पीएम मोदी का टाइम्स नाऊ को दिया पूरा इंटरव्यू हिन्दी में पढि़ए
पब्लिसिटी स्टंट से इस देश को कोई फायदा नहीं होगा: मोदी
देश के बाहर बहुत बोलने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लंबे समय से यह आरोप लगता रहा है कि वे भारतीय मीडिया की उपेक्षा कर रहे हैं। अपनी सरकार के दो साल पूरे होने पर भी उन्होंने इंटरव्यू देने के लिए विदेशी अखबर ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ को चुना था। लंबे समय बाद नरेंद्र मोदी ने भारतीय मीडिया के सामने अपनी यह चुप्पी तोड़ी है और अंग्रेजी न्यूज चैनल ’टाइम्स नाउ’ के अर्णव गोस्वामी को लंबा इंटरव्यू दिया है। काफी विस्तार से हुई बातचीत में मोदी ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों मोर्चों पर देश के सामने मौजूद चुनौतियों के अलावा ऐसे और कई मुद्दों पर खुलकर बात की जिनके बारे में उनसे सवाल तो पूछे जाते रहे हैं, लेकिन उनकी ओर से जवाब कभी नहीं आया। हिन्दी के पाठकों के लिए मध्यमत डॉट कॉम की ओर से प्रस्तुत है इस इंटरव्यू का पूरा ब्योरा–
सवाल– प्रधानमंत्री जी, मैं अपनी बात 20 मई 2014 से शुरू करता हूं, जब आम चुनावों के नतीजे आए चारदिन हो चुके थे। इस दिन संसद के सेंट्रल हॉल में आपने ऐतिहासिक भाषण दिया था। आपने कहा था कि इननतीजों से जिम्मेदारी का एक नया युग शुरू हो रहा है। आपने कहा था कि अगले आम चुनावों (2019) से पहलेआप एक बार फिर इसी तरह संसद और अपने सांसदों के बीच आएंगे और अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करेंगे।आपके इस कार्यकाल का 40 फीसदी पूरा हो चुका है, अब तक आप अपना कितना लक्ष्य हासिल कर पाए हैं?
जवाब – सांसद बनने से पहले मैं संसद के सेंट्रल हॉल में नहीं गया था। यही वजह है कि प्रधानमंत्री बनने पर मैंने कहा कि यह एक पद की बात नहीं है, बल्कि यह प्रधानमंत्री के तौर पर काम करने और उसकी जिम्मेदारी निभाने की बात है। मैंने यह भी कहा था कि मेरी सरकार गरीबों के लिए कमिटेड रहेगी। दिल्ली का माहौल मेरे लिए नया था। भारत सरकार कैसे काम करती है- यह भी मैंने पहले बार जाना था। लेकिन इसके बावजूद इस छोटे से कार्यकाल में देश हर क्षेत्र में आगे बढ़ा है। अगर आप पिछली सरकारों से तुलना करें तो पाएंगे कि हमारी सरकार ने किसी भी मुद्दे की अनदेखी नहीं की है। हमारी कोशिश हर क्षेत्र में कुछ नया करने और बदलाव लाने की है। मैंने महसूस किया था कि पूरा सिस्टम हताशा में डूबा हुआ है। सिस्टम में भरोसा पैदा करने और आम जनता में विश्वास बढ़ाने की बड़ी चुनौती हमारे सामने थी। आज मैं यह बात पूरे भरोसे से कह सकता हूं कि अब वैसी हताशाओं का कोई निशान बाकी नहीं है। जब भी हमारी सरकार की परफॉर्मेंस की बात उठती है, आपको यह तुलना पिछली सरकार के 10 सालों के कामकाज के आधार पर करनी चाहिए। तभी आप जान पाएंगे कि तब और अब में क्या फर्क आया है। तभी आपको अपने उजले भविष्य का अहसास हो सकेगा।
सवाल– जहां तक विदेश नीति की बात है, पिछले प्रधानमंत्रियों की तुलना में आपने इसमें खासी दिलचस्पीदिखाई है। आपकी विदेश नीति की दिलचस्प बात यह है कि विभिन्न ताकतों और हितों के बीच आपने संतुलनबनाने की कोशिश की है। एक तरफ आप अमेरिका से रिश्ते बरकरार रखते हुए मिसाइल संधि– एमसीटीआरपर दस्तखत करते हैं। तो दूसरी तरफ कुछ ही समय पहले आपने ईरान के साथ चाबहार समझौता किया है। मेरासवाल यह है कि भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर विभिन्न ताकतों को साधना कितना आसान है?
