top header advertisement
Home - उज्जैन << बीते सालों के मुकाबले श्रद्धालु कम और अफसर ज्यादा, फिर भी गड़बड़ाई व्यवस्थाएं महाकाल मंदिर में भीड़ प्रबंधन को लेकर खड़े हुए सवाल

बीते सालों के मुकाबले श्रद्धालु कम और अफसर ज्यादा, फिर भी गड़बड़ाई व्यवस्थाएं महाकाल मंदिर में भीड़ प्रबंधन को लेकर खड़े हुए सवाल


उज्जैन - कहते हैं भगवान के घर अमीर-गरीब, बड़ा-छोटा सब एक बराबर होते हैं। मगर लगता है ये बातें सतयुग की हैं, क्योंकि वर्तमान में तो भक्ति के लगभग सभी केन्द्रों में राजा और रंक के बीच कहीं कम, तो ज्यादा भेदभाव देखने को मिलता है। महाशिवरात्रि पर उज्जैन में इसकी झलक बार बार दिखाई दी। हालांकि महाशिवरात्रि से पहले मंदिर में अधिकारियों की एक बड़ी फौज इसलिए लगाई गई थी, ताकि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को किसी तरह की असुविधा न हो, लेकिन मंदिर में सब उल्टा पुल्टा ही हुआ। जो दृश्य महाकाल मंदिर और उससे बाहर देखने को मिले, उससे तो ऐसा लग रहा था कि टीम को ये समझाइश देकर ड्युटी पर लगाया गया हो कि किसी भी श्रद्धालु को सुविधा न हो। जितना वे बाहर से परेशान होकर आएं, उतना ही मंदिर के भीतर भी उन्हें परेशान किया जाए। जो भी लोग दर्शन पूजन के लिए आएं चाहे वो महिला हो, पुरूष हों, बच्चे हों, बुजुर्ग हों, दिव्यांग हों सबके साथ समान व्यवहार करें। चाहे उसे भगवान के दर्शन हो पाएं या न हो पाएं सबको बारी बारी से धकियाना है।
एक ही प्लान पर किया काम
महाशिवरात्रि पर्व पर आमजन को शीघ्र और सुगम दर्शन कराने का दावा करने वाले अफसरों ने प्लान बी नहीं बनाया, जिसके चलते प्लान ए को ही अमल में लाया गया। दरअसर प्लान ए यानी प्रशासन ने बीते सालों की तरह ही आठ लाख से ज्यादा (करीब 10 लाख) श्रद्धालुओं के आने का अनुमान लगाया था। जिसके लिए कर्कराज पार्किंग के आगे भील धर्मशाला से बैरिकेड्स लगाए गए थे। लेकिन हुआ इसके ठीक उलट। प्रशासन के अनुमान से आधे ही (करीब साढे चार लाख) श्रद्धालु ही महाशिवरात्रि पर दर्शनों के लिए आए। उन्हें भी ढाई किलोमीटर पैदल चलकर मंदिर में प्रवेश मिला। जबकि प्लान बी के तहत भीड़ कम होने पर श्रद्धालुओं को इतना चक्कर न कटवार समीप के लिए भी व्यवस्था की जानी थी। लेकिन अफसर तो महाकुंभ से सीखकर आए थे, वो भला इन बातों पर क्यों गौर करते। उन्होंने वही किया जो तय था, श्रद्धालुओं को होने वाली परेशानी से उनका कोई वास्ता नहीं था।
सामान्य दर्शन की ये थी वयवस्था
सामान्य दर्शनार्थियों के लिए प्रवेश भील समाज की धर्मशाला से नृसिंह घाट तिराहा के गंगोत्री गार्डन, चारधाम के सामने, शक्तिपथ, त्रिवेणी संग्रहालय के गेट से नंदी द्वार, महालोक होकर मानसरोवर भवन में प्रवेश कर फेसिलिटी सेंटर 1, कार्तिक व गणेश मंडपम् से महाकाल के दर्शन की व्यवस्था की गई थी। दर्शन के बाद आपातकालीन निर्गम द्वार से बड़ा गणेश मंदिर के सामने से हरसिद्धि चौराहा, झालरिया मठ के रास्ते उन्हें बाहर की ओर प्रस्थान कराया गया।
पुलिस ने भी ड्यूटी का लिया पूरा लाभ
