भागवत कथा एक कल्पवृक्ष की भाँति मनोवांछित फल देती है- साध्वी पदम्हस्ता भारती
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा लखानी ध्र्मशाला, 2/एपफ-ब्लाॅक, एन.आई.टी. पफरीदाबाद, हरियाणा में दिनांक19 जून से 25 जून तक ‘श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ’ का भव्य व विशाल आयोजन किया जा रहा है।
इस कथा के प्रथम दिवस पर श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या महामन स्विनी साध्वी सुश्री पदम्हस्ताभारती जी ने श्रीमद्भागवतकथा का महात्म्य बताते हुए कहा कि वेदों का सार युगों-युगों से मानव जाति तक पहुँचता रहा है। ‘भागवत महापुराण’ यह उसी सनातन ज्ञान की पयस्विनी है जो वेदों से प्रवाहित होती चली आ रही है । इसीलिए भागवत महापुराण को वेदों का सार कहा गया है।साध्वीजी ने श्रीमद्भागवतमहापुराण की व्याख्या करते हुए बताया कि श्रीमद्भागवत अर्थात जो श्री से युक्तहै, श्रीअर्थात् चैतन्य, सौन्दर्य, ऐश्वर्य। ‘भगवतः प्रोक्तम् इतिभागवत।’ भावकि वो वाणी, वो कथाजोहमारेजड़वत जीवन मेंचैतन्यताकासंचारकरतीहै।जोहमारे जीवन कोसुन्दरबनातीहै वो श्रीमद्भागवतकथाहैजोसिपर्फमृत्युलोकमेंसंभवहै।
श्रीमद्भागवतीकथावार्ताः सुराणाम{पिदुर्लभा।
साध्वीजी ने कथा कहते हुए यह बताया कि यह एक ऐसी अमृत कथा है जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।इसलिए परीक्षित ने स्वर्गामृत की बजाए कथामृत की ही मांग की । इस स्वर्गा मृत का पान करने से पुण्यों का तो क्षय होता है पापों का नहीं।किन्तु कथा मृत का पान करने से सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है।भागवत कथा एक कल्पवृक्ष की भाँति है जो जिस भाव से कथा श्रवण करता है, वह उसे मनोवांछित फल देती है और यह निर्णय हमारे हाथों में है कि हम संसार की माँग करते हैं या करतार की। ‘श्री मद्भागव तेनैव भक्ति मुक्ति करे स्थिते।।’अर्थात् अगर भक्ति चाहिए तो भक्ति मिलेगी, मुक्ति चाहिए तो मुक्ति मिलेगी।
कथा के दौरान भागवत कथा महात्म्य में तुंगभद्रा नदी के तट पर निवास करने वाले आत्मदेव का वर्णन आता है।इस तुंग भद्रा के बारे में बताते हुए साध्वी पदम्हस्ता भारतीजी ने बताया कि तुंग भद्रा अर्थात् कल्याण करने वाली, चैरासी लाख योनियों से उत्थान दिलवाने वाली यह मानव देह ही कल्याणकारी है जो हमें ईश्वर से मिलाती है। यह मिलन ही उत्थान है।आत्मदेव जीवात्मा का प्रतीक है, जिसका लक्ष्य मोह, आसक्ति के बंध्नों कोतोड़, उस परमतत्व से मिलना है। यूँ तो ऐसी कई गाथाएं, कथाएं हम अनेकों व्रत व त्योहारों पर भी श्रवण करते हैं, लेकिन कथा का श्रवण करने या पढ़ने मात्रा से कल्याण नहीं होता । अर्थात् जब तक इन से प्राप्त होने वाली शिक्षा को हम अपने जीवन में चरितार्थ नहीं कर लेते, तब तक कल्याण संभव नहीं।
साध्वीजी ने भीष्मदेह त्याग के मार्मिक प्रसंग से भक्तों को भाव विभोर कर दिया।जिसे श्रवण कर सभी के हृदयों में प्रभु को प्राप्त करने की प्रार्थना प्रबल हो उठी।
इसके अतिरिक्त स्वामीजी ने अपने विचारों में संस्थान के बारे में बताते हुए कहा कि संस्थान आज सामाजिक चेतना व जन जाग्रति हेतु आध्यात्मिकता का प्रचार व प्रसार कर रही है । इस भव्य आयोजन में इनके अतिरिक्त सुश्री शालिनी भारती जी,पदम्हस्ता भारतीजी, अभिनंदना भारतीजी,बोध्याभारतीजी,अर्चनाभारतीजी,महाश्वेता भारतीजी, और स्वामी प्रमिता नंदजी, स्वामी मुदितानंदजी, स्वामी करूणेशानंद जी, श्री अनिरु( जी, श्रीपवनजी, श्रीअनूपजीइत्यादिउपस्थितहुए।
सुमध्ुर भक्ति भावों से पुरित भजनों से सुसज्जित इस 7 दिवसीय कथा ज्ञान यज्ञ के आयोजन का शुभारंभ आज दिनांक19 जून को हुआ, जो 25 जून तक प्रति दिन सायं 5ः30 बजे से रात्रि 9ः00 बजे तक होगा।