top header advertisement
Home - आपका ब्लॉग << भारत में रिसर्च को बढ़ावा देने की जरूरत , छात्रों को इतने पैसे मिले कि वे नौकरी पर नहीं दें ध्यान

भारत में रिसर्च को बढ़ावा देने की जरूरत , छात्रों को इतने पैसे मिले कि वे नौकरी पर नहीं दें ध्यान



संदीप कुलश्रेष्ठ
 
                हाल ही में फिक्की ने जारी की गई एक रिपोर्ट में यह बताया कि देश में रिसर्च पर ध्यान केंद्रीत करने वाली यूनिवर्सिटी की  संख्या केवल 90 हैं । इसमें से भी करीब 80 प्रतिशत विश्व विद्यालय केंद्र शासन के अंतर्गत हैं अथवा उनके द्वारा अनुदान प्राप्त हैं। निजी विष्वविद्यालयों में रिसर्च पर बहुत कम  ध्यान दिया जा रहा हैं। देश में रिसर्च की संख्या के मामले में भी हालत अन्य देशों से बहुत पीछे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रत्येक 10 लाख लोगों में मात्र 157 शोधार्थी हैं। अन्य देशों में यह आंकडा बहुत ज्यादा हैं। अमेरिका में प्रति 10 लाख लोगों में 4019 , चीन में 1113 और जापान मे सर्वाधिक 5386 शोध छात्र हैं। हमारे देश में शोध करने वाले छात्र को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता हैं। इसके लिए अत्यंत जरूरी यह भी हैं कि शोध करने वाले छात्रों को कम से कम असिस्टेंट प्रोफेसर के वेतनमान की राशि मिले, ताकि वह पीजी करने के तुरंत बाद अन्य नौकरी की और नहीं भागते हुए अपना ध्यान शोध पर ही केंद्रीत कर सकें।
                        हमारे देश की तुलना में विश्व के अनेक देशो में शोध की स्थिति बहुत अच्छी होने के कई कारणों में एक कारण यह भी हैं कि वहां शोध करने वाले छात्रों को प्रतिमाह बहुत अच्छी शोधवृत्ति मिलती हैं। हमारे देश में स्थिति इस मामले में अत्यंत दयनीय हैं। पीजी करने के बाद छात्र को यदि जूनियर रिसर्च फेलो के लिए चयन होता हैं तो उन्हें मात्र 25 हजार रूपये प्रतिमाह ही मिलते हैं। सीनियर रिसर्च फैलो को भी मात्र 28 हजार रूपये प्रतिमाह ही मिलते हैं। यह भी अनुबंध के आधार पर छह महिने के लिए उक्त राशि दी जाती हैं। और संतोषप्रद कार्य  होने पर विभागाध्यक्ष द्वारा यह अवधि फिर छह माह बढा दी जाती हैं। इतनी कम राशि मिलने पर छात्रों की रूचि शोध के प्रति कम हो जाती हैं। अैर वे शोध की बजाय सम्मानजनक वेतन प्राप्त करने के लिए नौकरी को ढूंढने में लग जाते हैं । नौकरी मिलते ही वे शोध को अल्विदा कह देते हैं।
                यही हालत हमारे देश में पीएचडी करने वाले छात्रों की भी हैं। उन्हें पीएचडी करने के दौरान चार साल की अवधि में प्रतिमाह केवल पच्चीस से अट्ठाईस हजार रूपये प्रति माह ही मिलते हैं। कल्पना कीजिये कि किसी भी विशय में पी जी करने वाले छात्र को अथवा एमटेक करने वाले इंजीनियरिंग छात्र को स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करने के बाद भी पीएचडी करने के दौरान जब प्रतिमाह मात्र 28 हजार रूपये मिलेंगे तो वह पीएचडी क्यों करेगा ? उच्च शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी नौकरी कर अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करना चाहता हैं। यदि किसी छात्र ने पीएचडी करने के लिए एडमिशन ले भी लिया तो वे छात्र इसके साथ ही अच्छी नौकरी ढूंढने में लगे रहते हैं। अच्छी नौकरी मिलते ही वे छात्र पीएचडी करना छोड़ देते हैं।
                 मानव संसाधन विकास मंत्रालय की वर्ष 2014-15 की एक रिपोर्ट के अनुसार केवल 18 प्रतिशत पीएचडी छात्र ही अपनी डिग्री पूरी करते हैं।  शेष  82 प्रतिशत छात्र बीच में ही इस शोध अध्ययन को छोड़ देते हैं। उक्त रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में उक्त वर्ष में एक लाख 17  हजार 301 छात्रों ने पीएचडी में प्रवेश लिया था। लेकिन इसी साल पीएचडी की डिग्री करने वालों की संख्या मात्र 21 हजार 830 थी। यह संख्या भी पीछले तीन सालों से कम हैं। वर्ष 2013 -14 में कुल एक लाख 7 हजार 890 ने पीएचडी में प्रवेश लिया था। इस वर्ष मात्र 23 हजार 861 ने डिग्री ली। इसी प्रकार वर्ष 2012 - 13 में कुल 95 हजार 425 छात्रों ने पीएचडी ने प्रवेश लिया था। इस वर्ष 23 हजार 630 छात्रों ने डिग्री प्राप्त की थी।
                 हमारे देश में शोध पर किया जाने वाला कम खर्च भी सबसे बढ़ा कारण हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिव्यक्ति के हिसाब से रिसर्च पर सिर्फ 12 डालर खर्च किए जाते हैं। यह आंकडा केन्या और दक्षिण अफ्रीका से भी कम हैं। यह स्थिति अत्यंत दुखद हैं। हमारे देश की शिक्षण संस्थाओं में संसाधनों की कमी लगातार बनी हुई हैं। इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता हैं।
                  शोध की दिशा में अच्छे परिणाम हासिल करने के लिए जरूरत इस बात की हैं देश के विष्वविद्यालयों  में शोध के लिए न केवल पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराए जाए, बल्कि शोध के इच्छुक छात्रों को इस और आकर्शित करने के लिए पर्याप्त आकर्शक शोध वृत्ति भी दी जाए। ऐसा करने से छात्र शोध करने के दौरान अन्य नौकरी की तरफ आकर्षित नहीं हो सकेंगे। और वे अपना शोध कार्य न केवल कर सकेंगे, बल्कि उस दिशा में उच्च गुणवत्ता का मानक भी स्थापित कर सकेंगे। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर से अपेक्षा है कि वे इस दिशा में गंभीरता पूर्वक सोचेंगे और ठोस कारवाई करेंगें।

 

Leave a reply