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ताकि जीवन का हर क्षण निर्माण का सन्देश बन जाये



-ललित गर्ग-

एक नये समाज एवं राष्ट्र का निर्माण करने के लिये नये मनुष्यों की जरूरत है। ऐसे मनुष्यों का जीवन वह दुर्लभ क्षण है, जिसमें हम जो चाहें पा सकते हैं। जो चाहें कर सकते हैं। यह वह अवस्था है, जहां से हम अपने जीवन को सही समझ दे सकते हैं। इसके लिये जरूरी है हम श्रेष्ठताओं से जुड़े, अपने उद्देश्य के प्रति जागरूक रहे। अपनी विकास यात्रा में कभी किसी गलती को प्रश्रय न दें। श्रेष्ठताओं की अक्षयनिधि को समेटकर कमजोरियों एवं बुराइयों के सभी छिद्रों को बन्द कर दें ताकि जीवन का हर क्षण निर्माण का सन्देश बन जाये। इसी सन्दर्भ में आर्ट लिंकलैटर ने कहा कि ऐसे लोगों के लिए परिणाम सर्वश्रेष्ठ रहते हैं जो कि सामने आने वाली परिस्थितियों में सर्वश्रेष्ठ कार्य निष्पादन करते हैं।”
आज हमारा देश एक नयी करवट ले रहा है, इसको अधिक सशक्त एवं प्राणवान बनाने के लिये नयी दिशा की ओर ले जाना है। इसके लिये हमें एक ऐसे परिवेश को निर्मित करना होगा, जहां श्रम की हर बूंद एक नया सृजन होें, जहां हर अक्षर हमें नया आयाम दे। वहां का हर शब्द नया वेग दे और हर वाक्य नया क्षितिज दे। यूं कहा जा सकता है कि अभ्युदय का ऐसा प्राणवान और जीवंत पल हमारे हाथ में आया है। एक दिव्य, भव्य और नव्य महाशक्ति हमारे पास में है। हम इसका उपयोग किस रूप में करते हैं, यह हम पर ही निर्भर करता है। शक्ति का व्यय तीन प्रकार से किया जा सकता है-उपयोग, सदुपयोग और दुरुपयोग। देखना यह है कि हमारी स्वतःस्फूर्त प्रेरणा हमें किस तरफ ले जाती है? विलियम ए. वार्ड ने इसी परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए कहा भी है कि प्रतिकूल परिस्थितियों से कुछ व्यक्ति टूट जाते हैं, जबकि कुछ अन्य व्यक्ति रिकार्ड तोड़ते हैं।’
उपयोगी जीवन जीने वालों ने सदा अपने वर्तमान को आनंदमय बनाया है। शक्ति का सदुपयोग करने वालों ने वर्तमान को दमदार और भविष्य को शानदार बनाया है। मगर अफसोस इस बात का है कि शक्ति और समय का दुरुपयोग करने वाला न तो वर्तमान में सुख से जी सकता है और न ही अपनी भविष्य को चमकदार बना सकता है। थामस ए. बेन्नेट ने कहा भी है कि एक बार किसी कार्य को करने का लक्ष्य निर्धारित कर लेने के बाद, इसे हर कीमत तथा कठिनाई की लागत पर पूरा करें। किसी कठिन कार्य को करने से उत्पन्न आत्म विश्वास अभूतपूर्व होता है।’
अपनी समस्त भावुकता और चंचलता को दूर करके हमें अपने अस्तित्व के गहनतम तल में डुबकी लगाने का प्रयास करना है। यहां मिलने वाली ऊर्जा अन्य सभी तलों की ऊर्जा की अपेक्षा सर्वोपरि है। इसमें सामथ्र्य अत्यधिक है। हम यहां जो पा सकते हैं, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकेगा। यहां जो हो सकता है, वह अन्यत्र कहीं भी नहीं हो सकेगा। श्रद्धा और समर्पण से जुड़कर बाहर की दुनिया से मुड़कर एक बार अंदर देखने का सही ढंग से प्रयत्न तो करें। मनुष्य जन्म की सार्थकता केवल सांसों का बोझ ढोने से नहीं होगी एवं केवल योजनाएं बनाने से भी काम नहीं चलेगा, उसके लिए खून-पसीना बहाना होाग। अपने स्वार्थों को त्यागकर परार्थ और परमार्थ चेतना से जुड़ना होगा। आज देश को ऐसे क्षमतावान, निष्ठावान, कर्मठ एवं जुझारू व्यक्तित्वों एवं नेताओं की जरूरत है जो देश का समग्र एवं संतुलित विकास कर सके। थोमस एडिसन ने कहा है कि जीवन में अनेक विफलताएं केवल इसलिए होती हैं क्योंकि लोगों को यह आभास नहीं होता है कि जब उन्होंने प्रयास बन्द कर दिए तो उस समय वह सफलता के कितने करीब थे।’
