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इच्छाओं को वश में करना मेंढ़क को तराजू में तोलने के समान- निर्भयसागरजी म.सा.



उज्जैन। इच्छाओं का आकाश अनंत है, इच्छाओं को वश में करना जिंदे मेंढक को
तराजू में तोलने के समान है। सुख और दुख पदार्थ में नहीं हमारी आकांक्षा
में है। लोभ में लाभ नहीं और न ही इस लाभ से जीवन का किंचित भी भला है।
उक्त उद्गार उपाध्याय निर्भयसागरजी म.सा. ने पर्यूषण के तृतीय दिन शोच
धर्म पर दिगंबर पंचायती मंदिर फ्रीगंज में व्यक्त किये। आपने कहा कि लोभी
को सुमेरू पर्वत के बराबर भी संपदा मिल जाये तो भी वह तृप्त नहीं होगा।
एक आवश्यकता की पूर्ति होती है और पांच आकांक्षायें उत्पन्न हो जाती हैं।
इसलिए अपनी बढ़ती आकांक्षाओं पर अंकुश लगायें और संतोष को धारण करें।
उपाध्यायश्री ने कहा कि आत्मा की सुचिता, निर्मलता, स्वच्छता का नाम शोच
धर्म है। जैन मित्र मंडल के अध्यक्ष नितीन डोसी एवं चातुर्मास समिति के
संजय बड़जात्या, हितेश सेठी ने बताया कि प्रातः कालीन सत्र प्रवचन के
पूर्व इंदरमल जैन चिमनगंज मंडी वालों ने श्रीजी विराजमान करने एवं
जयेतुकीर्ति छड़ीवाले बाबा एवं मोतीलाल जैन, शैलेन्द्र जैन ने शांतिधारा
का सौभाग्य प्राप्त किया। प्रश्नमंच मुनि शिवदत्तसागर एवं पूजन आराधना,
भक्ति पाठ, सामायिक क्षुल्लक चंददत्तसागरजी ने संपन्न कर्रा। प्रातः 5
बजे से ही महिलाएं केसरिया तथा पुरूष सफेद वस्त्रों में आराधना हेतु
पहुंच रहे हैं। एक समय शुध्द भोजन कर, जूते, चप्पल, व्यापार, कार्य छोड़
चटाई पर सोना, चार जोड़ी वस्त्र और छने पानी से स्नान, बाजार की वस्तुओं
का त्याग अनेक नियम लेकर श्रध्दालु अपने जीवन को जैनत्व के संस्कारों से
श्रृंगारित कर रहे हैं।

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