संतोष यह कि स्वर्गदूत उनका ख्याल रख रहे हैं -सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर
आलेख
संतोष यह कि स्वर्गदूत उनका ख्याल रख रहे हैं
-सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर
यह बहुत लोगों की कल्पना हो सकती है। महसूस करेंगे कि यह आपके किसी परिचित की भी हो सकती है। यह आपके किसी रिश्तेदार की हो सकती है या आपके दोस्त की भी सुखद कल्पना हो सकती है।
एक कवि जिसके की माता-पिता सभी भाई और और बहन उसे दुनिया में अकेले छोड़कर चले गए हैं। वे एक ऐसी दुनिया में चले गए हैं, जहां से कोई लौटकर नहीं आता। बस कल्पना ही है जीवित रहे व्यक्ति की कभी उनसे स्वर्ग में मिलेगा जरुर।
उनको वह सपनों में बुलाता रहता है। मिलने का जतन हो तो कैसे? उसे लगता है कि माता-पिता, भाई और बहन एक ऐसी दुनिया में गए हैं जिनको धरती के लोग स्वर्ग कहते हैं। सोचता है वे वहां क्या कर रहे होंगे...?
सोचता है एक दिन मुझे भी जाना है.. और वह इसी कल्पना में, स्वप्न में सोचता है कि स्वर्ग पहुंच गया हूं... और वहां देख रहा हूं... कि बड़े से प्रकाश पुंज की ओर धीरे-धीरे जा रहा हूं और उस प्रकाश में समा रहा हूं।
उस प्रकाश में... समा जाने के बाद वह ईश्वर से प्रार्थना करता है कि जो मेरे अपने हैं, मेरे पिता, मेरी मां, मेरे भाई, मेरी बहन वे मुझे धीरे-धीरे दिखना चाहिए। ...और वह इसी कल्पना में सोचते- सोचते अपने मन को ढांढस पहुंचाता है, राहत देता है। दिलासा देता है कि ईश्वर ने उन लोगों को तेरे स्वर्ग आने तक संभाल कर रखा होगा। अतः वह प्रकाश पुंज के उस ओर जाने लगता है... देखता है कि वहां उसके पिताजी उसका इंतजार कर रहे हैं। जैसे ही वह अपना हाथ आगे बढ़ाता है..... उनकी तरफ बढ़ता है... तो उसको लगता है कि वे वहां खड़े हैं और उसे छू रहे हैं।
फिर कल्पना में वह एक पिरामिड जैसा चमकता हुआ देखता है.... और वहां उसकी मां उसे खड़ी दिखाई देती है, जो उसके आने का इंतजार कर रही है। वह जैसे ही आगे बढ़ता है मां उसको गले लगा लेती है। और फफक-फफक कर दोनों बड़ी देर तक रोते रहते हैं...।
फिर उसे अचानक लगता है.. यहां तो पूरा परिवार है। उसे अपना एक, दूसरा और तीसरा भाई दिखाई देता है... जो उसे छोड़कर पहले ही दुनिया से यहां आ गए थे। माता-पिता पहले ही यहीं थे। भाई पहुंचे तो माता-पिता ने उन्हें भी संभाल कर रखा...।
प्रकाश पुंज के बाहर निकलकर जब वह चमकते हुए एक पिंड की तरफ जाता है, तो मां के पीछे भाई खड़े दिखाई देते हैं और थोड़ा आगे बढ़ता है तो चांदी के समुद्र की ओर क्रिस्टल तट पर बहन खड़ी दिखाई देती है... वह रोए जा रही है, मानो कह रही हो, बड़ी देर कर दी भाई आने में....।
जैसे ही उनके पास पहुंचता है।परिवार एक साथ आ रहा है। वह पहुंचते ही गले मिलता है। आगे बढ़ते हुए सुनहरे दरवाजे की ओर बढ़ता है। सुनहरे दरवाजे पर प्यारे भाई इंतजार कर रहे हैं। युवा और सुंदर जैसे वे युवावस्था में थे वैसे ही। यह देख, आंखें आंसुओं से भर जाती हैं। उन्हें देखकर.. रोता भी है....बहुत खुश भी होता है। उसने हमेशा बहन का ख्याल रखा, यहां उसे देखा कि वैसी है। देखकर खुश हुआ...।
तभी स्वर्गदूत प्रकट होते हैं.... जिनको वह अपनी आँखों से प्रकाश पुंज के पीछे देख रहा था, एक-एक को ले जा रहे हैं...वह चिन्तित हो जाता है कि फिर अकेला रह जाएगा..., तभी यह क्या प्रकाश पुंज अंधेरी गुफा में बदल गया और चमकता पिरामिड जैसा पिंड कहीं खो गया... बस संतोष यह है कि स्वर्गदूत उनका ख्याल रख रहे हैं...।
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