'उज्जैन' स्वर्ग का कान्तिमान खण्ड, धार्मिक नगरी उज्जयिनी की गाथा
उज्जैन । प्राचीन मान्यता है कि भूमध्य रेखा उज्जैन से होकर जाती थी। उज्जयिनी का अर्थ है उत्कृर्ष के साथ जयघोष करने वाली नगरी। उज्जैन, उज्जयिनी का अपभ्रंश है। उज्जैन को स्वर्ग का एक कान्तिमान खण्ड और मणिपुर चक्र कहा गया है। उज्जैन पूरी दुनिया से इस अर्थ में अलग है कि आकाश में उज्जैन को जो मध्य स्थान प्राप्त है, वही धरती पर भी प्राप्त है। आकाश और धरती दोनों के केन्द्र बिन्दु पर यह स्थित है। भारत का हृदय स्थल है मध्य प्रदेश और मध्य प्रदेश के हृदय स्थल पर स्थित है तीर्थ भूमि उज्जैन। शरीर के नाभि स्थान को योग की शब्दावली में मणिपुर चक्र कहा जाता है। मणिपुर चक्र कहते हुए इसकी महत्ता गाई गई है।
उज्जैन पांच हजार साल से भी अधिक पुराना नगर है। ईसा पूर्व पांचवी-छठी शताब्दी में सोलह जनपदों या राष्ट्रों में से एक अवन्ती जनपद का उल्लेख है। उज्जैन इसी की राजधानी थी। उज्जैन कालगणना का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा। स्टेण्डर्ड टाइम के सन्दर्भ में आज जो प्रतिष्ठा ग्रीनविच टाइम की है, वह उज्जैन की थी। इसलिये यहां के प्रधान देवता श्री महाकाल हैं। उज्जैन शिक्षा का प्रमुख केन्द्र था। यही कारण है यहां गुरू सान्दीपनि के आश्रम में श्रीकृष्ण विद्या अध्ययन के लिये आये थे। उज्जैन के प्राचीन नाम अवन्ती, अवन्तिका, उज्जयिनी, विशाला, नंदिनी, अमरावती, कनकश्रृंगा, पद्मावती, प्रतिकल्पा, कुशस्थली, और चूड़ामणि हैं। उज्जैन शक्तिपीठ भी है। महाकाल वन स्थित हरसिद्धि मन्दिर की गणना 51 शक्तिपीठों में की जाती है। यहां देवी सती के दाहिने हाथ की कोहनी गिरी थी। वहीं कालिदास की आराध्य महाकाली देवी भी स्थित हैं। महाकाल का मन्दिर प्राचीन उज्जैन के गढ़ क्षेत्र में स्थित है। देश की पांच प्रमुख वेधशालाओं में से एक शिप्रा तट पर जयसिंहपुरा में स्थित है।
उज्जैन में उत्तरवाहिनी शिप्रा नदी बहती है। शिप्रा के अर्थ है- धीमा वेग और करधनी। शिप्रा नदी उज्जैन के आसपास कमर में पहने जाने वाले करधनी की तरह फैली हुई है, इसीलिये इसे शिप्रा कहा गया। इसी शिप्रा नदी के तट पर हर बारह वर्ष में एक बार सिंहस्थ महाकुंभ आयोजित किया जाता है। यह महाकुंभ देश के चार नगरों प्रयाग, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में लगता है। उज्जैन वैष्णवों का प्रमुख तीर्थ है। श्रीकृष्ण की विद्यास्थली के अलावा यहां पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक आचार्य श्री वल्लभ की 73वी बैठक भी है। उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य और महाकवि कालिदास की नगरी के रूप में ख्यात है। विश्व प्रसिद्ध कवि व नाटककार कालिदास ने अपने जीवन के करीब 50 वर्ष यहीं व्यतीत किये। वे विक्रमादित्य के नवरत्नों में एक थे। विक्रमादित्य ने ही विक्रम संवत् के नाम से नया संवत् चलाया। आज भारत में पंचांग इसी संवत् के आधार पर तैयार किये जाते हैं।
