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भारत के लिए गौरव का क्षण, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को मिला विश्व धरोहर होने का सम्मान, यूनेस्कों ने पुष्टि की


देर से ही सही प्राचीन नालंदा यूनिवर्सिटी के भग्नावशेषों को यूनेस्को ने विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर लिया। नालंदा की ख्याति पर आखिरकार लंबी कवायद के बाद यूनेस्को ने भी मुहर लगा दी। विश्व धरोहर में शामिल होने के बाद अब पूरे इलाके का विश्वस्तरीय विकास होगा। विश्वस्तरीय सुविधाएं विकसित होंगी। यहां आने वाले सैलानियों की संख्या भी बढ़ेगी। सुविधा और सुरक्षा दोनों बढ़ेंगे। 

- इसके संरक्षण पर अधिक राशि खर्च होंगी और मानव संसाधन भी बढ़ाए जाएंगे। सैलानियों की संख्या बढ़ने पर व्यवसाय तो बढ़ेगा ही रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे।
- दो किलोमीटर इलाके को बफर जोन घोषित किया गया है। जिसके विकास, सुरक्षा और संरक्षण की जिम्मेवारी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया व बिहार सरकार के जिम्मे होगी।

पिछले साल ही हो गया था रास्ता साफ
- पिछले वर्ष ही नालंदा हेरिटेज को वर्ल्ड हेरिटेज में किए जाने का रास्ता करीब-करीब साफ हो गया था।
- इंटरनेशनल काउंसिल ऑन मॉन्यूमेंट एंड साइट्स (आईकोमस) के एक्सपर्टस प्रोफेसर मसाया-मसूई के नेतृत्व में 26 अगस्त 15 को एक टीम आई थी।
- टीम में दो दिनों तक नालंदा खंडहर और इसके आसपास के पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थलों का जायजा लिया था।
- स्थानीय जनप्रतिनिधि, व्यवसायी संघ व अन्य स्टेट होल्डरों के साथ बैठक की थी। प्रोफेसर मसूई ने सभी लोगों के साथ सीधा संवाद किया था।
- भाषा की समस्या आई थी। डीएम डाॅ. त्यागराजन एसएम द्विभाषिया बने थे। जवाब हिन्दी में मिलता था तो डीएम अंग्रेजी में ट्रांसलेट करते थे।
- इस बैठक की खासियत यह थी कि इसमें नालंदा यूनिवर्सिटी के कुलपति, नवनालंदा महाविहार के कुलपति से लेकर एक फुटपाथी दुकानदार और रिक्शा चालक, स्थानीय ग्रामीण, जनप्रतिनिधि तक शामिल थे। सभी ने कहा था नालंदा खंडहर विश्व धरोहर बने।
- इसके लिए वे लोग कोई भी त्याग करने को तैयार हैं। बैठक में पुरातत्व विभाग के निदेशक संरक्षण, एसआई के रीजनल डायरेक्टर, डीएम सहित कई वरीय पदाधिकारी शामिल थे।
- रिपोर्ट लेकर जाते-जाते प्रोफेसर मसूई ने कहा था कि इस ऐतिहासिक स्थान के विकास की अपार संभावना है। उन्होंने पॉजिटिव बातें कहीं थी और खंडहरों को देख उत्साहित भी थे।
क्या है नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास
- नालंदा यूनिवर्सिटी दुनिया का सबसे प्राचीन यूनिवर्सिटी है। इसके अवशेषों की खोज अलेक्जेंडर कनिघंम ने की थी।
- माना जाता है कि आज से करीब 824 साल पहले पढ़ाई होती थी। इसकी स्थापना 450 ई. में गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त ने की थी।
- इनके बाद हर्षवर्धन, पाल शासक और विदेशी शासकों ने विकास में अपना पूरा योगदान दिया। गुप्त राजवंश ने मठों का संरक्षण करवाया।
- कहा जाता है कि सम्राट अशोक और हर्षवर्धन ने यहां सबसे ज्यादा मठ, विहार तथा मंदिर बनवाए थे।
- मंदिर की संख्या तीन इस परिसर का सबसे बड़ा मंदिर है जहां से पूरे क्षेत्र का विहंगम नजारा देख सकते हैं।
- तीन नंबर मंदिर कई छोटे-बड़े स्तूपों से घिरा हुआ है, जिनमें भगवान बुद्ध की मूर्तियां बनी हुई हैं और इन मूर्तियों की मुद्राएं अलग-अलग हैं।
- 1193 ई. में आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस यूनिवर्सिटी को तहस-नहस कर जला डाला था। भगवान बुद्ध भी यहां आए थे।
- खासकर पांचवीं से 12वीं शताब्दी तक बौद्ध शिक्षा केन्द्र के रूप में यह विश्व प्रसिद्ध था। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने यहां अध्ययन किया था।
- दुनिया का पहला आवासीय महाविहार था जहां 10 हजार छात्र रहकर पढ़ाई करते थे। इन्हें पढ़ाने के लिए 2000 शिक्षक थे।
780 साल तक हुई थी पढ़ाई