वैसे तो सामान्य दिनों में महाकाल मंदिर की दर्शन व्यवस्था आउटसोर्स कंपनी क्रिस्टल के गार्ड्स संभालते हैं। लेकिन पर्व और त्यौहार पर इसे पुलिस अपने हाथ में ले लेती है। इस दौरान पुलिस अफसर हों या जवान अपने परिवार को वीआईपी रास्ते से दर्शन कराने में नहीं चूकते। महाशिवरात्रि पर भी इस तरह के कई दृश्य देख गए। मंदिर के ही सूत्र बता रहे थे कि इस बार तो पुलिस परिवार के सदस्यों को पुलिस वाहन में बैठाकर नीलकंठ द्वार तक लाया गया और वीआईपी दर्शन करवाए गए। पुलिस परिवार ही नहीं ड्यूटी दे रहे पुलिसकर्मियों ने तो अपने परिचितों, दोस्तों और रिश्तेदारों को ऐसे दर्शन कराए, मानो ये पूरी व्यवस्था उन्हें के लिए की गई हो।
अधिकारी खुद ही भूल गए व्यवस्था
वीआईपी पास और सशुल्क दर्शन करने वाले लोग दोपहर में नीलकंठ द्वार पर पहुंचे। यहां मंदिर प्रशासक प्रथम कौशिक और एएसपी नीतेश भार्गव व्यवस्था में लगे थे। अचानक अफसरों ने व्यवस्था में बदलाव कर दिया। भीड़ अधिक होने की बात कहकर ये अधिकारी वहां आने वाले लोगों को सीधे सामान्य दर्शनार्थियों की कतार में पहुंचाने लगे। लोगों ने इसका विरोध किया, तो बैरिकेड्स के पास खड़े पुलिस और सुरक्षाकर्मी बोले एसपी ने व्यवस्था बनाई है, उन्हीं से बात करो। हम बैरिकेड नहीं हटाएंगे।
ऐसी भी आ गई थी नौबत
प्रयागराज महाकुंभ से अनुभव लेकर उज्जैन लौटे पुलिस एवं प्रशासनिक अफसरों के दिमाग में सिर्फ भीड़ प्रबंधन ही छाया रहा। जिसका परिणाम ये हुआ कि वीआईपी, प्रोटोकॉल, पासधारियों की व्यवस्था में भी चूक हुई। एक समय ऐसा भी आया कि भीड़ का दबाव बढ़ने के कारण बैरिकेड्स गिरने की नौबत आ गई और पास में खड़े मंदिर प्रशासक, एएसपी अपनी जिद पर अड़े दिखे। मौकाए हालात ये थे कि प्रदेश सरकार की कैबिनेट मंत्री तक को परेशानी उठाना पड़ी। जब विधायक इस मामले में बीच में कूदे, तो मंदिर प्रशासनिक अधिकारियों के मिजाज़ में थोड़ी नरमी आई।
ई-कार्ट पर भी रहा विशिष्टजनों का कब्जा
श्री महाकालेश्वर मंदिर में ई-कार्ट की सेवा दिव्यांग, बुजुर्ग और असहाय व्यक्तियों के लिए की थी, लेकिन महाशिवरात्रि पर यह वीआईपी और उनके परिवार के सदस्यों को लाने ने जाने का काम करती रही। मंदिर में एक तरफ तो सीनियर सिटीजंस और दिव्यांगजनों के लिए ई-कार्ट के उपयोग का अनाउंसमेंट होता रहा, वहीं दूसरी तरफ वीआईपी उसका उपयोग करते रहे। इस बात से कुछ सीनियर सिटीजंस नाराज भी हुए।
दूसरे दिन और भी ज्यादा बिगड़े हालात
महाशिवरात्रि के दूसरे दिन वर्ष में एक बार दोपहर में 12 बजे भस्मारती होती है। लेकिन ये बात देशभर से मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को पता नहीं है, इसलिए रोज की तरह श्रद्धालु महाकाल भगवान के दर्शनों के लिए मंदिर पहुंचे, जिन्हें घंटों लाइन में खड़े रखा गया। इतना ही नहीं जिन श्रद्धालुओं ने भस्मारती के लिए स्वीकृति प्राप्त कर रखी थी, उन्हें भी मंदिर के किसी भी संभामंडपम् में प्रवेश नहीं करने दिया गया। भस्म आरती में जो लोग सम्मिलित हुए वे या तो नगर के नेता थे या फिर अधिकारी कर्मचारियों के परिजन।
भस्मारती में दिखा वीआईपी कल्चर
