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बर्फ में जमा शहर और आस्था से जीवित इंसान


12 हजार फीट की ऊंचाई पर चूड़धार चोटी पर करीब 18 फीट बर्फ के बीच जिंदगी जिंदाबाद है. यहां सामान्य जीवन नहीं है, बल्कि योग साधना के दम पर ही इस तरह का जीवन बसर किया जा सकता है. ब्रह्मचारी स्वामी कमलानंद जी, दो शिष्यों कृपा राम व काकू के साथ इस वक्त भी चोटी पर मौजूद हैं.

बर्फ से ढक़ी चूड़धार चोटी का अद्भुत नजारा
बुधवार को एक ओर शिष्य कन्हैया ने जीवन को जोखिम में डाल कर चौपाल के सरैहन से चढ़ाई शुरू की थी. करीब 14 घंटों के बाद कन्हैया भी चोटी पर स्थित आश्रम तक पहुंचने में सफल हुआ. आश्रम से प्राचीन शिरगुल मंदिर तक पहुंचने के लिए हर साल की तरह इस साल भी दिसंबर में सुरंग बना ली गई थी, लेकिन असल बर्फबारी जनवरी महीने में ही शुरू हुई.

उत्तर भारत में ठंड का कोहराम 
ब्रह्मचारी स्वामी कमलानंद जी के आश्रम में अपने आसन से मंदिर के मुख्य पूजा स्थल तक की दूरी 20 मीटर है, लेकिन मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों में यह दूरी भी तय करना भी आसान नहीं होता.

 

25 फुट बर्फबारी का आंकड़ा हो सकता है पार
प्रदेश में बर्फबारी ने पिछले 25 सालों का रिकॉर्ड तोड़ा है. उम्मीद की जा रही है कि इस बार चोटी पर बर्फ का आंकड़ा 25 फुट आसानी से पार कर सकता है. पिछले कुछ सालों से ब्रह्मचारी स्वामी कमलानंद जी चोटी पर भयंकर बर्फबारी के बावजूद प्राचीन शिरगुल मंदिर में पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं.

आश्रम से मंदिर के मुख्य द्वार तक बर्फ में बनाई गई सुरंग
लगभग पांच साल पहले ब्रह्मचारी स्वामी कमलानंद जी ने अकेले ही चोटी पर रहने का फैसला किया था. संपर्क टूटने पर चोटी के तराई वाले क्षेत्रों में स्वामी जी की कुशलता को लेकर हड़कंप मच गया था, क्योंकि उस दौरान भी भयंकर बर्फ पड़ी थी. कुपवी क्षेत्र के लोगों का एक दल चोटी पर बमुश्किल स्वामी जी की कुशलता जानने के लिए जान जोखिम में डाल कर पहुंच गया था. तब से चोटी पर स्वामी जी को अकेले नहीं रहने दिया जाता.

आस्था की जिद ने संजो रखा है जीवन
शायद, समूचे हिमाचल में अपनी तरह की यह एकमात्र मिसाल होगी, जब इतनी ऊंचाई पर इतनी बर्फ में आस्था की जिद ने जीवन को बनाए रखा है. चोटी से हाल ही में लौटे पुजारी बीआर शर्मा ने बातचीत में कहा कि 12 फुट के आसपास बर्फ पड़ चुकी है. शर्मा ने बताया कि आश्रम के स्थान पर 12 फुट बर्फ है, जबकि चोटी के अंतिम छोर पर 15 फुट से अधिक बर्फ है. शर्मा ने कहा कि आज भी उनकी पंडित कृपाराम से चोटी पर बात हुई है. सब सकुशल हैं. चोटी पर कुल तीन लोग मौजूद हैं. इसमें एक सेवक कन्हैया बुधवार को लगभग 12-13 घंटे में चोटी पर पहुंचने में कामयाब रहा है.

चार महीने पहले जुटाया जाता है सामान
आश्रम में चार महीने पहले ही जरूरी सामान को जुटा लिया जाता है. इसमें लकड़ी व खाद्य सामग्री अहम है. बर्फ को पिघलाकर ही पानी का इस्तेमाल होता है. जेनरेटर को चलाने में खास सावधानी बरती जाती है, क्योंकि इससे निकलने वाली गैस ऑक्सीजन का लेवल कम होने के कारण जहरीली भी हो सकती है. सावधानी बरतते हुए ही आश्रम से बाहर कदम रखा जाता है.नहीं डूबा है प्राचीन मंदिर
चूंकि चोटी पर प्राचीन शिरगुल मंदिर का नया ढांचा बन रहा है, इसकी ऊंचाई 25 फीट से अधिक है. लिहाजा मंदिर का आखरी छोर बर्फ में नहीं डूबा है. मंदिर तक पहुंचने के लिए 10 से 12 फुट बर्फ के बीच लकड़ी के ढांचे से सुरंग तैयार की गई है.

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