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बुजुर्ग गंगाराम को सोशल मीडिया ने दिलाया न्याय



संदीप कुलश्रेष्ठ
 
                 एक बार फिर सोशल मीडिया की ताकत का पता चला हैं। पिछले दिनों उज्जैन के पास ग्राम चिंतामन जवासिया के एक बुजुर्ग गंगाराम से उज्जैन में शिप्रा किनारे सुनहरी घाट पर अमानवीय व्यवहार करने पर नगर नगम के तीन कर्मचारियों के निलंबित कर दिया गया हैं। करीब 80 वर्षीय बुजुर्ग की गलती सिर्फ यह थी कि वह बीमार था और घाट पर नहाने के लिए आया था । इसी दौरान उसे दस्त लग गए और  वह सुनहरी घाट पर एक कोने पर शौच के लिए बैठ गया । इसी बीच स्वच्छता अभियान के तहत नगर निगम की रोको टोको टीम वहा पहुंची और बुजुर्ग को शौच करते हुए देखकर उन्होंने बुजुर्ग के साथ न केवल गाली गलौच की बल्कि मारपीट भी की । उन्होंने अमानवीयता का व्यवहार करते हुए बुजुर्ग की ही धोती और उसके ही हाथ से ष्शौच भी साफ करवाई तथा इसका वीडियो भी बनाया । सुबह की गई इस कार्य की वाह वाही लुटने के लिए दोपहर में नगर निगम के उपायुक्त श्री षाह  को यह वीडियों दिखाया । षाह ने नगर निगम के ग्रुप पर इस वीडियो को अपलोड भी कर दिया। वीडियों के साथ यह भी लिखा कि सुनहरी घाट पर नगर निगम के द्वारा की गई कारवाई ।
                सोषल मीडिया पर यह वीडियों अपलोड होते ही तेजी से वायरल हो गया। जिसने भी नगर निगम उज्जैन के स्वच्छ भारत अभियान के तहत की गई इस  कारवाई को देखा , उसने इस वीडियों की आलोचना की और बुजुर्ग को न्याय दिलाने के लिए इसे वायरल कर दिया। देखते ही देखते शाम तक वीडियों प्रदेश और देश भर में फैल गया। अगले दिन जब नगर निगम के आयुक्त आशीष सिंह और महापौर श्रीमती मीना जोनवाल से जब नगर निगम के कर्मचारियों द्वारा वृद्ध ग्रामीण के साथ किए गए इस अमानवीय घटना के बारे में पूछा गया तो उन्होने वीडियों उज्जैन का होने से ही मना कर दिया। और मामले की लीपापोती में लग गए। 
                बुजुर्ग ग्रामीण गंगाराम के साथ हुए इस अमानवीय  व्यवहार के कारण देशभर मे नगर निगम के कार्यो की निंदा होने लगी, तब प्रदेश के नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव श्री मलय श्रीवास्तव ने नगर निगम आयुक्त से दोषियों के विरूद्व कारवाई करने के सख्त निर्देश दिए। तब कहीं जाकर नगर निगम के आयुक्त ने तीन कर्मचारियों को निलंबित किया। निलंबित कर्मचारियों में सफाई निरीक्षण मुकेश सारवान, सफाई कर्मचारी लक्की और राहुल हैं। 
             सोशल मीडिया ने अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते हुए इसके पूर्व भी अपनी ताकत का लोहा मनवा लिया हैं। सबसे पहले अन्ना हजारे और बाबा रामदेव के भ्रष्टाचार के विरूद्व किए गए आंदोलन के लिए सोशल मीडिया ने अपना महत्व प्रतिपादित किया था। दिल्ली के निर्भया कांड को भी सोशल मीडिया ने देश्ष भर में फैलाकर न्याय की गुहार लगाई थी। गुजरात के ऊना के दलितों के साथ हुए अमानवीय व्यवहार को भी सोशल मीडिया ने  फैलाकर नाइंसाफी के विरूद्ध आवाज बुलंद की थी। दक्षिण भारत के एक गांव के एक गरीब ग्रामीण को शव वाहन नहीं मिलने के कारण उसे अपनी पत्नी के शव को कंधे पर ढ़ोकर 10 किमी पैदल लाना पडा था। इस मजबूर व्यक्ति की दरिद्रता और करूणा को भी देश भर में  इसी सोशल मीडिया ने फैलाया था। 
               एक बार फिर पिछले दिनों उज्जैन में एक बुजुर्ग के साथ हुए अमानवीय व्यवहार को सोशल मीडिया ने फिर अपनी आवाज देकर देश भर ने उसे इंसाफ दिलाने की मुहीम आरंभ की । इसी कारण बुजुर्ग गंगाराम को न्याय मिला और नगर निगम के तीन कर्मचारियों को निलंबित किया गया। यह सोशल मीडिया की ताकत का परिचायक हैं। 
 

              

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