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श्रीमद देवी भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का भावपूर्ण समापन


 

यदि आंतरिक सुख की चाह हो तो अध्यात्मिक मार्ग का चयन करे : साध्वी अदिति भारती

अहंकार मनुष्य और भगवानके बीच सबसे बड़ा अवरोधक : साध्वी अदिति भारती

देवी माँ के साक्षात्कार से होता आतंरिक बुराइयों का नाश : साध्वी अदिति भारती

माँ ने काली अवतार धारण कर, किया आंतकवाद का अंत : साध्वी अदिति भारती

 

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा दिल्ली स्थित रामलीला मैदान, पीतमपुरा में आयोजित श्रीमद देवी भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिवस कथा व्याससाध्वी अदिति भारती ने माँ के विंध्यवासिनी स्वरुप, शुम्भ निशुम्भ व रक्तबीज वध, गायत्री महिमा आदि प्रसंगों को श्रद्धालुओं के समक्ष रखा| रक्तबीज वध की गाथा का विश्लेषण करते हुए समाज में बढती हुए आतंकवाद की समस्या पर भी साध्वी जी ने चर्चा की|

विन्ध्याचल के सुमेरु से इर्ष्या वश सूर्य के मार्ग को रोक लेने की कथा का वर्णन करते हुए साध्वी जी ने मनोवैज्ञानिक स्तर पर कथा का विश्लेषण कर बताया कि विन्ध्याचल रुपी अहंकार ही मानव और उस भगवती के मिलन में सबसे बड़ा अवरोधक है| और यह अहंकार ही समाज से सभी दुखों का भी कारण है क्योंकि अहंकार सदैव आतंकवाद का संग ले ही अपना विस्तार करता है| अगस्त्य मुनि रुपी सतगुरु ही ब्रह्मज्ञान प्रदान कर इस अहंकार का मर्धन करते हैं और आत्मा परमत्मा की मिलन गाथा का अंतिम अवरोधक भी अंत को प्राप्त करता है|

शुम्भ निशुम्भ के अंत की गाथा का वर्णन करते हुए साध्वी जी ने बताया की अहंकार रुपी इन दैत्यों का अंत करने के लिए माँ ने काली रूप धारण किया और रक्तबीज नामक आतंकी सेनापति का अंत कर माँ ने शुम्भ निशुम्भ का अंत किया| साध्वी जी ने बताया की आज भी हमारे समाज को आतंकित करने वाले यह रक्तबीज रुपी आतंकवादी ही है| इनका अंत करने के लिए एक बार फिर काली का प्रकटीकरण मानव के अंतस्त में करना होगा जो इन आतंकवादियों के भीतर पलने वाली नकारात्मक सोच का समूल अंत करे| सतगुरु ही ब्रह्मज्ञान प्रदान कर उस काली को एक मानव के भीतर प्रकट करते हैं और उसकी मानसिकता का समूल रूपांतरण कर देते है| साध्वी जी ने बताया की सर्व श्री आशुतोष महाराज जी ने सन 1980 के दौरान इसी ब्रह्मज्ञान की खडग से पंजाब के युवाओं में पनप रहे आतंकवाद के बीजों का अंत किया और उन्हें आतंकवाद से समाज सुधार की ओर मोड़ दिया| 

माँ गायत्री ही वह अदि नाम है जिससे यह सम्पूर्ण जीवन तंत्र स्पंदित है| साध्वी जी ने बताया कि माँ का शास्वत नाम अजपा है, शब्दों और लिपि से परे हैं वह निरंतर हमारी स्वांसों मे चल रहा है| उस आदि स्पंदन से जुड कर ही समाज मे व्याप्त भावों की अनावृष्टि का अंत संभव् है| एक पूर्ण सतगुरु ही मानव को उसकी स्वांसों मे चल रही इस अजपा जप गायत्री से परिचित करवाते है|

श्रीमद देवी भगवत के अंतिम अध्याय की कथा को रखते हुए साध्वी जी ने बताया की पुराण मे वर्णित अम्बा यग्य कुछ और नहीं अपितु वही ब्रह्मज्ञान है जिसका वर्णन देवी गीता मे स्वयं माँ ने किया है|

 

 

 

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