भागवत महापुराण वेदों का सार- साध्वी पदमहस्ता भारती
सामाजिक न्याय परिसर में प्रारंभ हुआ भागवत कथा ज्ञान यज्ञ-28 जनवरी तक बहेगी अमृतधारा
उज्जैन। श्रीमद्भागवत भारतीय साहित्य का अपूर्व ग्रंथ है। यह भक्ति रस का ऐसा सागर है जिसमें डूबने वाले को भक्ति रूपीमणि, मणिक्यों की प्राप्ति होती है। भागवत कथा वह परमतत्व है जिसकी विराटता अपरिमित व असीम है। भागवत अर्थात् ‘भगवतः प्रोक्तम् इतिभागवत’ यानि भगवान की वह वाणी, वह कथा जो हमारे जड़वत जीवन में चैतन्यता का संचार कर दे, वही है श्रीमद्भागवतपुराण की गाथा। पापनाशिनी, मोक्षप्रदायिनी, भवभयहारिणी, इस श्रीमद्भागवत कथा को केवल मृत्युलोक में ही प्राप्त करना संभव है। वेदों का सार युगों-युगों से मानव जाति तक पहुँचता रहा है। ‘भागवतमहापुराण’ यह उसी सनातन ज्ञान की पयस्विनी है जो वेदों से प्रवाहित होती चली आ रही है। इसीलिए भागवत महापुराण को वेदों का सार कहा गया है।
उक्त बात सामाजिक न्याय
परिसर में प्रारंभ हुए भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के प्रथम दिन साध्वी पदमहस्ता भारती ने कही। कथा के मुख्य यजमान हरिसिंह यादव, रवि राय, श्याम जायसवाल, अजीत मंगलम, रेखा राय, कविता मंगलम, गायत्री जायसवाल, सुनीता यादव ने भागवत पूजन किया। तत्पश्चात कथा प्रारंभ हुई। प्रथम दिवस साध्वी पद्महस्ता भारती ने श्रीमद्भागवत कथा का महात्म्य बताते हुए कहा कि साध्वीजी ने श्रीमद्भागवतमहापुराण की व्याख्या करते हुए बताया कि श्रीमद्भागवत अर्थात जो श्री से युक्त है, श्री अर्थात् चैतन्य, सौन्दर्य, ऐश्वर्य। श्रीमद्भागवतीकथावार्ताः सुराणामऽपिदुर्लभा। साध्वीजी ने कथा कहते हुए यह बताया कि यह एक ऐसी अमृतकथा है जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। इसलिए परीक्षित ने स्वर्गामृत की बजाए कथामृत की ही मांग की। इस स्वर्गामृत का पान करने से पुण्यों का तो क्षय होता है पापों का नहीं। किन्तु कथामृत का पान करने से सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है। कथा के दौरान उन्होंने बताया कि व्यासजी कहते हैं कि भागवत कथा एक कल्पवृक्ष की भाँति है जो जिस भाव से कथा श्रवण करता है, वह उसे मनोवांछित फल देती है और यह निर्णय हमारे हाथों में है कि हम संसार की माँग करते हैं या करतार की। श्रीमद्भागवतेनैव भक्ति मुक्ति करेस्थिते। अर्थात् अगर भक्ति चाहिए तो भक्ति मिलेगी, मुक्ति चाहिए तो मुक्ति मिलेगी। आगे परीक्षित प्रसंग सुनते हुए उन्होंने कहा कि यह मानव देह कल्याणकारी है जो हमें ईश्वर से मिलाती है। यह मिलन ही उत्थान है। राजा परीक्षित जीवात्मा का प्रतीक है, जिसका लक्ष्य मोह, आसक्ति के बंधनों को तोड़, उस परमतत्व से मिलना है। यूँ तो ऐसी कई गाथाएं, कथाएं हम अनेकों व्रत व त्योहारों पर भी श्रवण करते हैं, लेकिन कथा का श्रवण करने या पढ़ने मात्र से कल्याण नहीं होता। अर्थात् जब तक इन से प्राप्त होने वाली शिक्षा को हम अपने जीवन में चरितार्थ नहीं कर लेते, तब तक कल्याण संभव नहीं। इस भव्य आयोजन में साध्वी श्यामलाभारती, सर्वज्ञाभारती, अवनीभारती, बोध्या भारती, अर्चना भारती, सम्पूर्णा भारती, निधिभारती व साथ ही स्वामी हितेन्द्रानंद, स्वामी मुदितानंदजी, गुरुभाई अनिरुद्ध, गुरुभाई तानाजीव, पवन इत्यादि उपस्थित हुए।