गुरुशरण की इच्छाशक्ति से जीवन फिर जीने की मिसाल
झारखंड के धनबाद जिले के युवा गुरुशरण अहलूवालिया 40 साल पहले बिजनेस शुरू करने की इच्छा लिए इंदौर पहुंचे। नए शहर में शुरुआत मुश्किल थी लेकिन कई छोटे-बड़े काम किए। इलेक्ट्रीशियन की नौकरी के साथ ड्राइवर और जनरेटर ऑपरेटर का काम किया व धीरे-धीरे खुद के बिजनेस के लिए रुपए इकट्ठा करने लगे।
कुछ साल में मेहनत रंग लाई और लाइसेंस मिल गया, जिसके बाद खुद का इलेक्ट्रिक का बिजनेस शुरू करते हुए बी क्लास इलेक्ट्रीशियन बन गए। काम अच्छा चलने लगा लेकिन इस बीच हुए एक घटना ने गुरुशरण के जीवन में दु:खों का पहाड़ ला दिया।
गुरुशरण एक दिन किसी बिल्डिंग में इलेक्ट्रिक कनेक्शन का काम करने के दौरान 20 फीट ऊंचे पोल पर चढ़कर काम कर रहे थे तभी वे वहां से नीचे आ गिरे। नीचे ईंट के ढेर पर गिरने से गुरुशरण को कई अंगों के साथ रीढ़ की हड्डी भी डेमेज हो गई। गुरुशरण लगभग 18 महीने तक अस्पताल में भर्ती रहे, इन सब में उनकी पूरी जमा पूंजी, संपत्ति, जमीन सब बिक गई।
इसके बाद परिवार वालों ने भी संभालने से मना कर दिया। जैसे-तैसे कुछ लोगों ने इलाज के लिए चंदा इकट्ठा किया। डॉक्टर ने भी बोल दिया कि गुरुशरण अब जिंदगीभर बेड पर ही रहेंगे व कभी चल-फिर नहीं पाएंगे। इस बीच परेशानी तब बढ़ी, जब चंदे में मिली राशि भी खत्म हो गई। इसके बाद रात 10.30 बजे चादर में गुरुशरण को लपेटकर उज्जैन के सेवाधाम आश्रम छोड़ गए।
पहले टूटे फिर दो साल की मेहनत के बाद काम शुरू कर दिया गुरुशरण जब उज्जैन पहुंचे, तब वे बुरी हालत में थे, केवल बेड पर पड़े रहते थे। साथ ही अपनों के छोड़ देने पर भावनात्मक रूप से टूट गए। उस समय जब उन्होंने आश्रम में आने वाले लोगों को देखा और उनकी स्थिति जानी तो उनमें कुछ हिम्मत बनी। आसपास के लोगों के साथ अपना समय बिताना शुरू किया, थैरेपी ली। लोगों की सेवा करने के इरादे से बिस्तर से उठकर काम करना ही उनका लक्ष्य बन गया।
करीब दो साल की लगातार मेहनत के बाद आखिरकार वह फिर उठे और चलना शुरू किया। अब धीरे-धीरे शुरुआत कर फिर से छोटे-छोट कामों से शुरुआत की। इस बार खुद के लिए ही नहीं, बल्कि दूसरों के लिए काम करने की इच्छा से काम शुरू किया।
आटा चक्की के साथ द्वारपाल की जिम्मेदारी भी संभाल रहे गुरुशरण 68 साल के हो गए हैं। भले ही छड़ी हाथ में लेकर चलते हैं लेकिन उनकी ऊर्जा आज भी किसी युवा से कम नहीं। आश्रम की आटा चक्की संभाल रहे हैं और रात में द्वारपाल के रूप में रातभर सबकी सेवा करते हैं। यही नहीं इसके साथ ही पूरे दिन आश्रम के कई कार्यों की निगरानी में लगे रहते हैं।
गुरुशरण रोजाना साढ़े तीन क्विंटल गेहूं पीसते हैं। आज वे अपनी उम्र से ज्यादा काम कर रहे हैं। यही सब उनकी इच्छाशक्ति की मिसाल है। गुरुशरण कहते हैं कि अब यही आश्रम मेरा घर है और मरते दम तक यहीं सबकी सेवा करता रहूंगा।