समाज के मुंह पर तमाचा जडता समाज का ही दूसरा रूप!
स्निग्धा श्रीवास्तव
आज से 4 साल पहले दिनांक 16 दिस्बर 2012 को एक दिल दहलाने वाली घटना...जिसे मात्र सुनने भर से रूह कांप जाती है....जीं हा हम बात कर रहे है निर्भया काण्ड की। 16 दिस्बर की यह घटना बार-बार यह दिलाती है कि किस तरह अमानवीयता का शिकार हुइ एक लडकी। बात सिर्फ निर्भया की ही नहीं है...इससे पहले और अब तक आए दिन ना जाने किनती निर्भया इस तरह की अमानवीयता का शिकार होती है।...
बलात्कार हमारे देश में सबसे बडी और गंभीर समस्या बनती जा रही है। हम आए दिन ऐसी घटनाओं को सूनते है। कभी किसी महिला का बलात्कार किसी सूनसान जगह पर किया जाता है तो कभी अकेले का फायदा उठाकर उसके अपने घर में ही उसे बलात्कार का शिकार बना लिया जाता है।
ऐसी घटनाओं के बाद अक्सर लोगों के कहते सूना है कि जरूर उस लड़की की गलती होगी...उसने छोटे कपड़े पहन रखे होंगे या वो ल़ड़की बतचलन होगी.....लेकिन आश्चर्य की बात है हमने कभी ऐसा नहीं सूना है कि कोई यह कहे उस पुरूष ने गलत किया या उसकी गलती होगी। गलती चाहे जिसकी भी हो इसका खामियाजा किसे भुगतना पडता है....जीं हां बलात्कार जैसी भयावह घटना के बाद पिडिता की हालत और मानसिक स्थिति का कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता है।
अगर रेप के लिए सिर्फ महिला को जिम्मेदार माना जाता है...और उनके पहनावे व चाल-चलन को दोष दिया जाता है तो फिर उन मासूम बच्चियों का क्या दोष है जिनकी उम्र महज 6-7 वर्ष की होती है....या वह फिर नाबालिग होती है।................ जी हां इस बात से कोई भी अनजान नहीं है कि हमारे देश में नवजात बेटी से लेकर महज 12-13 साल की बेटीयां भी रेप का शिकार होती है।
अब सवाल यह उठता है कि वर्तमान समय में जहां बेटीयों को बेटो के बराबर का दर्जा दिया जा रहा है...और हर क्षेत्र में अपना नाम कमा रहीं है वहां क्या ऐसी घटनाएं समाज को विचलित नहीं करती है। इसी समाज के उन पुरूषो की मानसिकता इतनी विकृत कैसे है? क्या उन्हें पुलिस प्रशासन या समाज का डर नहीं है....या उन्हें समाज ही यह सब करने के लिए प्रेरित करता है, क्योकि वो भी तो इसी समाज के हिस्सा ही तो होते है।
एक आंकडे के अनुसार देश में हर 14 मिनट पर एक महिला बलात्कार जैसी भयावह घटना का शिकार होती है। सन् 2014 में कुल 36,975 रेप के मामले दर्ज हुए थे। आपको बता दे कि लगभग हर 4 घंटे में एक गैंगरेप की वारदात होती है और हर 13 घंटे में एक महिला अपने किसी करीबी द्वारा रेप का शिकार होती है। इतना हीं नहीं हर 17 घंटे पर 6 साल तक की बच्चियां भी रेप का शिकार होती है। यह आंकडे तो उन मामलो के है जिनकी रिकॉर्ड दर्ज होते है और सामने आती है, इसके अलावा ना जाने कितने मामले ऐसे होते है जो मामुली समझ कर पुलिस दर्ज ही नहीं करते है और हैरानी की बात तो यह कि हमारे समाज में आज भी ऐसी निदंनिय घटनाओ को मात्र लोक-लज्जा के कारण छिपा लिया जाता है।
ऐसी घटनाओं को सूनकर और देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि महिलाएं कहीं भी सूरक्षित नहीं है..चाहे वह घर से बाहर हो या अपने घर मे हो। आखिर हमारा समाज इतना कुंठित क्यों है कि महिलाए कहीं भी बीना किसी भय के रह सके? ऐसी घटनाओं के बाद अधिकत्तर महिलाओं को अपराधी द्वारा या तो मार दिया जाता है या महिलाएं खुद हीं अपने लिए मौत का रास्ता चुन लेती है। अपने ही समाज में अपने हीं लोगो के बीच रह कर क्यों महिलाओं को ऐसे अपराधो का सामना करना पड रहा है और कब तक वह इसका शिकार होती रहेंगी? इसका जवाब तो समाज ही दे सकता है। यह कैसा समाज है जो अपने ही बहन-बेटीयों की सूरक्षा नहीं कर सकता है।
आखिर इन सबके लिए जिम्मेदार कौन है, पुलिस, पूरूष या महिलाएं? अपराधियों को क्या पुलिस प्रशासन का डर नहीं है? जिम्मेदार कोई भी है बलात्कार जैसी घटनाओं पर अंकुश लगाना बेहद आवश्यक है और इसके लिए सिर्फ पुलिस प्रशासन हीं नहीं समाज को भी आगे बढ़ना होगा।
कहते अकेला चना भाड नहीं फोड सकता है इसलिए सभी को एक-साथ मिलकर इस पर विचार करना चाहिए। और अगर हर पूरूष अकेली महिला को नुकसान पहुचांने की बजाय उसकी सूरक्षा करें तो निश्चित ही यह समस्या कम हो सकती है। इतना हीं नहीं महिलाओं को भी अपनी सूरक्षा के लिए खुद ही ठोस कदम उठाने होंगे और उन्हें हमेशा सचेत रहना होगा।
Poem
आ गई हमें फिर से तेरी याद
आज वही दिन है और रात भी वही !
रूह कांप जाते है याद करके भी जब
तेरी आह.... राह गुजर के भी ना सून पाया कोई !
तेरे दर्द को ना समझ पाया कोई... कोई भी नहीं
औऱ बस दिखावे के लिए सारी दूनिया रोयी !
जो थे कल दरिंदे इस जहां के तेरे लिए
उनसे ना दुर कर पाया हमें भी कोई!
बोला तो बहुतो ने मिलेगा तुझे इंसाफ मगर
आज भी तेरे जैसी ना जाने कितनी रोयी!
हर रोज आबरु गई ना जाने कितने बहनों की
इन दरिंदो से ना बच पाई नन्ही सी जान भी कोई!
मरना है जब यूं बदनाम हो के हर नारी को
तो कह दो दुनिया वालो से ना रोके भ्रूणहत्या कोई!
ना करो खिलवाड़ इस सून्दर प्रकृति की देन से
याद रखो बिन नारी के ना है नर का वजूद कोई!
सलाम करते है हम तुझे ऐ मौत से अन्त तक लड़ने वाली
तेरे साथ ना जाने कितनी आंखे रोयी रोयी रोयी और बस रोती रही........!