श्री महाकाल मन्दिर
मृत्युंजय है श्री महाकाल। इनकी आराधना से द्वार पर आई मृत्यु भी उल्टे पैर लौट जाती है। एक वर्ष में श्री महाकाल का एक करोड़ बार महामृत्युंजय जाप होता है। जिनके निमित्त यह जाप किया जाता है, वे रोगी हों तो स्वस्थ हो जाते हैं। मरणशय्या पर पड़े हों तो उठ खड़े होते हैं। पूरे विश्व में ऐसी महिमा श्री महाकाल की है। श्री महाकाल पृथ्वी के नाभि केन्द्र पर स्थित दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग हैं, जो दुनिया का एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है। तंत्र की दृष्टि से भी इस दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग का बड़ा महत्व है। इन्हीं वैशिष्ठ्यों के कारण श्री महाकाल का वैदिक मंत्रों से जप-अनुष्ठान करने पर त्वरित और निश्चित फल मिलता है। श्री महाकाल पुराणों में वर्णित प्राचीनतम ज्योतिर्लिंग है। शिव पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण के पालक नन्द से आठ पीढ़ी पूर्व यह मन्दिर बना होगा। तभी ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई होगी। मन्दिर का शिखर प्राचीनकाल से ही गगनचुंबी और परिसर विशाल रहा।
श्री महाकाल की स्तुति वेदव्यास ने महाभारत में, कालिदास, बाणभट्ट और भोज आदि ने की है। प्राचीन श्री महाकाल मन्दिर का पुनर्निर्माण 11वी शताब्दी में हुआ। इस घटना के करीब 140 साल बाद दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने उज्जैन पर आक्रमण कर श्री महाकाल मन्दिर को क्षतिग्रस्त कर दिया था। वर्तमान मन्दिर मराठाकालीन माना जाता है। इसका जीर्णोद्धार आज से करीब 250 वर्ष पूर्व सिन्धिया राज्य के दीवान बाबा रामचन्द्र शैणवी ने करवाया।
राजा महाकाल नित नूतन और अभिनव रूपों में भक्तों को दर्शन देते हैं। कभी प्राकृतिक रूप में तो कभी राजसी रूप में आभूषण धारण कर। कभी भांग, कभी चन्दन और सूखे मेवे से तो कभी फल-पुष्प से सजते हैं राजाधिराज। शिवरात्रि के अगले दिन महाकाल फूलों का सेहरा धारण कर दूल्हा रूप में दर्शन देते हैं। उमा-सांझी महोत्सव में पांच दिव्य रूपों में भगवान के दर्शन होते हैं। विश्व में अकेले महाकाल हैं, जिनके इतने रूपों में दर्शन होते हैं।
महाकाल मन्दिर परिसर में स्थित
अन्य मन्दिरों का महात्म्य
1. लक्ष्मी नृसिंह मन्दिर-
यह मन्दिर, श्री महाकाल मन्दिर परिसर के गलियारे में स्थित है। स्कन्दपुराण के अनुसार हिरण्यकश्यप के वध के बाद जब भगवान नृसिंह का क्रोध शान्त नहीं हुआ, तो शिव के कहने पर नृसिंह भगवान उज्जैन में इसी स्थान पर आये तथा उनका क्रोध शान्त हुआ। इस मन्दिर में नृसिंह दरबार है। भगवान नृसिंह के साथ लक्ष्मी तथा प्रहलाद है। वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को शाम के समय भगवान नृसिंह का विशेष श्रृंगार कर पूजन-अर्चन किया जाता है। मन्दिर में शनिवार तथा चतुर्दशी के पूजन को विशेष फलप्रद माना गया है। यहां दर्शन करने से कार्यों में विजय प्राप्त होती है, भय का नाश होता है तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
