेमठ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जहां संगम होता है, वहां समरसता का भाव उत्पन्न होता है। संगम में ही श्रेष्ठता होती है। हमारे देश के प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ सेवा का भाव रहता है और वह हमारे खून में रचाबसा है। सम्पूर्ण देश में सेवा करने वालों की तादाद ज्यादा है। लाखों करोड़ों लोग देश में समाज के हित में नि:स्वार्थ भाव से सेवा करते चले आ रहे हैं। देश में जब तक दुर्बल हैं तब तक हम सबल नहीं हो सकते, इसलिये दुर्बलों की सेवा कर उन्हें आगे बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिये।
इस अवसर पर श्री अशोक सोहनी, श्री अरुण जैन, श्री बाबा साहब नवाथे, श्री पराग अभ्यंकर, श्री श्रीकांत, श्री स्वप्नील कुलकर्णी, श्री बाबूलालजी जैन, श्री इकबालसिंह गांधी, श्री तपन भौमिक, श्री मुकेश दिसावल, श्री राजेश पाटीदार, सुश्री सरिता कुन्हारे, श्री भरतभाई, सुश्री भारती दीदी ठाकुर, सुश्री साधना ताई, श्री राधेश्याम साबू, श्री गोपाल गोयल, श्री रवि भाटिया, सुश्री सुनिता दीक्षित, श्री रितेश सोनी व श्री ओम जैन आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन सुश्री प्रीति तेलंग ने किया तथा अतिथियों का परिचय श्री विवेक दुबे ने दिया।