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GST परिषद में सहायक बिलों पर बनी सहमति


जीएसटी परिषद ने अप्रत्यक्ष कर की नई व्यवस्था जीएसटी से जुड़े सहायक विधेयकों के मामले में अच्छी प्रगति की है लेकिन करदाताओं पर नियंत्रण और प्रशासन से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा अगली बैठक तक टाल दी गयी। इससे एक अप्रैल से जीएसटी को अमल में लाना मुश्किल लगता है।

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जीएसटी के क्रियान्वयन के लिये संविधान संशोधन विधेयक के सितंबर मध्य में पारित होने के बाद परिषद की यह सातवीं बैठक हुई। जीएसटी परिषद ने मुआवजा व्यवस्था में भी बदलाव किया जिसमें राज्यों को राजस्व क्षतिपूर्ति हर दो महीने में की जायेगी जबकि पहले तिमाही आधार पर भुगतान का फैसला किया गया था। साथ ही परिषद ने क्षतिपूर्ति के लिये पूर्व में विलासित तथा तंबाकू जैसे नुकसानदायक वस्तुओं पर लगने वाले उपकर के अलावा ‘किसी अन्य कर से’ भी कोष जुटाने का भी फैसला किया क्योंकि राज्यों का मानना है कि नोटबंदी के बाद आर्थिक गतिविधियां नरम पड़ रही हैं और इससे कर संग्रह पर प्रभाव पड़ेगा।

जीएसटी परिषद की अगली बैठक तीन और चार जनवरी को होगी जिसमें इस मुद्दे पर गौर किया जाएगा कि जीएसटी लागू होने के बाद कौन से करदाता केंद्र के नियंत्रण में होने चाहिए तथा कौन से राज्यों के दायरे में आने चाहिए। जीएसटी केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सेवा कर तथा वैट का स्थान लेगा। दोहरा नियंत्रण एकीकृत जीएसटी विधेयक का हिस्सा है जिसे नई व्यवस्था लागू होने से पहले संसद को पारित करना है। हालांकि परिषद ने केन्द्रीय जीएसटी तथा राज्य जीएसटी (सीजीएसटी और एसजीएसटी) पर लगभग अपनी मुहर लगा दी। इससे जुड़े अधिकतर उपबंधों को मंजूरी मिल गयी है। इन दोनों विधेयकों को संसद से पारित कराना है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा कि जीएसटी परिषद ने राज्यों के राजस्व में होने वाले नुकसान के लिये क्षतिपूर्ति से संबंधित विधेयक को भी मंजूरी दे दी है लेकिन कानूनी भाषा के साथ अंतिम मसौदे को अगली बैठक में मंजूरी दी जाएगी। जीएसटी परिषद की दो दिन चली बैठक आज समाप्त हुई।

यह पूछे जाने पर कि एक अप्रैल की समयसीमा अब भी है, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, ‘मैं इसके लिये अपनी तरफ से हर संभव प्रयास कर रहा हूं। मैं किसी चीज के साथ खुद को बांधने नहीं जा रहा हूं। हमारा प्रयास यथाशीघ्र इसे लागू करने की दिशा में है और मुझे लगता है कि हम युक्तिसंगत रूप से आगे बढ़ रहे हैं।’ जीएसटी परिषद लगातार तीन बैठकों में दोहरे नियंत्रण के मुद्दे पर चर्चा नहीं कर सकी। पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्य चाहते हैं कि इस बारे में निर्णय करने के लिये कि करदाता का नियंत्रण किसके पास होगा, न्यूनतम कारोबार मानदंड को नियत किया जाए। इस प्रस्ताव से केंद्र सहमत नहीं है क्योंकि उसका कहना है कि राज्यों के पास सेवा कर जैसे कर लगाने की विशेषज्ञता नहीं है।

जेटली ने कहा, ‘अगर आप मुझसे पूछते हैं कि कौन से महत्वपूर्ण मुद्दे बच गये हैं, तो वास्तव में मुख्य रूप से आईजीएसटी तथा दोहरे नियंत्रण का मुद्दा है। दूसरा मुद्दा इन विधेयकों की विधि मान्य भाषा है जिसे तीन-चार जनवरी को होने वाली अगली बैठक में रखा जाएगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि परिषद उसके बाद जीएसटी के तहत कर दर की हर श्रेणी में शामिल की जाने वाली वस्तुओं के मुद्दे को लेगी।

पूर्व में लक्जरी कारों तथा तंबाकू जैसे प्रतिकूल प्रभाव वाली वस्तुओं पर उपकर लगाकर राज्यों को मुआवजे के लिये राशि जुटाने का प्रस्ताव किया गया था लेकिन नोटबंदी के बाद राज्यों का मानना था कि अब अधिक राज्यों को जीएसटी के क्रियान्वयन से होने वाले राजस्व के नुकसान के लिये समर्थन की जरूरत होगी। पहले यह सोचा गया था कि राजस्व नुकसान के लिये 4-5 राज्यों को मुआवजे की जरूरत होगी। लेकिन 500 और 1,000 रुपये के नोटों पर पाबंदी से राजस्व में नुकसान के कारण अब और अधिक राज्यों को राजस्व सहायता की आवश्यकता हो सकती है।

सूत्रों के अनुसार ‘मुआवजा कोष के स्रोत’ से जुड़े कानून के हिस्से को फिर से तैयार किया जा रहा है। इसमें मुआवजा राशि को उपकर और जीएसटी परिषद के निर्णय के आधार पर अन्य कर के जरिये जुटाये जाने पर फैसला किया जायेगा। राज्य के मंत्रियों की राय थी कि पूर्व में 55,000 करोड़ रुपये के मुआवजे का जो फैसला किया गया था, उस पर फिर से काम करना होगा क्योंकि नोटबंदी के बाद राज्यों के राजस्व पर ज्यादा असर हो सकता है।

पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा कि राज्यों को चालू वित्त वर्ष की तीसरी और चौथी तिमाही में 20 से 30 प्रतिशत के बीच राजस्व का नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के कारण उन राज्यों की संख्या बढ़ सकती है जिन्हें मुआवजा दिया जाना था। इसका कारण नोटबंदी से कर संग्रह पर असर है।

वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि अब तक जो भी फैसले किये गये हैं, वे सर्वसहमति के आधार पर किये गये हैं। कोई भी निर्णय ‘मतदान या दो तथा लो’ के आधार पर नहीं किये गये। यह पूछे जाने पर कि एक अप्रैल की समयसीमा अब भी है, जेटली ने कहा, ‘मैं इसके लिये अपनी तरफ से हर संभव प्रयास कर रहा हूं। मेरे ऊपर छोड़ा जाए तो मैं इसे लागू करना चाहूंगा।’ दोहरे नियंत्रण के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि एक ही कानून है और दो प्रशासन है। अब सवाल यह है कि ऑडिट प्रबंधन के लिये अधिकार क्षेत्र को कैसे बांटा जाए।

वित्त मंत्री ने कहा, ‘इसका समाधान सूझ-बूझ से किया जाएगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि आज की बैठक में यह फैसला किया गया कि राज्यों को मुआवजा हर दो महीने पर किया जाएगा। उन्होंने कहा कि राज्यों को जीएसटी क्षतिपूर्ति के तहत किसी भी प्रकार के राजस्व नुकसान की पूरी भरपाई शुरुआती पांच साल के लिये की जाएगी और क्षतिपूर्ति कानून को केवल संसद द्वारा ही मंजूर किया जाना है।

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