2. ऋद्धि-सिद्धि गणेश-
नृसिंह मन्दिर के आगे ही ऋद्धि-सिद्धि गणेश मन्दिर स्थित है। यहां हर बुधवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैं।
3. विट्ठल पंढरीनाथ मन्दिर-
गलियारे में स्थित यह तीसरा मन्दिर है। इस मन्दिर की विशेषता है कि भगवान विट्ठल के साथ रूक्मिणी, राधा की प्रतिमा एवं गरूड़देव स्थापित हैं। साथ ही आताल-पाताल भैरव के मुखौटे के दर्शन भी यहां हो सकते हैं।
4. श्री राम दरबार मन्दिर-
गलियारे में कोटितीर्थ की ओर नीचे उतरने पर श्रीराम दरबार मन्दिर स्थित है। संगमरमर के बने इस सुन्दर मन्दिर की स्थापना प्रसिद्ध सन्त श्री ब्रह्मचैतन्य गोंदवलेकर महाराज के हाथों हुई थी। लगभग सौ वर्ष प्राचीन इस मन्दिर में श्रीराम, जानकी, लक्ष्मण तथा हनुमानजी की प्रतिमाएं विराजित हैं।
5. अवन्तिकादेवी-
उज्जैन का एक प्राचीन नाम अवन्तिका है। अवन्तिका यहां की अधिष्ठात्री देवी है। इस देवी की प्रतिमा श्रीराम दरबार मन्दिर के पीछे स्थापित है। इस प्राचीन मन्दिर में नवरात्रि के दौरान दीपमालाएं प्रज्वलित की जाती हैं।
6. चन्द्रादित्येश्वर-
यह मन्दिर श्रीराम दरबार मन्दिर से आगे बढ़ने पर बायें हाथ पर स्थित है। स्कन्दपुराण के अवन्तिका खण्ड के अनुसार उज्जैन के 84 महादेवों में से यह एक है। इसी मन्दिर में आदि शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित है। आदि शंकराचार्य उज्जैन आये थे। उनकी स्मृति में प्रतिमा स्थापित है।
7. मंगलनाथ-
चन्द्रादित्येश्वर मन्दिर के आगे भूमिपुत्र मंगल शिवलिंग के रूप में यहां विराजमान हैं। उज्जैन मंगल ग्रह की जन्म-भूमि माना जाता है। मंगल की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है। यह मन्दिर इसी का प्रतीक है।
8. अन्नपूर्णा देवी-
मंगलनाथ शिवलिंग से आगे बढ़ने पर हमें देवी अन्नपूर्णा के दर्शन होते हैं। लगभग सौ वर्ष पुराने इस मन्दिर में देवी अन्नपूर्णा के साथ गोरे भैरव तथा काले भैरव की प्रतिमा भी स्थापित है। माघ शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होने वाली गुप्त नवरात्रि में देवी की विशेष पूजा-अर्चना होती है।
9. वाच्छायन गणपति-
महाकाल मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्वार (चांदी द्वार) के पास पूर्व दिशा में वाच्छायन गणेश की प्रतिमा है। मान्यता है यहां आराधना से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
10. प्रवेश द्वार के गणेश-
चांदी द्वार के ऊपर गणेश प्रतिमा विराजित है। गर्भगृह में प्रवेश के पूर्व श्रद्धालु गणेश स्मरण के साथ इस प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करते हैं।
11. गर्भगृह-
