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उसे उम्मीद है मरने के बाद वो जिंदा हो सकेगी, इसलिए फ्रीज करवाई अपनी बॉडी


लंदन. एक रेयर कैंसर से जूझ रही 14 साल की लड़की मौत के बाद अपनी बॉडी को क्रायोजेनिक टैक्नीक से फ्रीज कराकर सुरक्षित करना चाहती थी। इसके लिए उसने मौत से ठीक पहले कानून की जंग जीत ली। जज को उसने एक इमोशनल लेटर लिखा था। कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक साबित हुआ है। बता दें कि दुनिया में कई लोग इस उम्मीद में अपनी बॉडी फ्रीज करवाते हैं, ताकि फ्यूचर में साइंस इतनी तरक्की कर ले कि उन्हें फिर जिंदा किया जा सके। सबसे कम उम्र में ऐसा करने वाली बनी…

- कानूनी मसले की वजह से लड़की का नाम उजागर नहीं किया गया है। वह लंदन की रहने वाली थी।
- बॉडी को फ्रीज कराने वाली वह दुनिया की सबसे कम उम्र की शख्स बन गई है।
- मां अपनी बेटी की इस आखिरी ख्वाहिश के साथ थी, लेकिन पिता ऐसा नहीं चाहते थे।
- लड़की ने जज को एक इमोशनल लेटर भेजा। इसके बाद जज ने लड़की की बॉडी के बारे में आखिरी फैसला लेने का हक उसकी मां को दे दिया।

17 अक्टूबर को हुई थी मौत
- लड़की की मौत 17 अक्टूबर को ही हो चुकी थी, लेकिन यह मामला लोगों के सामने अब लाया गया है।
- हालांकि, ब्रिटेन में क्रायोजेनिक फ्रॉजन की टैक्नीक नहीं है, इसलिए लड़की की बॉडी को अमेरिका ले जाया गया है। 
- लड़की ने अपनी मौत से पहले इंटरनेट पर क्रॉयोजेनिक फ्रॉजन टैक्नीक के बारे में पढ़ा था।
लेटर में क्या लिखा था लड़की ने
- "मैं महज 14 साल की हूं और मैं मरना नहीं चाहती, लेकिन मैं मरने वाली हूं।” 
- “मेरा मानना है कि क्रायोप्रिजर्व्ड से मुझे एक उम्मीद मिलेगी। मैं नहीं चाहती कि मुझे जमीन में दफन किया जाए।” 
- “मैं खूब जीना चाहती हूं। मुझे उम्मीद है कि फ्यूचर में मेरा कैंसर ठीक हो होगा और मैं जी सकूंगी। मैं यह मौका खोना नहीं चाहती।”
जज लड़की को देखने खुद हॉस्पिटल गए थे
- जस्टिस पीटर जैक्सन लड़की से मिलने खुद हॉस्पिटल गए थे। 
- उन्होंने लड़की को देखने के बाद कहा था कि वह बहादुरी के साथ बेहद मुश्किल हालात का सामना कर रही है।
- जज ने अपने फैसले में कहा, "मसला यह नहीं है कि 'क्रायोजेनिक्स' सही है या गलत, बल्कि मां-बाप के बीच इस बात पर तकरार है कि लड़की की बॉडी का क्या किया जाए।"
- बता दें कि लड़की के माता-पिता का तलाक हो चुका है। लड़की अपने पिता से 6 साल से मिली नहीं थी। उनका चेहरा भी नहीं देखा था।

क्या होती है क्रायोजेनिक टैक्नीक
- यह एक कॉन्ट्रोवर्शियल टैक्नीक है। इसमें मौत के बाद बॉडी को कुछ घंटों तक -110 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है। 
- टैम्प्रेचर कम करते हुए -190 डिग्री तक ले जाया जाता है। इस टैम्प्रेचर पर बॉडी करीब दो हफ्ते तक रखी रहती है। 
- फिर उसे लिक्विड नाइट्रोजन में रखकर प्रिजर्व कर दिया जाता है, ताकि फ्यूचर में उसकी बीमारी ठीक करने का तरीका मिलने पर उसे दोबारा जिंदा किया जा सके। 
- यह बेहद खर्चीली प्रोसेस है। इस पर करीब 30 लाख रुपये का खर्च आता है
- लड़की के मां-बाप के पास इतना पैसा नहीं था, इसलिए उन्होंने इसके लिए फंड जुटाया।
दुनिया में 3 जगह है क्रायोजेनिक फ्रॉजन की फैसेलिटी
- 1960 के दशक में यह टैक्नीक आई थी। तब से दुनिया में सिर्फ तीन जगहों पर इसे कमर्शियल बिजनेस के तौर पर अपनाया गया है। दो जगह अमेरिका में और एक जगह रूस में।

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