जवाब- आपको यह समझना चाहिए कि किस बात ने हमारी विदेश नीति को आज इतनी ताकत दी है। पिछले 30 सालों से देश में अस्थिर सरकारों का दौर था। इस अवधि में स्पष्ट बहुमत वाली पार्टी को सरकार बनाने का मौका नहीं मिला। दुनिया किसी देश की सरकार की ताकत को इस बात से आंकती है कि उसकी अपने देश में क्या हैसियत है। मैं भारत की जनता का शुक्रगुजार हूं कि उसने 30 साल बाद स्पष्ट बहुमत वाली सरकार चुनी, जिसका विश्व राजनीति पर अच्छा असर पड़ा। इससे दुनिया के नेताओं और देशों ने भारत को लेकर अपना नजरिया बदला। इसका बहुत फायदा हुआ। दुनिया देश के मुखिया को जानना चाहती है लेकिन मोदी को कोई जानता नहीं था। पूरा विश्व जानना चाहता था कि आखिर भारत का प्रधानमंत्री कौन है। अगर कोई मोदी को मीडिया के जरिये जानने की कोशिश करता तो वह मोदी के बारे में वास्तविक मोदी से अलग एक छवि बनाता, जिसका नुकसान हमारे देश को होता। इसलिए बतौर प्रधानमंत्री मुझे विदेश नीति के संबंध में प्रो-ऐक्टिव होना पड़ा। इसीलिए मैं विश्व नेताओं से निजी तौर पर मिला।
सवाल– विदेशी नीति के मामले में आपकी कोई पहचान नहीं थी?
जवाब- विदेश नीति के मुकाबले यह बात वैदेशिक संबंधों की है। बेशक मैं इसके लिए नया था। इसलिए जरूरी था कि मैं इसे लेकर अपनी दिलचस्पी दिखाऊं। इसके अलावा हमने एक टीम की तरह काम किया। विदेश मंत्रालय, पीएमओ के अधिकारी, वित्त मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, रक्षा मंत्री- हर किसी ने साथ होकर काम किया, अलग रहकर नहीं। इसका असर अब साफ दिख रहा है और यह सिर्फ एक मोदी के कारण नहीं हुआ। हमें यह भी समझने की जरूरत है कि पहले विश्व दो-ध्रुवीय था। विदेश नीति भी दो महाशक्तियों के इर्दगिर्द सिमटी हुई थी। भारत ने यह समझने में देरी की कि यह दो-ध्रुवीय स्थिति एक सिक्के के दो पहलुओं जैसी थी। इसी तरह पहले विदेश नीति सरकारों के बीच की बात मानी जाती थी। पर अब बदले हुए हालात में यह सिर्फ सरकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सरकारों के परस्पर संबंधों के साथ-साथ पीपल-टु-पीपल कॉन्टैक्ट भी एक जरूरी चीज है। इन्हीं बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए आज हम विश्व से जुड़ रहे हैं। हम सभी देशों से सम्मान से बात करते हैं और किसी भी देश को छोटा नहीं मानते। हम पूरी दुनिया से अपने संबंध बना रहे हैं। इसके लिए मैं भावना के साथ सऊदी अरब से बातचीत करता हूं, उसी सम्मान के साथ ईरान, अमेरिका, रूस से बात करता हूं। साथ ही हमें छोटे देशों के महत्व को भी समझने की जरूरत है। एक बार मैं विदेश सेवा के अधिकारियों के साथ बैठा और थोड़ा काव्यात्मक लहजे में मैंने उन्हें बताया कि एक वक्त वह था, जब हम समंदर के किनारे लहरें गिना करते थे। लेकिन अब वक्त आ गया है कि हम पतवार लेकर समंदर में खुद उतरें।
सवाल– एनएसजी की सदस्यता के लिए आपने एड़ी–चोटी का जोर लगाया। हम अब इसके कितने नजदीक हैं,क्या चीन के विरोध को लेकर क्या आप निराश हैं?
