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श्रीमद्भागवत महापुराण जड़वत जीवन में चैतन्यता का संचार करती है- साध्वी पदम्हस्ता भारती



 

भागवत कथा एक कल्पवृक्ष की भाँति मनोवांछित फल देती है- साध्वी पदम्हस्ता भारती

संस्थान आज सामाजिक चेतना व जनजाग्रति हेतु अध्यात्मिकता का प्रचार कर रहा है - साध्वी पदम्हस्ता भारती


    दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा सामाजिक न्याय परिसर, अगर रोड, चारक भवन के नजदीक, उज्जैन में दिनांक 22 से 28 जनवरी तक ‘श्री मद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ’ का भव्य व विशाल आयोजन किया जा रहा है।
    इस कथा के प्रथम दिवस पर श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या महामनस्विनी साध्वी सुश्री पदम्हस्ता भारती जी ने श्री मद्भागवत कथा का महात्म्य बताते हुए कहा कि वेदों का सार युगों - युगों से मानव जाति तक पहुँचता रहा है। ‘भागवत महापुराण’ यह उसी सनातन ज्ञान की पयस्विनी है जो वेदों से प्रवाहित होती चली आ रही है । इसीलिए भागवत महापुराण को वेदों का सार कहा गया है । साध्वीजी ने श्रीमद्भागवत महापुराण की व्याख्या करते हुए बताया कि श्रीमद्भागवत अर्थात जो श्री से युक्त है, श्री अर्थात् चैतन्य,सौन्दर्य, ऐश्वर्य, वो वाणी, वो कथा जो हमारे जड़वत जीवन में चैतन्यता का संचार करती है।जो हमारे जीवन को सुन्दर बनाती है वो श्रीमद्भागवत कथा है जो सिर्फ मृत्युलोक में संभव है।
साध्वीजी ने कथा कहते हुए यह बताया कि यह एक ऐसी अमृत कथा है जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है । इसलिए परीक्षित ने स्वर्गामृत की बजाए कथामृत की ही मांग की । इस स्वर्गामृत का पान करने से पुण्यों का उदय होता है ! किन्तु कथा मृत का पान करने से सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है । भागवत कथा एक कल्पवृक्ष की भाँति है जो जिस भाव से कथा श्रवण करता है, वह उसे मनोवांछित फल देती है और यह निर्णय हमारे हाथों में है कि हम संसार की माँग करते हैं या करतार की । भागवत कहती है कि यदि भक्ति चाहिए तो भक्ति मिलेगी, मुक्ति चाहिए तो मुक्ति मिलेगी।
    कथा के दौरान भागवत कथा महात्म्य में तुंग भद्रा नदी के तट पर निवास करने वाले आत्मदेव का वर्णन आता है। इस तुंगभद्रा के बारे में बताते हुए साध्वी पदम्हस्ता भारती जी ने बताया कि तुंगभद्रा अर्थात् कल्याण करने वाली, चौरासी लाख योनियों से उत्थान दिलवाने वाली यह मानव देह ही कल्याणकारी है जो हमें ईश्वर से मिलाती है। यह मिलन ही उत्थान है । आत्मदेव जीवात्मा का प्रतीक है, जिसका लक्ष्य मोह,आसक्ति के बंध्नों को तोड़, उस परमतत्व से मिलना है । यूँ तो ऐसी कई गाथाएं, कथाएं हम अनेकों व्रत व त्योहारों पर भी श्रवण करते हैं, लेकिन कथा का श्रवण करने या पढ़ने मात्रा से कल्याण नहीं होता ।अर्थात् जब तक इन से प्राप्त होने वाली शिक्षा को हम अपने जीवन में चरितार्थ नहीं कर लेते, तब तक कल्याण संभव नहीं।
साध्वीजी ने भीष्म देह त्याग के मार्मिक प्रसंग से भक्तों को भाव विभोर कर दिया । जिसे श्रवण कर सभी के हृदयों में प्रभु को प्राप्त करने की प्रार्थना प्रबल हो उठी।
इसके अतिरिक्त साध्वी जी ने अपने विचारों में संस्थान के बारे में बताते हुए कहा कि संस्थान आज सामाजिक चेतना व जन जाग्रति हेतु आध्यात्मिकता का प्रचार व प्रसार कर रही है।

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