इतिहासकारों के अनुसार करीब 780 साल तक पढ़ाई हुई थी। तब बौद्ध धर्म, दर्शन, चिकित्सा, गणित, वास्तु, धातु और अंतरिक्ष विज्ञान की पढ़ाई का यह महत्वपूर्ण केन्द्र माना जाता था।

गांव की अर्थव्यवस्था थी इस पर निर्भर
कहा जाता है कि आसपास के गांवों की अर्थव्यवस्था प्राचीन नालंदा यूनिवर्सिटी से जुड़ी थी। यूनिवर्सिटी के जरूरत के सामान आसपास के गांवों से ही जुटा लिया जाता था। नई बन रही यूनिवर्सिटी में ऐसी ही व्यवस्था की जा रही है।

मेहनत रंग लाई
डीएम डॉ. त्यागराजन एसएम ने कहा कि मेहनत रंग लाई। विश्व धरोहर में शामिल होने से नालंदा का पूरे विश्व में मान बढ़ा है और पर्यटन के क्षेत्र में जिले को एक नई उंचाई मिलेगी।

गौरव का क्षण
सांसद कौशलेन्द्र कुमार ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि काफी जद्दोजहद और संघर्ष के बाद यह विश्व धरोहर बना है। इसके शामिल होने से पूरे देश ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर नालंदा की गरिमा बढ़ेगी और पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी। नए स्थापित नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विवि को भी सहयोग मिलेगा। आज हम बिहारवासी ही नहीं पूरे देशवासियों के लिए गौरव का क्षण है।

शुक्रवार को 4 धरोहर हुए वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल
शुक्रवार को यूनेस्को ने भारत के प्राचीन नालंदा यूनिवर्सिटी के भग्नावशेष के अलावा चीन के जुओजिअंग हुआसन रॉक आर्ट कल्चर लैंड स्केप, ईरान के पर्शियन कनाट और फेडरल स्टेट ऑफ माइक्रोनेशिया के सेरिमोनियल सेंटर ऑफ इस्टर्न माइक्रोनेशिया को विश्व धरोहर में शामिल किया है। इन्हें यूनेस्को के चल रहे 40वें सेशन में शामिल किया गया है जो तुर्की के इस्तांबुल में चल रहा है। सेशन 10 जुलाई से शुरू हुआ है और 20 जुलाई तक चलेगा।

इसके आधार पर ही हुई है अंतर्राष्ट्रीय विवि की स्थापना
प्राचीन नालंदा यूनिवर्सिटी के महत्व और विशेषताओं से प्रेरित होकर ही इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई है। जहां 2014 से पढ़ाई शुरू हो गई है। नई यूनिवर्सिटी का निर्माण पुरानी यूनिवर्सिटी के भग्नावशेष से 12 किलोमीटर दूर राजगीर में किया जा रहा है।

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