महाशिवरात्रि और उसके अगले दिन दोपहर की भस्मारती तक महाकाल मंदिर में वीआईपी संस्कृति के इतने उदाहरण दिखाई दिए, जिसे देखकर ऐसा लगा कि सच में भगवान अमीर और रसूखदारों पर ज्यादा मेहरबानी करते हैं। मंदिर से जुड़े ऐसे कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए जिसे देख यूजर्स ने जमकर भड़ास निकाली। इससे मंदिर की प्रतिष्ठा तो धूमिल हुई ही, साथ ही साथ आस्था के प्रति लोगों का विश्वास भी कम हुआ। कई श्रद्धालु तो महाकाल मंदिर से बुरी यादें लेकर लौट गए।
फिर भी अधिकारियों को नहीं पड़ रहा फर्क
ऐसा नहीं है कि इन सब बातों की जानकारी मंदिर प्रशासन या मंदिर में ड्यूटी कर रहे लोगों के पास नहीं पहुंची। हद तो इस बात की है ये सारी जानकारी इन लोगों के साथ साथ उच्च अधिकारियों के पास भी जाती रही, लेकिन एक दूसरे के भरोसे बैठे किसी भी उच्च अधिकारी ने मामले में हस्ताक्षेप करना उचिन नहीं समझा। आश्चर्य तो इस बात का है कि इतना सब होने के बाद जिम्मेदार की गई व्यवस्थाओं को गलत नहीं मान पा रहे, बल्कि उन्हें तो अब मीडिया, सोशल मीडिया का डर नहीं बचा। बहरहाल यही हालात रहे तो विशेष पर्वों पर उज्जैन आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या और कम हो जाएगी।
कुल मिलाकर परेशान हुए श्रद्धालु
अफसरों ने पूर्व के महाशिवरात्रि पर्व पर श्रद्धालुओं के आंकड़ों और व्यवस्थाओं का आंकलन न करते हुए, प्रयागराज महाकुंभ में भीड़ प्रबंधन की सीख को अधिक प्रभावशाली माना, जिसकी वजह से श्रद्धालुओं को परेशानियों का सामना करना पड़ा। महाकालेश्वर मंदिर दर्शन व्यवस्था में नए प्रयोग के चलते दर्शनार्थियों को मजबूरन ढाई किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। चारधाम, मानसरोवर और उसके बाद टनल पार करते हुए तीसरे जिकजेक में वृद्धजन, महिलाएं और बच्चे धक्कामुक्की का शिकार हुए, तब कहीं जाकर उन्हें भगवान के दर्शन हो पाए। बैरिकेड्स में फंसे लोगों का कहना था कि भीड़ नहीं है, फिर भी उन्हें इतना पैदल चलाया गया।
तो क्या ऐसे ही मनमानी पूर्वक होगा सिंहस्थ 2028
पहले अंग्रेजी नए वर्ष की शुरूआत और अब महाशिवरात्रि पर्व, इन दोनों दिनों पर महाकाल मंदिर में की गई व्यवस्था, आगामी सिंहस्थ महापर्व की रिहर्सल से कम नहीं थी। अब यदि इसकी समीक्षा स्वयं प्रशासन निष्पक्षता के साथ करे, तो शायद इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि हमें कितनी और तैयारी करना है, मीडिया के दर्पण में जो जो खामियां दिखाई दे रही हैं, उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है। और यदि इसके उलट खुद ही अपनी पीठ थपथपाकर वाहवाही लूटना है, तो सच मानिए, महाशिवरात्रि पर्व से अच्छी व्यवस्था तो इससे पहले कभी देखी ही नहीं गई। भले ही इस बार श्रद्धालु कम आए, लेकिन सब लोग सेवा में लगे कर्मचारियों की वाहवाही करते हुए अपने अपने घर लौटे हैं।
      बहरहाल हर नाकामी कुछ अच्छा करने की एक सीख होती है। यदि उस पर गौर किया जाए, तो अगला प्रयास सफल होता है और यदि नहीं, तो हालात और भी बिगड़ जाते हैं। अब प्रशासन को ख्ुाद ही समीक्षा कर ये तय करना होगा कि महाशिरात्रि पर की गई व्यवस्थाएं कितनी उपयोगी थीं और उनमें क्या क्या बदलाव होना चाहिए थे ? वो कौन से निर्णय हो सकते थे, जिन्हे तात्कालिक लिया जाना था।

Leave a reply