चांदी द्वार के नीचे उतरने पर गर्भगृह में ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान श्री महाकालेश्वर विराजमान हैं। इसी गर्भगृह में देवी पार्वती, श्री गणेश व श्री कार्तिकेय की रजत प्रतिमाएं हैं। गर्भगृह में ही दो अखण्ड नन्दी दीप हैं। किवदन्ती है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने इन नन्दी दीपों को अखण्ड रूप से प्रज्वलित रखने के लिये शासन द्वारा घी दिये जाने की सनद लिखी थी। ज्योतिर्लिंग के समक्ष नन्दीगण की विशाल रजत प्रतिमा स्थापित है।
12. ओंकारेश्वर महादेव-
ओंकारेश्वर महादेव, श्री महाकालेश्वर के ठीक ऊपर स्थित है। इस मन्दिर में पूजा व व्यवस्था का दायित्व महानिर्वाणी अखाड़ा के सन्यासियों का है। यह नर्मदा तट स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का प्रतिरूप माना जाता है।
13. नागचन्द्रेश्वर महादेव-
नागचन्द्रेश्वर महादेव, ओंकारेश्वर महादेव के ऊपर यानी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर से तीसरी मंजिल पर स्थित है। इस मन्दिर के पट वर्ष में एक बार नागपंचमी को ही खुलते हैं। यहां लिंग के रूप में नागचन्द्रेश्वर की पूजा होती है।
14. नागचन्द्रेश्वर प्रतिमा-
तीसरी मंजिल पर नागचन्द्रेश्वर की प्रतिमा रूप में भी दर्शन होते हैं। यहां लगभग 11वी शताब्दी की परमारकालीन प्रतिमा स्थित है। प्रतिमा शिव-पार्वती की है। छत्र रूप में नाग का फन फैला हुआ है। नागपंचमी पर इस प्रतिमा के दर्शन के बाद ही भक्त नागचन्द्रेश्वर महादेव के दर्शन करते हैं।
15. सिद्धि विनायक मन्दिर-
यह गणेश मन्दिर महाकालेश्वर प्रांगण में ओंकारेश्वर मन्दिर के सामने उत्तर दिशा की ओर स्थित है। गणेश की यह प्रतिमा पुरातत्ववेत्ता डॉ.विष्णु श्रीधर वाकणकर के शोध के अनुसार दो सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी है। पुराने समय में जब मन्दिर का प्रवेश गलियारों से न होकर सीधे होता था, तब भक्तगण गणेशजी के दर्शन कर ही गर्भगृह में प्रवेश करते थे।
16. साक्षी गोपाल-
यह मन्दिर श्री महाकालेश्वर परिसर में सिद्धि विनायक के पास स्थित है। कहते हैं श्री महाकालेश्वर के दर्शन के साथ साक्षी गोपाल के दर्शन अवश्य करना चाहिये। भगवान श्री महाकाल तो समाधि में रहते हैं, साक्षी गोपाल ही भक्त की उपस्थिति का साक्ष्य देते हैं।
17. संकटमोचन सिद्धदास हनुमान मन्दिर-
प्रांगण में उत्तर दिशा में स्थित यह हनुमानजी का प्राचीन मन्दिर है। हनुमानजी की मूर्ति स्थापना छात्रपति शिवाजी के गुरू समर्थ रामदास स्वामी ने की थी। यह प्रतिमा चैतन्य है। प्रति मंगलवार एवं शनिवार को बड़ी संख्या में यहां भक्त दर्शन के लिये आते हैं।
18. स्वप्नेश्वर महादेव-
सिद्धदास हनुमान मन्दिर के सामने स्वप्नेश्वर महादेव मन्दिर है। इनकी गणना उज्जैन के प्रसिद्ध 84 महादेवों में होती है। स्कन्दपुराण के अनुसार इनके दर्शन से बुरे स्वप्न एवं उनके दुष्परिणामों से मुक्ति मिलती है। मास की अष्टमी तथा चतुर्दशी तिथियों पर यहां विशेष पूजा होती है।
