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इच्छाओं की लहरों को समाप्त कर देने का नाम तपस्या- निर्भयसागरजी म.सा.



उज्जैन। सागर में उठती इच्छाओं की लहरों को समाप्त कर देने का नाम तपस्या
है। ध्यान साधना करने का नाम तपस्या है चाहे लौकिक हो या आध्यात्मिक।
बिना तपे संसार में कोई भी कार्य संपन्न नहीं हो सकता। शुध्दि और सिध्दि
का मार्ग एकमात्र तपश्चरण ही है। बिना बर्तन के जैसे दूध गर्म नहीं हो
सकता ऐसे ही देह के माध्यम से आत्मा को शुध्द सिध्द बनाया जा सकता है।
कुछ लोग ध्यान और अध्यात्म को तो चाहते हैं लेकिन देह को कष्ट नहीं देना
चाहते। भगवान महावीर का धर्म सिर्फ जयकार करने के लिए नहीं वरन स्वीकार
और साधना के लिये है।
यह विचार उपाध्याय निर्भयसागरजी महाराज ने फ्रीगंज स्थित पंचायती दिगंबर
जैन मंदिर में प्रवचनों के दौरान व्यक्त किये। उपाध्यायश्री की प्रेरणा
से सैकड़ों श्रध्दालु 10, 5 तथा 3 उपवास की तपस्या साधना कर अपने जीवन को
तपा रहे हैं। शिविरार्थियों ने सोमवार को सम्मेद शिखर की यात्रा भावों से
ध्यानपूर्वक की। प्रतिक्रमण योग पश्चात प्रश्नमंच मुनि शिवदत्तसागर एवं
पूजन आराधना की विशेष अर्चना क्षुल्लक चंददत्त सागरजी ने संपन्न कराई।
जैन मित्र मंडल के अध्यक्ष नितीन डोसी, चातुर्मास समिति के संजय बड़जात्या
एवं सुनील सोगानी ने बताया कि सायंकालीन सत्र की शुरूआत उपाध्यायजी
द्वारा कराई जा रही सामायिक प्रतिकमण से हुई। तत्पश्चात टीकमगढ़ से आए
संगीतकार देवेन्द्र जैन ने संगीतमय आरती संपन्न कराई। रात्रिकालीन
सांस्कृतिक कार्यक्रम अंतर्गत श्री विद्यासागर पाठशाला फ्रीगंज के बच्चों
द्वारा नाटिका सच्चा श्रध्दालु का मंचन भूषण जैन के निर्देशन में किया
गया। जिसमें बच्चों द्वारा बारह भावना का सुंदर प्रस्तुतिकरण किया गया।

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