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डॉक्टर की कमी का अजब तरीका खोजा सरकार ने , सरकार आयुर्वेदिक औषधालयों को बंद करने पर तुली



डॉ. चन्दर सोनाने
 
                प्रदेश के ग्रामीण अंचल के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की कमी का राज्य सरकार ने अजब तरीका खोजा हैं। राज्य सरकार ने हाल ही में यह निर्णय लिया हैं कि आयुर्वेदिक डॉक्टर अब एलोपैथिक दवाएं भी लिख सकेंगे । उनको तीन माह के प्रशिक्षण के बाद आयुर्वेदिक से एलोपैथिक डॉक्टर बना दिया जाएगा। राज्य सरकार के इस निर्णय का चारों और से विरोध हो रहा हैं।  
                   आयुर्वेदिक डॉक्टरों को एलोपैथिक दवा लिखने की इजाजत को लेकर मध्यप्रदेश के डॉक्टरों ने राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने हाल ही में राज्य शासन के इस निर्णय का विरोध कर आंदोलन भी किया, किंतु सरकार पर इसका कोई असर नहीं हुआ। हाल ही में मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग से 752 आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारियों का चयन हुआ हैं। सरकार इन्हें तीन तीन माह का प्रशिक्षण देकर 27 तरह की बिमारियों में करीब 100 से ज्यादा इस्तेमाल होने वाली दवाओं के नाम बताए जा रहे हैं। तीन माह की ट्रेनिंग के बाद इन्हें उन प्राथमिक स्वास्थ केंद्र में पदस्थ किया जाएगा जहां डॉक्टरों की कमी हैं। और फिर ये आयुर्वेदिक डॉक्टर एलोपैथिक दवाएं लिखकर मरीजों का स्वास्थ्य ठीक करेंगे।
         मध्यप्रदेश आयुर्वेद महासम्मेलन के प्रांताध्यक्ष डॉ एस एन पांडे का इस संबंध में स्पष्ट विरोध हैं । उनका कहना हैं कि प्रदेश में कुल 1450 आयुर्वेद औषधालय हैं । वर्तमान में इन औषधालयों की हालत बहुत खस्ता हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सकों के 25 प्रतिशत पद ही भरे हुए हैं । अभी 75 प्रतिशत पद खाली हैं। लोक सेवा आयोग से चयनित डॉक्टरों को इन आयुर्वेदिक चिकित्सालय में पदस्थ करने की वकालात डॉ. पांडे करते हुए कहते हैं कि यदि ऐसा नहीं होगा तो आयुर्वेदिक औषधालय धीरे-धीरे बंद हो जाएंगे। यह बहुत खराब स्थिति होगी।
          एलोपैथिक के डॉक्टरों की कमी की पूर्ति आयुर्वेदिक डॉक्टर से करने का सरकार का फैसला आश्चर्यजनक हैं । मजेदार बात यह हैं कि स्टेट मेडिकल कौंसिल के नियमों में बिना संशोधन किए ही प्राथमिक स्वास्थ केंद्रों में आयुर्वेदिक डॉक्टरों को पदस्थ किया जा रहा हैं। वर्तमान में स्टेट मेडिकल कौंसिल में रजिस्टर्ड डॉक्टर ही एलोपैथिक दवाएँ लिख सकते हैं। डीएमई डॉ. जी एस पटेल का इस संबंध मे यह कहना हैं कि अभी आयुर्वेदिक कौंसिल के नियमानुसार आयुर्वेदिक डॉक्टरों को ट्रेनिंग दी जा रही है। ये डॉक्टर भी सामान्य बीमारियों में दवाएं लिख सकते हैं । हालांकि इसके लिए स्टेट मेडिकल कौंसिल के नियमों में संशोधन करना होगा। जो अभी तक नहीं किया गया हैं।
         आईएमए के अध्यक्ष डॉ. संजय लोडे का कहना हैं कि उनके संस्था ने राज्य सरकार के इस निर्णय का विरोध किया हैं । यदि सरकार ने आदेश वापस नहीं लिया तो हम कोर्ट जाएंगे। आयुर्वेदिक डॉक्टर भी इसका विरोध कर रहे हैं। अर्थात एलोपैथिक के डॉक्टर और आयुर्वेदिक के डाक्टर दोनां राज्य सरकार के इस निर्णय का विरोध कर रहे हैं। इसके बावजूद सरकार आयुर्वेदिक डॉक्टर को एलोपैथिक डॉक्टर बनाने में तुली हुई है। हाल ही में विधानसभा में भी इस संबंध में लाए गए मध्यप्रदेश आयुर्वेदिक , यूनानी तथा प्राकृतिक चिकित्सा व्यवसायी विधेयक को पारित करने के दौरान भी हंगामा हो गया । कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष और तत्कालीन कांग्रेस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके डॉ. बाला बच्चन ने भी सरकार के इन निर्णय का खुलकर विरोध किया हैं।
           राज्य सरकार पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रो में डॉक्टरों के रिक्त पदों को भरने की जिम्मेदारी हैं। वह प्रयास करें और आकर्श वेतन देकर ग्रामीण क्षेत्रों में  रिक्त डॉक्टरों की पूर्ति करें। किंतु राज्य सरकार को आयुर्वेदिक औषधालय में भी रिक्त पदों पर डाक्टरों की नियुक्ति करना चाहिए। अभी ग्रामीण क्षेत्रों में आयुर्वैदिक औशधालयों के प्रति आम जनों का जुडाव व झुकाव हैं। यदि इन आयुर्वेदिक अस्पतालों में डॉक्टर पदस्थ नही करेंगे तो आयुर्वेदिक औशधालय डॉक्टर विहीन हो जाएंगे। जब आयुर्वेदिक औषधालयों में डॉक्टर ही नहीं रहेंगे तो लोग धीरे-धीरे वहां जाना बंद कर देंगे। और एक दिन ऐसा आएगा, जब आयुर्वेदिक औषधालय बंद हो जाएंगे। यह स्थित अत्यंत दुखद होगी। इसलिए प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को इस दिशा में ध्यान देना होगा, ताकि आयुर्वेदिक औषधालय भी चलते रहें और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर ऐलोपैथिक डॉक्टर ही पदस्थ हो। ऐसा होने पर आमजन को आयुर्वेदिक और एलोपैथिक दोनों चिकित्सा सुलभ हो सकेगी।

 

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