जवाब- हमारा देश यूएन सिक्यॉरिटी काउंसिल में सीट पाने, एससीओ की सदस्यता के लिए और एमटीसीआर या फिर एनएसजी सदस्यता इनके लिए काफी अरसे से कोशिश करता रहा है, चाहे कोई भी सरकार सत्ता में रही हो। हम इसी सिलसिले को आगे बढ़ा रहे हैं। हमारी कामयाबी यह है कि हमने एससीओ और एमटीसीआर की सदस्यता हासिल कर ली है। मुझे पूरी उम्मीद है कि हम एनएसजी मेंबरशिप भी हासिल कर लेंगे। इसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
सवाल– पहले मसूद अजहर का मामला और अब एनएसजी की बात, चीन ने हर जगह अड़ंगा लगाया है।जबकि आप निजी तौर पर कई कोशिशें कर रहे हैं, चीन हर मौके पर भारत का विरोध क्यों कर रहा है?
जवाब- वैचारिक तौर पर भिन्न होना स्वाभाविक है पर इस भिन्नता को खत्म करने का तरीका परस्पर संवाद बढ़ाना है। चीन के साथ भारत की कई समस्याएं हैं, जिन्हें धीरे-धीरे हल करने का प्रयास चल रहा है। मैं कह सकता हूं कि मुद्दों को सुलझाने के लिए चीन हमारे साथ सहयोग कर रहा है। कुछ मसलों पर सैद्धांतिक तौर पर उन्हें समस्या है, तो कुछ पर हमारे सिद्धांत आड़े आते हैं। दोनों के बीच कुछ मूलभूत समस्याएं हैं पर महत्वपूर्ण यह है कि हम चीन से आंख में आंख डालकर बात कर रहे हैं और भारत के हितों को उनके सामने रख रहे हैं।
सवाल– क्या एनएसजी के मुद्दे पर हम चीन को राजी कर पाएंगे?
जवाब- देखिए, विदेश नीति का मतलब माइंडसेट बदलना नहीं है। इस अर्थ बातचीत के साझा बिंदुओं की तलाश करना है। हमें हर देश के साथ मिल-बैठकर बात करनी होती है। यह एक सतत जारी रहने वाली प्रक्रिया है।
सवाल– अमेरिकी कांग्रेस में आपके भाषण की काफी सराहना हुई है। आपने लतीफे गढ़े, लोगों को हंसाया।कैसे कर पाए यह सब?
जवाब- मैं थोड़ा-बहुत हास्य-विनोद कर सकता हूं, लेकिन ह्यूमर आजकल एक रिस्की चीज हो गया है। चौबीसों घंटे चलने वाले टीवी चैनलों के दौर में कब एक छोटा-सा शब्द बड़े मुद्दे में तब्दील हो जाए- कहा नहीं जा सकता। पर मैं आपको एक पते की बात बताता हूं। सार्वजनिक जीवन में ह्यूमर के खात्मे की वजह है भय। मैं खुद डरा रहता हूं। पहले जब मैं भाषण देता था, काफी विनोद करता था लेकिन कभी उसे लेकर कोई बखेड़ा नहीं खड़ा हुआ।
सवाल– तो क्या अब आप ज्यादा सतर्क रहने लगे हैं?
