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आचार्य वर्धमानसागरजी महाराज का प्रज्ञासागरजी से हुआ मिलन



तपोभूमि पहुंचे आचार्य वर्धमानसागरजी महाराज-तपोभूमि में हुआ वारिधी महोत्सव
उज्जैन। बीसवीं सदी के प्रथम दिगंबराचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य 108 श्री शांतिसागरजी महाराज की अक्षुण्ण परंपरा के पंचम पट्टाचार्य वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री 108 वर्धमानसागरजी महाराज का तथा मुनि प्रज्ञासागरजी महाराज का भव्य मिलन समारोह इंदौर रोड़ पर तक्षशीला स्कूल के सामने हुआ। जिसे देखने के लिए देशभर से लोग उज्जैन पहुंचे थे। आचार्यश्री के साथ 37 पिछियां मुनि प्रज्ञासागरजी के साथ दो पिछी और करीब 4 दीदियां आई हुई थी।
मीडिया प्रभारी सचिन कासलीवाल के अनुसार मुनिप्रज्ञासागरजी महाराज ने आचार्यश्री को प्रणाम किया और आचार्यश्री ने सहज स्वीकार किया। यह क्षण उज्जैन और मालवा की नगरी में पहली बार देखा गया। यहां से बैंडबाजों और धर्मध्वजा के साथ चल समारोह प्रारंभ हुआ। प्रज्ञाकलामंच की समस्त महिलाओं ने मुनिश्री की अगवानी हेतु जगह-जगह रांगोली मांडकर एवं पादप्रक्षालन कर स्वागत किया। सभी महिलाएं एक जैसे वस्त्रों में थीं। महिलाएं कलश लेकर जुलूस के आगे-आगे चल रही थीं। जुलूस तपोभूमि पहुंचा जहां आचार्यश्री का पाद प्रक्षालन 27 परिवारों द्वारा किया गया। मुनि प्रज्ञासागरजी महाराज के साथ आचार्यश्री ने ससंघ महावीर भगवान के मुख्य मंदिर सहित सभी मंदिरों में दर्शन किये। आचार्यश्री के सानिध्य में कलश एवं शांतिधाराएं हुई। तत्पश्चात आचार्यश्री की आहारचर्या संपन्न हुई। दोपहर में 1 बजे से वारिधि महोत्सव प्रारंभ हुआ। सभी मुनिराज एवं माताजी महावीर तपोभूमि के प्रांगण में मंच पर विराजित हुए। सर्वप्रथम प्रज्ञापुष्प मंच की प्रस्तुति हुई। जिसमें छोटी-छोटी बालिकाओं ने धार्मिक नृत्य किया। तत्पश्चात देशभर से आए लोगों का महावीर तपोभूमि में सम्मान किया गया। प्रज्ञा कलामंच की विशेष सांस्कृतिक प्रस्तुति हुई जिसमें नृत्य नाटिका के माध्यम से वर्धमानसागरजी के जीवन का परिचय दिया। मुनिश्री प्रज्ञासागरजी महाराज ने आचार्य वर्धमानसागरजी महाराज का पाद प्रक्षालन किया। प्रज्ञासागरजी ने कहा कि बड़े संतों का पाद प्रक्षालन बड़े सौभाग्य से मिलता है। जन्मों के पुण्य प्रताप के कारण आचार्यश्री के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य मिला। पाद प्रक्षालन में विशेष सहयोग महेश जैन दिनेश जैन परिवार ने दिया। शास्त्र भेंट हेमंत अंशुल पाटनी निवाई परिवार द्वारा किया गया। आरती का सौभाग्य अशोक जैन चायवाला परिवार को प्राप्त हुआ। कार्यक्रम में मुनिश्री प्रज्ञासागरजी महाराज के चातुर्मास की घोषणा भी होना थी। घोषणा के लिए जयपुर, कोटा, चाकसू, बापूगांव, सूरत, अहमदाबाद, इंदौर, भोपाल, उज्जैन, पाटन सहित देशभर से लोग चातुर्मास का श्रीफल लेकर मुनिश्री को भेंट करने पहुंचे लेकिन मुनिश्री प्रज्ञासागरजी महाराज का चातुर्मास बापूगांव छोटा गिरनार की घोषणा हुई जो आचार्य वर्धमानसागरजी ने की। बापूगांव जयपुर के पास स्थित है जो उज्जैन से 500 किलोमीटर दूर है यहां 24 जुलाई को मुनिश्री प्रज्ञासागरजी की चातुर्मास स्थापना होना है। मुनि प्रज्ञासागरजी महाराज 25 से 30 किलोमीटर प्रतिदिन पैदल विहार करेंगे। मुनिप्रज्ञासागरजी ने प्रवचन भी दिये जिसमें उन्होंने कहा कि आचार्य वर्धमानसागरजी महाराज महान आचार्य हैं। जिन्होंने अपने गुरू शांतिसागरजी महाराज की बातों का अनुशरण करके अनेक पद्धतियां उनके हिसाब से