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चित्त की दौड़ नहीं रुकी तो -सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर


चित्त की दौड़ नहीं रुकी तो

-सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर

मन में जो कुछ भी उत्पन्न हो रहा है। उस से दूर रहना है।एक दूरी बनानी है। एक शून्य बनाए रखना है।मन की गति को देखना सीखना है। इसी से स्वतः दूरी बनेगी। विचार है, यह मेरे हैं, नहीं, यह सार्वभौम हैं। मुझे यह देखना है कि मैं कौन हूँ और मेरा क्या है ?

दुनियादारी यही है। समाज या प्रकृति ऐसा करने देती है। यानी मन की गति से दूरी बनाने देती है। यह एक सुखद आश्चर्य है। नहीं तो ऐसा भी हो सकता था कि जो विचार मन में आ जाए, उसका पीछा करते हुए व्यक्ति कहीं से कहीं निकल सकता है। 

प्रकृति ने जो हमें सबसे खुबसूरत चीज दी है वह है अपने आप से स्वतंत्रता। अपने ही विचारों की गिरफ्त से बाहर आने की शक्ति। अपने मन के कैद से बाहर निकल जाने की आजादी। कितने ही प्रकार से कहूँ... पर यही एक मात्र वरदान है... जो जीवन में सौंदर्य को जन्म दे सकता है ।

यह बाहर जो बाजार दिखता है। इसमें कई चीजें पाने की भीतर इच्छा उठती होगी। काश कि महँगी कार मिल जाए। महंगे आलीशान घर मिल जाएं। कपड़े मिल जाएँ। लजीज भोजन मिल जाए।एक मायने में ये बीमार मन की प्रवृत्ति भी है ।

वही इंसान स्वस्थ है जिसकी माँग वर्तमान में जी रहे क्षण के अलावा और कुछ भी नहीं हो।भूतकाल में रहना बड़ी बीमारी की निशानी है। जैसे कुछ अधूरा छूट गया हो। भविष्य में रहना बीमारी को जन्म देना है। जैसे वर्तमान में कुछ रिक्तता रह गई हो।...और उसे भविष्य में पूरी करेंगे।

भूत नहीं है, भविष्य कहीं नहीं है, वर्तमान के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। इसलिए अभी और यहीं अपने संपूर्ण विवेक, सोच को वर्तमान तक ही रखो।यही स्वस्थ जीवन देता है। 

जब तक ऐसा नहीं करते तब तक मन भटकता रहेगा। ये भौतिकता में, कार और बंगलों की चाह में उलझा रहेगा। यह दौड़ रुकती नहीं है। चित्त भागता ही रहेगा। दरअसल न कहीं सौंदर्य है और न कहीं शांति है।

यदि आप वर्तमान में ही रुके। इस विराट अस्तित्व को देखें।अनंत तक फैलते चले गए इस आत्मीय सुख को देखें।अपने चित्त को वर्तमान में खुश रखने की कला सीखें। इसमें अपूर्व शांति है।हमारा जन्मजात स्वभाव है सौंदर्य और शांति। हमें बिना किसी प्रयास के ही मिल जाएगी।

जब तक ऐसा नहीं सीखते तब तक तो कष्ट ही कष्ट है। चाहे जितना भी कमा लें।धन भी दुःख पैदा करने का उपाय बन जाएगा। यदि चित्त की दौड़ नहीं रुकी तो अमृत पीने से भी मृत्यु ही आएगी।

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