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न्यायाधीश की प्रशंसा हो या निंदा, न्याय प्राथमिक होना चाहिए : कैलाश व्यास


उज्जैन- सम्राट विक्रमादित्य जो आज से लगभग 2200 वर्ष पहले हुए, उस समय की न्याय व्यवस्था का नोटिफिकेशन नहीं हुआ था, मलतब वह कहीं पर भी विधिवत रूप से लेखबद्ध नहीं थी। किंतु इतने लंबे अंतराल के बाद भी वे लोक जनमानस के बीच न्याय, पवित्रता, निष्ठा, ज्ञान और वीरता के ज्योतिपुंज की तरह समाज को मार्गदर्शन कर रहे हैं। विक्रमादित्य को राज्य सिंहासन उनके भाई भतृर्हरी द्वारा प्रदान किया गया था। विद्वान और न्यायाधीश की प्रशंसा हो या निंदा हो, उसे समृद्धि मिले या ना मिले, वह 100 वर्ष जिए या तत्काल मृत्यु हो जाए, किंतु किसी भी स्थिति में न्याय के मार्ग से उसे भटकना नहीं चाहिए। न्यायाधीश की पहली प्राथमिकता न्याय करना होता है। यह बात विक्रमादित्य का न्याय वैचारिक समागम में सेवानिवृत्त उपसंचालक जिला अभियोजन कैलाश व्यास ने कही। इस मौके पर मुख्य अतिथि पूर्व जिला न्यायाधीश, मंदसौर श्री रघुवीर सिंह चूण्‍ड़ावत ने कहा कि विक्रमादित्य अपने नाम की तरह पराक्रम और शौर्य के साथ न्याय व्यवस्था संभाली थी। विक्रमादित्य की न्याय व्यवस्था उत्कृष्ट थी। विक्रमादित्य ने अपनी गलती पर अपने आप को भी दंडित किया था। हमारे न्यायाधीशों को न्याय के क्षेत्र में गलती होने पर प्रायश्चित करना चाहिये। भारत में न्याय व्यवस्था मातृभाषा में होना चाहिए। विक्रमादित्य के समय न्याय गुरुकुल पद्धति से होता था। कार्यक्रम में महाराणा प्रताप विधि महाविद्यालय, चित्तौड़गढ़ के प्राचार्य प्रो. एस.डी. व्यास ने भी अपनी बात रखी। दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए शासकीय विधि महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. अरुणा सेठी ने कहा कि विक्रमादित्य का न्याय व्यवस्था आज भी प्रासंगिक है। वह हमारी न्याय व्यवस्था में सदा पथ प्रदर्शक बना रहेगा। मुख्य वक्ता अधिवक्ता शेखर श्रीवास्तव ने बताया कि विक्रमादित्य ने समाज में समरसता लाने के लिए न्याय व्यवस्था को अपनाया था। डॉ. अनुराधा तिवारी ने कहा कि हमारे न्याय की अवधारणा प्राचीन है। बिना न्याय के सभ्य समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति देवेन्द्र सिंह सोलंकी ने न्याय व्यवस्था के भविष्य में नवीन विषयों पर उद्बोधन दिया और कहा कामन सिविल कोड लागू किया जाना चाहिए। समापन सत्र की अध्यक्षता प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री राजेश कुमार गुप्ता ने की। विशेष अतिथि विधि विशेषज्ञ डॉ. एस.एन. शर्मा व उज्जैन बार काउंसिल के अध्यक्ष श्री अशोक यादव थे। इस अवसर पर संयोजक सर्व श्री रविन्द्र सिंह कुशवाह, उज्जैन बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष योगेश व्यास, हेमचंद नाईक, राजेश जोशी, संतोष सिसौदिया, चन्द्रपाल कुशवाह, त्रिभुवन कुलमी, अर्चना गहलोत, मिथिलेश वैष्णव, मंजू पथरोड, सौमित्र सिंहा सहित विधि प्राध्यापक, शोधार्थी और अधिवक्तागण बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन जिला विधिक सहायता अधिकारी चन्द्रेश मंडलोई ने किया। इसी के साथ समागम में विधि कॉलेज के छात्र-छात्राओं संचित वर्मा, रितिका निर्वाण, सुश्री परिधि गिरी, दुर्गेश पंवार, राहुल बंसल, प्रतीक मिश्रा, सुश्री आशु नरेश, एंजेल खंडारिया, अधिवक्ता रवि शर्मा, राजदीप सिंह अरोरा, सुश्री नंदिनी शर्मा, श्रीमती प्रियंका झा, मोहनीश वर्मा, अनंत चौरे, प्रो. हर्षवर्धन यादव, ऋतु डेहरिया, शीतल लखन वर्मा, डॉ. राजेश कुशवाह, सुश्री निधि त्यागी ने अपने पत्र पढ़े।

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