आज भी करते हैं। आज के इस भौतिक और वैज्ञानिक युग में उन परंपराओं का पालन करना बहुत कठिन कार्य है। आचार्यश्री तो करते ही हैं उनके संघ में जितने भी मुनि हैं माताजी हैं वे सब भी कड़े नियमों का पालन करते हुए जैन धर्म की प्रभावनाओं को पूरे भारतवर्ष में फैला रहे हैं। दिखा रहे हैं कि दिगंबर जैन धर्म एक अनूठा और अनोखा धर्म है। मुनिप्रज्ञासागरजी महाराज ने जनता अनुमोदना एवं तपोभूमि ट्रस्ट की भावना से आचार्य वर्धमानसागरजी को आचार्य तपोनिधि उपाधि से अलंकृत किया। मुनिश्री प्रज्ञासागरजी महाराज ने कहा कि मेरा ऐसा मानना है कि वर्तमान में वर्धमान जो महावीर स्वामी का पांचवा नाम माना जाता है ऐसे आचार्य को उपाधि देकर हमने उनको नहीं बल्कि अपने आप को गौरवान्वित किया है। उपाधि एक पत्र पर लिखी हुई थी जिसका मंचन भी मुनि प्रज्ञासागरजी महाराज ने अपने मुख से किया और उपाधि आचार्य वर्धमानसागरजी को दी। आचार्य वर्धमानसागरजी ने अपने प्रवचन में कहा कि उज्जैन की इस पौराणिक और ऐतिहासिक भूमि का उल्लेख जैन ग्रंथों में है। मात्र 2600 साल पूर्व महावीर स्वामी यहां पर तप करने आए थे। इस पावन नगरी को महावीर की तपोस्थली कहा जाता है। जिस उज्जैनी भूमि से अभयघोष मुनिराज को निर्वाण प्राप्त हुआ था सुकुमाल मुनि की भी इस भूमि पर पौराणिक महत्वता है। मुनिश्री प्रज्ञासागरजी महाराज ने इन सब इतिहास के महत्व को ध्यान रखते हुए अल्पसमय में तपोभूमि का जो निर्माण कराया वह अविस्मरणीय है जहां पर आकर जिस आनंद की अनुभूति होती है उसे शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता। मेरा आप लोगों से अनुरोध है कि महावीर की इस तपोभूमि में आप अपनी आत्मा को कल्याणकारी बनाएं एवं मोक्षमार्ग को प्राप्त करें। आचार्यश्री ने प्रथमानी योग शास्त्र का भी उल्लेख किया और कहा कि सभी श्रावकों को उसको पढ़ना चाहिये और उसका अनुशरण करना चाहिये। तत्पश्चात आचार्यश्री की 27 परिवारों द्वारा शास्त्र भेंट किया गया। साथ ही 27 परिवारों द्वारा दीपकों से आरती भी की गई। चूंकि यह वर्ष आचार्यश्री वर्धमानसागरजी महाराज का 27वां पदारोहण वर्ष है उसका शुभारंभ उज्जैन से हुआ जिसका समापन सिध्दक्षेत्र सिधवर कुट में होगा। इस अवसर पर श्री महावीर तपोभूमि ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक जैन चायवाला, महेश जैन, पवन बोहरा, सुनील ट्रांसपोर्ट, धर्मेन्द्र सेठी, राजेन्द्र लुहाड़िया, विनीता कासलीवाल, रूबी जैन, सुगनचंद सेठी, फूलचंद छाबड़ा, डाॅ. नेमीचंद जैन, इंदरमल जैन, महेन्द्र रांवका, अमृतलाल जैन, ओमप्रकाश जैन, सुशील गोधा, संजय बड़जात्या, राजकुमार सालगिया, धर्मेन्द्र सेठी, देवेन्द्र जैन, हेमंत गंगवाल, भूषण जैन, मिलचंद जैन, तेजकुमार विनायका, महेन्द्र लुहाड़िया, संजय बोहरा, सुधीर चांदवाड़ा, सुनील जैन, निर्मल सेठी, राजेन्द्र बड़जात्या, सोहनलाल जेन, जयेश जैन, धर्मचंद पाटनी, संतोष लुहाड़िया, दीपक जैन, विनोद बड़जात्या, अतुल सौगानी, विकास सेठी, गिरीश बड़जात्या, प्रदीप जैन, रमेश जैन, कमल मोदी, आरसी गंगवाल, बसंत जैन, दिनेश जैन, धीरेन्द्र सेठी, संजय बालमुकुंद जैन, पुष्पराज जैन, सौरभ कासलीवाल, चंदा बिलाला, ज्योति जैन सहित समाजजन उपस्थित थे।
वर्धमानसागरजी ने किया विहार, प्रज्ञासागरजी आज विहार करेंगे
आचार्यश्री वर्धमानसागरजी महाराज का ससंघ शाम 5 बजे महावीर तपोभूमि से इंदौर की ओर विहार हुआ एवं मुनिश्री प्रज्ञासागरजी महाराज का 23 जून को प्रातः 5.30 बजे बापूगांव राजस्थान की ओर विहार प्रारंभ होगा।

 

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