जवाब- बात सतर्कता की नहीं, डर की है। हर कोई डरा रहता है। मैं खुद भी। मैंने यह संसद में देखा है, जहां हंसी-मजाक खत्म हो चला है। यह चिंता की बात है। मैं यह बात मुहावरे में कहना चाहता हूं…
जी, जरूर…
बल्कि जब आप कोई कहावत या मुहावरा भी कहते हैं, तो भी खतरा यह है कि वे उसे किसी और चीज से जोड़ लें और उस पर चर्चा शुरू हो जाए…
लेकिन आपको अपना सेंस ऑफ ह्यूमर नहीं छोड़ना चाहिए।
पर सच यह है कि मेरे अमेरिकी दौरे, वहां के भाषण और हमारे देश को दिए गए सम्मान को लेकर एक हाइप क्रिएट कर दिया गया। इसका असर यह हुआ कि अब हमारी सरकार की आलोचना एनएसजी को लेकर नहीं हो रही बल्कि इसलिए हो रही है कि हम वहां (अमेरिका) में काफी सफल रहे।
सवाल– अमेरिका में दिए अपने भाषण में आपने एक दिलचस्प जुमले– हम इतिहास की हिचकिचाहट से बाहरआ गए हैं– का इस्तेमाल किया। मेरा सवाल यह है कि हम अमेरिका के आखिर कितने नजदीक जा सकते हैं,जबकि देश में बहुतेरे लोग मानते हैं कि अमेरिका आज भी पाकिस्तान को सपॉर्ट कर रहा है और उसे सैन्यसहयोग दे रहा है।
जवाब- मैं आपके जरिये अपील करना चाहूंगा कि भारत से जुड़ी हर चीज को पाकिस्तान के चश्मे से देखना बंद किया जाए। यह हमारी क्षुद्रता और बड़ी गलती होगी, अगर हम खुद को किसी दूसरे मुल्क से जोड़कर देखें और उसी मुताबिक कोई काम करें। एक स्वतंत्र देश होने के नाते हमारी अपनी नीतियां और अपना भविष्य है।
सवाल– पाकिस्तान पर नरमी तो नहीं? मोदी जी इससे पहले 8 मई 2014 को जब आपने मुझे इंटरव्यू दिया था,तब चुनाव का आखिरी चरण ही शेष था। हम अभी पाकिस्तान पर चर्चा कर रहे हैं। दो दिन पहले ही लश्कर–ए–तैबा ने हमारे आठ जवानों को मार दिया। 8 मई के इंटरव्यू में आपने बहुत अच्छी बात कही थी – ’क्या बम,बंदूक और पिस्तौल के शोर में बातचीत सुनी जा सकती है?’ क्या आप मानते हैं कि हम पाकिस्तान को लेकरबहुत उदार हो गए हैं?
जवाब- दो बातें हैं। पहला- भारत अपने पड़ोसियों से दोस्ताना रिश्ते चाहता है। मैं लगातार कहता रहा हूं कि भारत को गरीबी से लड़ना है, पाकिस्तान को भी गरीबी से लड़ना है। क्यों न हम मिलकर गरीबी से लड़ें, इलेक्शन कैंपेन के दौरान भी मैंने यह बात कही थी। मैंने शपथग्रहण में सार्क देशों को न्योता भेजा और वे आए भी। हमारी मंशा, विचार और मौजूदा व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है। दूसरी बात, जिन्हें मेज पर काम करना है, वे वहीं पर काम करेंगे और जिन्हें सीमा पर काम करना है, वे पूरी ताकत से सीमा पर काम करेंगे। हर कोई दी गई जिम्मेदारी पूरी तरह निभाएगा। हमारे जवान अपना कर्त्तव्य निभा रहे हैं। बेशक, आतंकियों पर दबाव बढ़ा है, उनकी साजिशें नाकाम हुई हैं। जिन मंसूबों से वे आगे बढ़े थे, उन्हें नाकाम किया गया है इसलिए उनमें हताशा है और इसी कारण इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। हमारे जवान अपनी जान जोखिम में डालकर देश की सुरक्षा कर रहे हैं। हमें उन पर गर्व है।
सवाल– पिछले साल अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर के बीच पाकिस्तान से काफी संपर्क हुआ। 30 नवंबर कोआप नवाज शरीफ से पैरिस में मिले, सात दिन बाद ही एनएसए लेवल की बातचीत बैंकॉक में हुई। फिर आपअफगानिस्तान होते हुए रूस गए और वापसी में नवाज शरीफ के यहां अप्रत्याशित भेंट करने गए। यह एकनिजी भेंट थी मगर काफी अहमियत रखती थी। आठ दिन बाद ही पाकिस्तानी आतंकवादी पठानकोट परहमला करते हैं। क्या पाकिस्तान इन तीन महीनों में हमसे सही तरीके से मुखातिब हो रहा था?