19. बृहस्पतेश्वर महादेव-
मन्दिर प्रांगण के उत्तर में स्वप्नेश्वर महादेव से सटे इस मन्दिर में बृहस्पति (गुरू) शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। प्रति गुरूवार को यहां पीली वस्तुओं से पूजन का विशेष महत्व है।
20. शिव की प्राचीन प्रतिमाएं-
त्रिविष्टपेश्वर महादेव से लगे एक कक्ष में कई शिवलिंग विराजमान हैं। इसी कक्ष की दीवार पर शिव-पार्वती की प्राचीन प्रतिमाएं हैं। इस स्थान का वैशिष्ठ्य यह है कि यहां प्रति एकादशी को शिवलिग की पूजा की जाती है।
21. त्रिविष्टपेश्वर महादेव-
यह प्राचीन शिव मन्दिर है। श्री महाकालेश्वर मन्दिर के पीछे स्थित ये महादेव 84 महादेवों में सम्मिलित हैं।
22. मां भद्रकाल्ये मन्दिर-
ओंकारेश्वर मन्दिर से सटे उत्तरी कक्ष में मां भद्रकाली का सुन्दर स्वरूप विराजमान है।
23. बरगद/पीपल का वृक्ष-
मन्दिर प्रांगण में लगभग 150 वर्ष पुराना बड़ (बरगद) का वृक्ष है। पुराने समय से इस वृक्ष के नीचे अखाड़े, साधु, राजा आदि विश्राम करते थे। सिद्धविनायक मन्दिर इसी वृक्ष के नीचे है।
24. नवग्रह मन्दिर-
यह श्री महाकाल के निर्गम द्वार के पास स्थित है। ग्रहों को नौ शिवलिंग के रूप में स्थापित किया गया है।
25. मारूतिनन्दन हनुमान-
यह मन्दिर लगभग दो सौ वर्ष पुराना है। श्री महाकाल परिसर के आग्नेय कोण में स्थित यह मन्दिर पीपल के वृक्ष के नीचे स्थित है।
26. श्रीराम मन्दिर-
वृक्ष त्रिवेणी के नीचे श्रीराम मन्दिर है। यह मन्दिर मारूतिनन्दन हनुमान के पीछे स्थित है।
27. नीलकंठेश्वर-
यह मन्दिर श्री महाकालेश्वर मन्दिर के निर्गम द्वार के पीछे स्थित है। श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष प्रकट हुआ तब उसके विष से सारा विश्व जलने लगा। तब शिव ने इस विष का पान किया, लेकिन कण्ठ से नीचे नहीं जाने दिया। विष के प्रभाव से उनका कण्ठ नीला हो गया। संसार के ताप से मुक्ति के लिये यहां नीलकण्ठेश्वर की पूजा की जाती है।
28. भस्म तैयार करने का कक्ष-
श्री महाकाल की आरती के लिये इस कक्ष में गाय के गोबर से बने उपलों की भस्म तैयार की जाती है।
29. दक्षिणी मराठों का मन्दिर-
यह मन्दिर नीलकण्ठेश्वर महादेव के पास स्थित है। इसका निर्माण देवास के नरेश द्वारा करवाया गया था। मन्दिर महाराष्ट्र के प्रसिद्ध देवता खंडोबा को समर्पित है। चंपाषष्ठी के दिन इस मन्दिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
30. गोविंदेश्वर महादेव-
यह मन्दिर वृद्धकालेश्वर महाकाल मन्दिर के समीप स्थित है।
31. सूर्यमुखी हनुमान-
सूर्यमुखी हनुमान का यह मन्दिर कोटितीर्थ के प्रदक्षिणा मार्ग पर श्री महाकाल के प्रमुख द्वार के पास स्थित है।
32. लक्ष्मीप्रदाता मोढ़ गणेश मन्दिर-
यह मन्दिर कोटितीर्थ के उत्तर में स्थित है। स्कन्दपुराण के अनुसार यहां स्थित गणेश भगवान श्रीराम द्वारा पूजित हैं। गणेश और लक्ष्मी कीपूजा हर शुभ कार्य के पूर्व होती है। विवाह, व्यवसाय आदि के पूर्व इनकी पूजा को विशेष फलदायी माना जाता है। बुधवार तथा चतुर्थी को यहां गणेशजी की विशेष पूजा की जाती है। यह उज्जैन के प्रसिद्ध षडविनायक मन्दिरों में से एक है1
