महिलाओं के आंसुओं ने एक दिन में बदल दी तस्वीर -सुरेन्द्र अग्रवाल (वरिष्ठ पत्रकार )
महिलाओं के आंसुओं ने एक दिन में बदल दी तस्वीर
-सुरेन्द्र अग्रवाल (वरिष्ठ पत्रकार )
जिला मुख्यालय से 100 किमी दूर बकस्वाहा ब्लाक के ग्राम निवार में
घर घर में पहुंचाई जा रही अवैध शराब ने गांव की महिलाओं का जीवन दुश्वार कर दिया था। बच्चों की किताबों से लेकर घर के खाने पीने के बर्तन भी उनके पतियों ने बेच डाले थे। गांव में उनकी मदद करने वाला और सुनने वाला कोई नहीं था। वह पुलिस के पास जाकर दुखड़ा सुनाती थीं तो वहां से भी भगा दिया जाता था। थक हार कर पिछले गुरुवार को वह सामूहिक रूप से कलेक्ट्रेट पहुंचीं थीं लेकिन कलेक्टर साहब टूर पर थे।हम लोग जब कलेक्ट्रेट पहुंचे तो महिलाओं की पूरी बात सुनकर दंग रह गए। उन्होंने रोते बिलखते हुए अपनी करुण कहानी बताई जो मैं ऊपर उल्लेख कर चुका हूं। मैंने कुछ साथी पत्रकारों को भी सूचित किया। तभी कलेक्ट्रेट में पदस्थ सुरक्षाकर्मियों ने उन महिलाओं को एसपी आफिस भेज दिया। तब तक काफी पत्रकार साथी भी वहां पहुंच गए थे। फलस्वरूप पूरी कायनात में महिलाओं की दुखद दास्तान फ़ैल गई थी।
कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने भी महिलाओं की शिकायत पर तुरंत संज्ञान लेते हुए आबकारी अधिकारियों को गांव भेजा। ग्रामसभा में यह तय किया गया कि गांव में कोई भी शराब पीते पकड़ाया तो उस पर 5 हजार रुपए का जुर्माना ठोका जाएगा। यहां तक कि सूचना देने वाले को भी एक हजार रुपए का इनाम दिया जाएगा।
जिला प्रशासन और कुछ जागरूक ग्रामीणों की वजह से फिलहाल निवार गांव की सूरत बदल गई है लेकिन यह कहानी यहीं खत्म नहीं हो जाती है। सभी ग्रामीण क्षेत्रों की यही कहानी है। व्यापारी को केवल अपने मुनाफे से सरोकार है। फिर चाहे कोई शराब पीकर मरता है तो मर जाए, घर बर्बाद होता है तो हो जाए। हमारा खजाना भरता रहना चाहिए। छतरपुर जिले मे अनेक स्थानों से खाद की कालाबाजारी की खबर मिल रही है। परंतु इससे बड़ी बात यह है कि नक़ली खाद भी धड़ल्ले से बेची जा रही है। धन दोनों कमा रहे हैं, एक जहर की तस्करी कर और दूसरा खेतों में जहर घोल कर जान ले रहा है।
और कड़े एक्शन की जरूरत
दूसरी दुखद घटना भी बकस्वाहा ब्लाक की है। सुनवाहा गांव की एक आदिवासी लड़की की केवल इसलिए मृत्यु हो गई कि चार घंटे तक इंतजार करने के बाद भी एंबुलेंस नहीं पहुंची। चार घंटे का समय बहुत होता है। हार्ट पेशेंट के लिए तो एक पल की देरी भी घातक होती है। यदि एंबुलेंस समय पर पहुंच जाती तो संभव था कि लड़की के प्राण बचाए जा सकते थे। कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने इस मामले को गंभीरता पूर्वक लेकर 108 के मिशन संचालक को प्रतिवेदन भेजा जिस पर मिशन संचालक ने त्वरित कार्रवाई करते हुए दो लोगों को सस्पेंड कर दिया है। लेकिन एक बड़ा सवाल ये भी है क्या निलंबन से आदिवासी लड़की ज़िंदा हो जाएगी? ऐसे लापरवाह लोगों को तो नौकरी से बर्खास्त कर नजीर पेश करनी चाहिए। तभी शायद सिस्टम में कुछ सुधार हो।
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