जवाब- पाकिस्तान में अलग-अलग तरह की फोर्स काम करती हैं। सरकार सिर्फ लोकतांत्रिक रूप से चुने गए सिस्टम के साथ ही बात करती है। हमारी कोशिश देश के हितों की रक्षा करना और शांति स्थापित करना है जिसके लिए हम लगातार कोशिश कर रहे हैं और हमारे प्रयास कई बार सफल होते हैं। जहां तक मुलाकात और वार्ता का सवाल है, हम शुरू से ही कह रहे हैं कि हम दोस्ताना रिश्ते चाहते हैं, मगर अपने हितों से समझौता किए बगैर। यही वजह है कि हमारे देश के सैनिकों को दुश्मन की हरकतों का पुरजोर जवाब देने की पूरी छूट दी गई है।
सवाल– पाकिस्तान को लेकर कुछ लक्ष्मण–रेखाएं रही हैं। जैसे कि 2014 में माना जाता था कि पाकिस्तानसरकार से बातचीत सीधे होगी, हुर्रियत शामिल नहीं होगी। दूसरी लक्ष्मण–रेखा थी कि पहले पाक 26/11 परकार्रवाई करे मगर इस पर कुछ प्रगति होती नहीं दिखी। तीसरी बात पठानकोट केस में तरक्की को लेकर है। यहबताएं कि पाकिस्तान को लेकर अब हमारी लक्ष्मण–रेखा क्या है। अगर पाक इन दायरों में रहेगा तो क्याबातचीत राजनीतिक स्तर पर होगी या किसी दूसरे स्तर पर?
जवाब- लक्ष्मण-रेखा पाक को तय करनी होगी। क्या बातचीत चुनी हुई सरकार के साथ की जाए या दूसरे तत्वों के साथ। भारत को इन स्थितियों के कारण ही हमेशा सतर्क रहना होता है। मेरे लगातार प्रयासों के नतीजे भी आ रहे हैं। अब हमें दुनिया को अपनी पोजिशन बताने की जरूरत नहीं। दुनिया भारत की पोजिशन की एकसुर में सराहना कर रही है। दुनिया देख रही है कि पाकिस्तान के लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा है। अगर हम बाधा बनते तो दुनिया को समझाना पड़ता पर हम बाधा नहीं बन रहे हैं। आतंकवाद का मसला ही लें तो दुनिया कभी भी आतंकवाद पर हमारी थियरी को नहीं मानती थी। वे कह देते थे कि यह आपके यहां लॉ एंड ऑर्डर की समस्या है। आज दुनिया उन बातों को स्वीकार कर रही है जिन्हें भारत कहता आ रहा था। आतंकवाद पर भारत की बातचीत, आतंक से पहुंची क्षति, मानवता को हुए नुकसान , इन सभी बातों को दुनिया अब मान रही है। ऐसे में मेरा मानना है कि हमें इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाना होगा।
सवाल– बीते दो सालों में आपने कई योजनाएं शुरू कीं – जनधन योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना,स्वच्छ भारत, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया। क्या बतौर पीएम आपकी इकॉनमिक फिलॉसफी के केंद्र मेंसामाजिक अजेंडा है?
