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मुस्लिम समाज के द्वारा बनाये गए हैं देश के ये दो बड़े हनुमान मंदिर



जैसा कि आप जानते ही हैं भारत में अलग-अलग धर्म हैं जो की एक साथ इस देश में रहते हैं, इसलिए भारत को विभिन्न धर्मों का देश कहा जाता है। आज के समय में भी बहुत सी ऐसी जगह भारत में हैं जो इन आपसी भाईचारे की मिसाल हैं। बहुत सी दरगाह और मुस्लिम धर्म के स्थान ऐसे हैं जहां हिन्दू लोग काफी संख्या में जाते हैं और कई हिन्दू धर्म के ऐसे स्थान हैं जहां पर मुस्लिम लोग सिर्फ आते-जाते ही नहीं बल्कि उनके निर्माण में भी अपना हाथ बटाते हैं। आज हम आपको ऐसे ही दो हिन्दू मंदिरो के बारे में बता रहें हैं जिनका निर्माण मुस्लिम लोगों द्वारा किया गया है। आइये जानते हैं इन दोनों मंदिरो के बारे में।

1- हनुमान गढ़ी मंदिर-

यह मंदिर अयोध्या में सरयू नदी के किनारे बना हुआ है, मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको करीब 76 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। इस मंदिर का इतिहास करीब 300 साल पुराना है। उस समय इस स्थान पर सुल्तान मंसूर नाम के एक बड़े व्यक्ति रहते थे। एक दिन उनके बेटे की तबियत रात को ख़राब हो गई और जब बच्चे की सांसे रुकने लगी तो हनुमान मंदिर में गए और और वहां पर प्रार्थना की पहले तो उनको यह सब अटपटा लगा पर जब उन्होंने दिल से हनुमान जी को पुकारा तब अचानक चमत्कार हुआ और बच्चे की सांसे फिर से सामान्य हो गई तथा बच्चा सही हो गया। इस घटना के बाद में सुल्तान मंसूर का हनुमान जी पर बहुत ज्यादा विश्वास बढ़ गया और हनुमान मंदिर के लिए सुल्तान मंसूर ने अपनी 52 बीघा जमीन और ईमली का बाग दान में दे दिए। समय के साथ में इस जमीन पर “हनुमानगढ़ी मंदिर” बना जो की आज भी हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बना हुआ है।
2- अलीगंज का हनुमान मंदिर-

इस मंदिर का इतिहास लगभग 200 साल पुराना है, उस समय अवध के नवाब मुहम्मद अली शाह थे और इनकी बेगम का नाम था राबिया। इनके जीवन में सबसे बड़ी कमी सिर्फ यह थी की इनके कोई बच्चा नहीं था जो इनके नाम को आगे की ओर बढ़ा पाता। इन दोनों लोगों ने बच्चे के लिए बहुत जगह की यात्राएं की, बहुत जगह माथा टेका और बहुत सी जगह चादर चढ़ाई। कुल मिला कर एक आम इंसान जो कुछ भी कर सकता है वह सब इन लोगों ने किया पर इनके घर पर कोई नन्हा फरिश्ता नहीं आ पाया।
इसके बाद में एक व्यक्ति बेगम राबिया को एक संत के बारे में बताता है और उनको वहां एक बार जाने की सलाह देता है। बेगम उस संत से मिलती हैं और वह संत बेगम की फ़रियाद को हनुमान जी के पास तक पहुंचा देते हैं। इसके बाद में रात में बेगम को हनुमान जी दर्शन देते हैं और इस्लामबाड़ी टीले के नीचे दबी अपनी मूर्ति को निकाल कर मंदिर बनवाने की सलाह देते हैं। सुबह नवाव साहब उस स्थान की खुदाई कराते हैं और वहां पर हनुमान जी की एक मूर्ति निकलती है। बेगम ने अपने कहे अनुसार एक बड़ा मंदिर वहां बनवाया और उसमें यही मूर्ति रखवाई। यही मंदिर आज अलीगंज का हनुमान मंदिर कहलाता है। मंदिर निर्माण के बाद में बेगम को एक पुत्र हुआ। इस मंदिर में आज भी ज्येष्ठ मास को मेला लगता है।


देखा जाए तो आज भी ऐसे ही कितने किस्से हमारे इतिहास में दफ़न हैं जो की हिन्दू-मुस्लिम एकता को बल देते हैं और भाईचारे का पैगाम देते हैं पर लिखने वालो ने हमेशा तोड़ने की ही बातें लिखी न की जोड़ने की …. यही इस देश का दुर्भाग्य है।

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