व्यक्ति में तीन प्रकार की क्षमताएं होती हैं-सहज, अर्जित और ओढ़ी हुई। सहज क्षमता किसी-किसी में होती है। जिसमें यह होती है उसका व्यक्तित्व काफी अंशों में पूर्ण होता है। वह जो कुछ सोचता है उसे उसी रूप में निष्पन्न कर लेता है। कार्य की निष्पत्ति के लिए न तो निरर्थक दौड़-धूप करनी पड़ती है और न ही वह किसी अवसर को खो सकता है। सहज-समर्थ व्यक्ति अपने काल को इतना उजागर कर देता है कि शताब्दियांे-सहस्त्राब्दियों तक वह युग के चित्रपट पर मूर्तिमान रहता है।
कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो बहुत ही साधारण व्यक्तित्व लेकर इस धरती पर आते हैं, किन्तु अपने पुरुषार्थ से चमक जाते हैं। उन्हें व्यक्तित्व-विकास के लिए जो भी अवसर मिलता है, वे मुक्तभाव से उसका उपयोग करते हैं। इनकी क्षमता अर्जित होती है, फिर भी कालांतर में वह स्वाभाविक-सी बन जाती है। ऐसे व्यक्ति भी अपने समाज और देश को दुर्लभ सेवाएं दे सकते हैं। इसीलिये ऐसे व्यक्तियों के लिये डोनाल्ड एम. नेल्सन को कहना पडा कि हमें यह मानना बन्द कर देना चाहिए कि ऐसा कार्य जिसे पहले कभी नहीं किया गया है, उसे किया ही नहीं जा सकता है।’
तीसरी पंक्ति में वे व्यक्ति आते हैं, जिनके पास न तो सहज क्षमता होती है और न वे क्षमता का अर्जन ही कर पाते हैं। किन्तु सक्षम कहलाना चाहते हैं। कोई दूसरा उन्हें मान्यता दे या नहीं, वे अपने आप महत्वपूर्ण बन जाते हैं। इस आरोपित क्षमता से कभी कोई विकास हो, संभव नहीं लगता। ओढ़ी हुई क्षमता वाले व्यक्ति या नेता गरिमापूर्ण दायित्व को ओढ़ कर भी उसको निभा नहीं सकते। इसलिए उन्हीं व्यक्तियों का इस क्षेत्र में आना या लाना उचित रहता है जो सहज या अर्जित क्षमता से संपन्न होते हैं। जॉन वुडन ने कहा भी है कि ‘अपने सम्मान की बजाय अपने चरित्र के प्रति अधिक गम्भीर रहें। आपका चरित्र ही यह बताता है कि आप वास्तव में क्या हैं जबकि आपका सम्मान केवल यही दर्शाता है कि दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं।’
कहते हंै-ज्यूरिन में युद्ध के बाद भयंकर अकाल पड़ा। बीमारी ने भयंकर विनाश की आंधी का रूप ले लिया। इस भीषण परिस्थिति में वहां के लोगों ने नैतिकता को उठाकर ताक पर रख दिया। अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए कुछ भी कर्म, दुष्कर्म और अपराध करने वालों का ज्यूरिन गढ़ बन गया।
यह स्थिति देखकर पेवरिन के मन में एक तड़प जगी। उन्होंने लोगों को सही रास्ते पर लाने के लिए एवं पतित होने से बचाने के लिए समाज के कुछ चुनिंदा व्यक्तियों के साथ विचार संगोष्ठी का आयोजन किया। जन कल्याण की भावना से पेवरिन ने बड़ी लगन एवं मेहनत से समाज की सद्प्रवृत्तियों को ऊंचा उठाने का कार्य प्रारंभ किया। लोग बदलने लगे, उनके कष्ट भी कम होने लगे, वातावरण भी काफी परिष्कृत हो गया, किन्तु उन्होंने अनुभव किया कि अभी उनके पास योग्य और निस्वार्थ भाव से काम करने वाले व्यक्तियों का अभाव है। इस समस्या को समाहित करने के लिए उन्होंने एक विज्ञप्ति निकाली। जिसमें उनके द्वारा ज्यूरिन के पुनर्निर्माण की सारी योजना का सांगोपांग विवेचन किया गया था और उसे साकार करने के लिए जीवनदानी सहयोगी की जरूरत जताते हुए आह्वान किया गया था।
उस विज्ञप्ति को पढ़कर एवं उनके आह्वान को स्वीकार करने की मानसिकता से सत्ताईस वर्षीय युवक यूसो अपनी धर्मपत्नी सरलाओं के साथ पेवरिन के समक्ष उपस्थित हुआ। विनत भाव से अपना आत्म निवेदन प्रकट करते हुए कहा-‘मान्यवर! हम आपकी संपूर्ण योजना को सफल बनाने के लिए सेवार्थ प्रस्तुत हैं। आप हमारा मार्गदर्शन करें। पेवरिन ने निराश निगाहों से देखा, बोले-‘मुझे तुम्हारा धन नहीं चाहिए, जो चाहिए उसके लिए संदेह है कि तुम मुझे दे भी सकोगे?’