जवाब- पहली बात, हमारी फिलॉसफी आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुंचना है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन ही हमारी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विचारधारा के केंद्र में है। महात्मा गांधी भी यह सवाल उठाया करते थे कि आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति के लिए क्या है/ इसलिए विकास को लेकर मेरा मापदंड बेहद सीधा है कि गरीबों में से भी सबसे गरीब शख्स को विकास से कैसे फायदा पहुंचाया जाए। मेरे आर्थिक अजेंडा के केंद्र में गरीब व्यक्ति है। गरीब को इस तरह मजबूत बनाना होगा कि वह गरीबी को हराने की इच्छाशक्ति रखें। एक तरीका यह भी है कि बेशक व्यक्ति गरीबी में ही रहे मगर उसकी जरूरत की चीजें उपलब्ध कराने में मदद दी जाए। मैं यह नहीं कहता कि यह सही है या गलत, मगर यह भी एक रास्ता है। आज देश की स्थिति यह है कि हमें गरीब को मजबूत बनाना होगा ताकि वे गरीबी को हराने में सहयोगी बनकर काम करें। ये सभी स्कीमें गरीब को मजबूत करने और जीवन की गुणवत्ता बदलने के लिए हैं। प्रधानमंत्री जनधन योजना का मतलब सिर्फ गरीब का बैंक खाता खुलवाना नहीं है बल्कि उसे यह अहसास दिलाना भी है कि वह देश के इकॉनमिक सिस्टम का हिस्सा है। जिस बैंक को वह दूर से देखा करता था, वह उसमें दाखिल हो सकता है। यह मनोवैज्ञानिक बदलाव लाने का काम करता है। अब दूसरी तरह से देखिए, क्या आपने कभी सोचा था कि गरीब लोगों के योगदान से बैंकिंग सिस्टम में 40 हजार करोड़ रुपये डाले जा सकते हैं। जिन गरीबों के कभी बैंक खाते नहीं थे, उन्होंने 100 रुपये, 50 रुपये और 200 रुपये जमा करवाए। इसका मतलब कि गरीब व्यक्ति ने 100 रुपये बचाए और उसके जीवन में बदलाव शुरू हो गया।
सवाल– एक ओर जनता की अपेक्षाएं हैं और दूसरी तरफ आपका विजन है। कई योजनाएं जो आपने बताईंउनका तुरंत असर नहीं दिख रहा। मुमकिन है वे तीन, चार या पांच साल में असर दिखाएं पर लोगों को त्वरितनतीजे चाहिए। आर्थिक मोर्चे पर कई आंकड़े सुधरने के बावजूद लोग कह रहे हैं कि नौकरियों की तादाद नहींबढ़ रही है। श्रम से जुड़े ताजा आंकड़े क्या आपकी चिंता का विषय नहीं हैं?
जवाब- पहली बात, देश में 80 करोड़ लोग 35 साल की उम्र से कम के हैं। हमें स्वीकारना होगा कि नौकरियों की मांग बेहद ज्यादा है। पर उन्हें रोजगार मिलेगा कहां, निवेश आएगा, उसका इस्तेमाल इंफ्रास्ट्रक्चर, मेनुफेक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में होगा। हमने मुद्रा योजना शुरू की है। देश में तीन करोड़ से ज्यादा लोग धोबी, नाई, दूधवाले, अखबार बेचने वाले, ठेलीवाले हैं। हमने उन्हें करीब 1.25 लाख करोड़ रुपये बिना किसी गारंटी के दिए हैं। लोगों ने यह पैसा क्यों लिया, अपना काम फैलाने के लिए। जब वे ऐसा करेंगे, उन्हें एक के बजाय काम पर दो लोगों को रखना होगा। पहले दो थे तो अब तीन रखने होंगे। जब तीन करोड़ छोटे व्यवसायियों