33. कोटेश्वर महादेव-
कोटेश्वर भगवान श्री महाकाल के गण तथा कोटितीर्थ के अधिष्ठाता हैं। यह एक महत्वपूर्ण मन्दिर है। प्रदोष के दिन श्री महाकाल की सन्ध्या-पूजा के पहले कोटेश्वर की पूजा की जाती है।
34. सप्तऋषि मन्दिर-
श्री महाकाल मन्दिर परिसर के पीछे की ओर सप्तऋषियों के सात मन्दिर हैं। भाद्रपद शुक्ल पंचमी को ऋषि पंचमी मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं सप्तऋषि मन्दिर में पूजन करती हैं। रक्षाबन्धन के दिन ब्राह्मणजन अपने पूर्व सप्त ऋषियों की पूजा करते हैं।
35. अनादिकल्पेश्वर महादेव-
यह मन्दिर सप्तऋषि मन्दिर के ठीक सामने है। स्कन्दपुराण के अनुसार सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा और विष्णु का झगड़ा हुआ। दोनों सृष्टि निर्माण का श्रेय लेना चाहते थे। एक आकाशवाणी द्वारा उन्हें श्री महाकाल वन में अनादिकल्पेश्वर के आदि तथा अन्त खोजने की आज्ञा हुई। ब्रह्मा शिवलिंग को खोजते हुए अन्तरिक्ष में गये तथा विष्णु पाताल में। पाताल में अन्त न पाकर विष्णु वापस लौट आये। ब्रह्मा को भी अनादिकल्पेश्वर का अन्त नहीं मिला, लेकिन उन्होंने झूठ बोला और गाय तथा केवड़ा उनके झूठे साक्षी बने। जब ब्रह्मा ने यह झूठ विष्णु से कहा तब विष्णु ने अपनी हार स्वीकार की। ब्रह्मा के झूठ से क्रोधित होकर शिव ने ब्रह्मा की गर्दन काट दी। यह मन्दिर 84 महादेव में गिना जाता है।
36. श्री बाल विजयमस्त हनुमान-
बालरूप हनुमान मन्दिर अनादिकल्पेश्वर के सामने स्थित है। यह एक चैतन्य देवस्थान माना जाता है। हनुमान अष्टमी तथा हनुमान जयन्ती को यहां अभिषेक, पूजा का आयोजन होता है। प्रति मंगलवार एवं शनिवार को यहां चोला चढ़ाया जाता है एवं सुन्दर श्रृंगार किया जाता है।
37. ओंकारेश्वर महादेव-
इसी कॉम्पलेक्स में यह एक और शिव मन्दिर है।
38. वृद्धकालेश्वर महाकाल-
इनकी प्रतिष्ठा वृद्धकालेश्वर महाकाल के रूप में है। मान्यता है कि वर्तमान ज्योतिर्लिंग से पूर्व वृद्धकालेश्वर की पूजा की परम्परा थी। हालांकि इस पर मतैक्य नहीं है। माना जाता है कि श्री महाकाल राजा हैं और परिसर में स्थित अन्य शिवलिंग उनके गणों के प्रतीक हैं। ज्योतिर्लिंग के दर्शन से पूर्व परिसर में स्थित अन्य शिवलिंगों के दर्शन की परम्परा है। वृद्धकालेश्वर इनमें एक हैं।
पवित्र कोटितीर्थ महाकाल के आंगन का जल तीर्थ है। पुराणों के अनुसार इस तीर्थ में भारतभूमि की सभी पावन नदियों का जल मिला हुआ है। महाभारत में इस तीर्थ का उल्लेख है। लिखा है पांडुपुत्र भीम ने इस तीर्थ में स्नान कर भूतभावन भोलेनाथ के दर्शन किये थे। इसी तीर्थ के पवित्र जल से नित्य जलप्रिय महाकाल का अभिषेक होता है। इसी तीर्थ के तट पर बैठकर वैदिक पंडित महाकाल की स्तुति करते हैं।