होली-धुलेंडी -मदन वैष्णव
होली-धुलेंडी
* मदन वैष्णव
मन में मस्ती हो तो हस्ती(हाथी)
खूब नहाता है
आनन्द भरा बैशाखीनंदन(गदहा)
लोट लगाता है
सुर से कोसों दूर गधे को
गाते देखा है
चिड़िया को भी धूल उड़ाकर
न्हाते देखा है
आदम की औलाद
कभी तो रंग उड़ाती है
कभी बिना ही बात
रंग से चिढ़-भिड़ जाती है !
रंग-अबीर गुलाल उड़ाना
हर्षित मन की बानी
रंग-बिरंगे फूल के जरिये
कुदरत लिखे कहानी
आओ भारत की संतानें
झूमें नाचें गाएं
शुद्ध हृदय से आपस में हम
स्नेह का रंग लगाएं !