को पैसा मिलेगा, वे अपना काम फैलाएंगे। यह सब श्रम विभाग के रजिस्टर में दर्ज नहीं होगा। हमने एक बात और तय की है। देश में बड़े मॉल साल में रोजाना चलते हैं मगर छोटी दुकानें छुट्टियों पर बंद रहती हैं। हमने बजट में ऐलान किया कि छोटे दुकानदार भी देर रात तक दुकान चला सकते हैं। वह भी हफ्ते के सातों दिन। अब अगर दुकानदार ऐसा करेगा तो उसे ज्यादा लोग रखने पड़ेंगे, तो क्या इससे रोजगार नहीं बढ़ेगा।
सवाल– क्या आपका फोकस आंत्रप्रन्यॉरशिप पर है? हमारा फोकस हर पहलू पर है। हम साल 2022 तक हरव्यक्ति के लिए एक मकान सुनिश्चित करना चाहते हैं। हाउसिंग सेक्टर के पास रोजगार सृजन की सबसे ज्यादाक्षमता है। हम टेक्सटाइल पॉलिसी लाए। इसके तहत उन लोगों को टैक्स बेनिफिट मिलेगा जो रोजगार पैदाकरेंगे। जो जितना रोजगार पैदा करेगा, उसे उतना टैक्स बेनिफिट मिलेगा। पहली बार रोजगार सृजन को टैक्ससे जोड़ा गया है। ये सभी चीजें रोजगार बढ़ाएंगी और हमारा मेन फोकस आम नागरिक के लिए रोजगार पैदाकरना है।
जवाब- रघुराम राजन के आरबीआई गवर्नर पद से बाहर होने को लेकर जो विवाद हुआ, उस पर आपकी राय क्या है? कहा गया कि इससे ग्लोबल इकॉनमी के तौर पर भारत की इमेज और परसेप्शन पर असर पड़ेगा।
जब मेरी सरकार 2014 में बनी थी, तब टीवी पर यही चर्चा होती थी कि क्या मोदी सरकार राजन को अपना कार्यकाल पूरा करने देगी क्योंकि पिछली सरकार उन्हें पद पर लाई थी। मगर आपने सभी धारणाओं को धराशायी होते देखा होगा। रघुराम राजन अपना कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। दूसरी बात, सरकार में मेरा दो साल का अनुभव बताता है कि जो लोग विवाद पैदा कर रहे हैं, वे राजन के साथ ही नाइंसाफी कर रहे हैं।
सवाल– आपने हाल में बीजेपी कार्यकारिणी में सात शब्द कहे थे – सेवाभाव, संतुलन, संयम, संवाद, समन्वय,सकारात्मक और संवेदना। आपने कहा था कि पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को इन गुणों को अपनीरोजमर्रा की जिंदगी में उतारना चाहिए। रघुराम राजन के संदर्भ में आपकी ही पार्टी के राज्यसभा सांसद ने कईटिप्पणियां कीं। बाद में उन्होंने सीनियर ब्यूरोक्रेट्स के बारे में भी आलोचनात्मक टिप्पणियां कीं। क्या आप इसेसही मानते हैं?
जवाब- चाहे कोई मेरी पार्टी से हो या नहीं, ऐसी चीजें गलत हैं। देश को ऐसे पब्लिसिटी स्टंट्स से फायदा नहीं होने वाला। कोई यह समझे कि वह सिस्टम से बड़ा है, तो वह गलत है। मैं साफ बात करता हूं। इस बारे में मेरी दो राय नहीं।
सवाल– लोगों को उम्मीद थी कि आप खाने की चीजों की कीमत कम करवाएंगे। इसका राजनीतिक ही नहींसामाजिक प्रभाव भी पड़ता है। बीते दो हफ्तों में ऐसी रिपोर्टें आई हैं कि कुछ जगहों पर अरहर की दाल 150रुपये किलो और दूसरी दालें 200 रुपये किलो तक पहुंच गईं। टमाटर के दाम भी बढ़ रहे थे। क्या यह सिर्फमौसमी असर है क्योंकि हर साल खाद्य महंगाई दर 7.5 पर्सेंट की दर से बढ़ रही है। वहीं दुन