युवक ने अपनी धर्मपत्नी की तरफ देखा, कुछ विचार-विमर्श के बाद विश्वास से भर कर बोला -‘अपने देश, जाति, धर्म और संस्कृति की सुरक्षा तथा संवर्धन के लिए आपका यह सेवक आप जो कहें, वही देने को तैयार हैं।’ ऐसा सुनकर बिना किसी भूमिका को बांधे पेवरिन ने कहा-‘मुझे आप दोनों की जरूरत है, तीसरे की नहीं। क्या तुम इतना बड़ा त्याग कर सकते हो?’ इसी परिप्रेक्ष्य में सेनेका का कहा मार्मिक है कि ने ‘ऐसा नहीं है कि कार्य कठिन हैं इसलिए हमें हिम्मत नहीं करनी चाहिए, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम हिम्मत नहीं करते हैं इसलिए कार्य कठिन हो जाते हैं।’ लेकिन यूसो दम्पत्ति ने हिम्मत दिखाई। उनका विवाह हुए अभी पूरा एक वर्ष भी नहीं हुआ था। बच्चे होने पर गृहस्थ में फंस जाओगे तब सेवा नहीं कर पाओगे-यूसो इस तथ्य को समझ गए। उस सेवाभावी युवक ने पत्नी को तैयार करके पेवरिन से कहा-‘मुझे आपका कथन स्वीकार है।’ पेवरिन ऐसे व्यक्ति को पाकर हमेशा के लिए निश्ंिचत हो गए। एक व्यक्ति की निष्ठा एवं कर्मठता ने ज्यूरिन वासियों को फिर से नई शक्ति दी, नया जीवन दिया। जन-जन में नई चेतना का संचार किया और ज्यूरिन पुनः जाग गया। यूसो दंपत्ति ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत को स्वीकार करके जो देश की सेवा की, वह अविस्मरणीय बन गई। ज्यूरिन वासी आज भी उस दंपत्ति को जिस श्रद्धा से पूजते हैं, उतने अन्य किसी भी देवता को नहीं। गोएथ ने कहा है ‘सोचना आसान होता है। कर्म करना कठिन होता है। लेकिन दुनिया में सबसे कठिन कार्य अपनी सोच के अनुसार काम करना होता है।’ यूसो दंपत्ति ने निजी सुख को त्यागा और असंभव को संभव कर दिया।
वारेन बुफेट के अनुसार कोई आज छाया में इसलिए बैठा हुआ है क्योंकि किसी ने काफी समय पहले एक पौधा लगाया था। ऐसे पौधे लगाने वालों के अनेक उदाहरणों से विश्व-इतिहास भरा पड़ा है। सम्प्रति, सिर्फ समझ का दरवाजा खोलने की जरूरत है। अगर समझपूर्वक जीना आ गया तो जीवन के प्रत्येक धरातल पर विकास की सरिता स्वतः प्रवाहित होने लगेगी। आनंद का दरिया लहराने लगेगा। जिंदगी का हर एक लम्हा नया अंदाज देकर जाएगा। आप राज को पहचानें एवं निष्ठापूर्वक स्वयं पर-हितैषी बनकर हर सांस में सार्थकता का संवेदन भर दें। हर कण में साहस भर दें और धैर्यपूर्वक परिश्रम करते हुए अपने हर सपने को पूरा कर लें। हैनरी डेविड थोरेयू ने कहा कि ‘यदि आपने हवाई किलों का निर्माण किया है तो आपका कार्य बेकार नहीं जाना चाहिए, हवाई किले हवा में ही बनाए जाते हैं। अब, उनके नीचे नींव रखने का कार्य करें।’ हमारे देश में भी हवाई किलों के नीचे नींव रखने का कार्य करना है और उसके लिये जीवनदानी कार्यकर्ताओं की जरूरत है।

 

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