सूची पर घमासान के बाद सियासी संग्राम में जोर आज़माइश -रंजन श्रीवास्तव (वरिष्ठ पत्रकार)
सूची पर घमासान के बाद सियासी संग्राम में जोर आज़माइश
रंजन श्रीवास्तव / भोपाल
नए पदाधिकारियों के सूची पर मचे घमासान के बाद कांग्रेस की निगाहें अब बुधनी और विजयपुर विधान सभा सीटों पर है जहाँ उपचुनाव होने हैं। बुधनी सीट पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोक सभा चुनाव में विजय के पश्चात खाली हुई है जबकि विजयपुर सीट यहाँ से कांग्रेस टिकट पर चुने गए रामनिवास रावत के भाजपा में शामिल होने के बाद खाली हुई है। रावत इस समय मोहन यादव मंत्रिमंडल में मंत्री हैं। भाजपा ने रावत को मंत्री बनाकर लोक सभा चुनाव में उनके द्वारा किये गए मदद का इनाम दिया है। दोनों विधान सभा क्षेत्रों में मतदान 13 नवंबर को होंगे तथा परिणाम 9 दिन बाद 23 तारीख को आ जायेंगे। दोनों सीटों पर भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर है। कारण यह है कि बुधनी सीट 2023 में भाजपा के द्वारा जीती गयी सीट है जबकि विजयपुर में सरकार के मंत्री रामनिवास रावत चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस जो कमल नाथ सरकार के 15 महीने के कार्यकाल को छोड़कर दिसंबर 2003 से लगातार विपक्ष में है, को एक और हार से उतना सदमा नहीं लगेगा जितना भाजपा को इन दोनों सीटों पर हार से। राजनैतिककारणों से जनता पर इन थोपे गए चुनावों को लेकर मतदाताओं में कितना उत्साह है यानहीं है वह 13 तारीख को मतदान के प्रतिशत में दिख जायेगा पर देखना यह भी रोचक है कि लगभगदो दशकों के बाद बुधनी में एक ऐसा चुनाव हो रहा है जिसमें शिवराज सिंह चौहानप्रत्याशी नहीं हैं। भले ही वह केंद्रीय कृषि मंत्री हैं और चुनाव में ना वह और नाही उनके परिवार का कोई सदस्य प्रत्याशी है पर बुधनी में मुख्यमंत्री मोहन यादव औरप्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा से ज्यादा उनकी प्रतिष्ठा दांव पर हैक्योंकि बुधनी और चौहान 1991 से एक दूसरे के पर्याय रहे हैं। बुधनी कीजनता उनके साथ हर परिस्थिति में खड़ी रही है चाहे लोक सभा चुनाव हो या विधान सभा के चुनाव। इसीलिए शिवराज सिंह चौहान कीधर्मपत्नी साधना सिंह और पुत्र कार्तिकेय चौहान जो इस उपचुनाव में प्रत्याशीबनने हेतु दावेदार थे, चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। कार्तिकेय चौहान तोचुनावी सभाओं में बार बार कहते हैं कि अगर बुधनी में गलती से भी कांग्रेस जीत जातीहै तो वहां की जनता अगर विकास कार्यों को लेकर भोपाल जाती है तो उनको निराशा हाथलग सकती है। मतलब चौहान कैंप में चुनाव को लेकर चिंता साफ़ दिख रही है। कांग्रेस कोइस बात की आशा है कि बहुतायत किरार मतदाताओं में चौहान को इस बार मुख्यमंत्री नहींबनाने को लेकर नाराज़गी तथा भाजपा में टिकट को लेकर जो घमासान हुआ उसका फायदा उसेमिल सकता है। तत्कालीन विधायक राजेंद्र सिंह जिन्होंने 2006में शिवराज सिंह चौहान के लिए बुधनी सीट छोड़ीथी आशान्वित थे के दो दशकों के बाद उनके धैर्य का फल उनको मिलेगा पर टिकट मिलाचौहान के दूसरे करीबी रमाकांत भार्गव को। राजेंद्र सिंह के समर्थक बगावत कर चुकेहैं। उनको मनाने का दौर जारी है। अगर यहाँकांग्रेस प्रत्याशी राजकुमार पटेल जो स्वयं किरार समुदाय से आते हैं भाजपा कीजीत का अंतर भी कम कर पाते हैं तो यह कांग्रेस के लिए ताजा ऑक्सीजन का काम करेगी।अगर कांग्रेस यहाँ जीतती है तो यह पूरे पार्टी तथा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्षजीतू पटवारी जो एक अदद जीत की तलाश में हैं, के लिए संजीवनीबूटी का काम करेगी। कांग्रेस गठबंधन बनाने में उप चुनावों में असफल रही तथातत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ के 'अखिलेश वखिलेश' जैसे बयानों के बाद समाजवादी पार्टी की कांग्रेस से दूरी अभी भी बनी हुईहै। सपा ने अर्जुन आर्य को अपना प्रत्याशी बनाया है जो कांग्रेस में बुधनी के लिएप्रत्याशी बनने के लिए 2023 चुनावों में दावेदार थे। कांग्रेस के नेता जानते हैं कि बुधनी का चुनाव उनके लिए माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ने जैसा कठिन कार्य है इसलिए पार्टी का विशेष ध्यान विजयपुर सीट पर है जहाँ कांग्रेस ने आदिवासी नेता मुकेश मल्होत्रा परअपना दांव आजमाया है। भाजपा से कांग्रेस में आये मल्होत्रा की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले विधान सभा चुनाव में वे निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे और उन्हें लगभग 45000 वोट मिले थे। सीताराम आदिवासी ने टिकट नहीं मिलने पर बगावती तेवर अपना लिया था पर उन्हें सहरिया विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने उनके तकलीफ पर मरहम लगाने की कोशिश की। क्या इससे आदिवासी मतदाता भाजपा को अपना लेंगे यह उपचुनाव के परिणाम ही बताएँगे। पर जहाँ तक रामनिवास रावत की चुनाव में लड़ने की बात है तो उन्हें इस क्षेत्र से सफलता और असफलता दोनों मिली है। पिछले 2023 के चुनाव में जनता ने उन्हें 2018 की असफलता के बाद जिताया। अगर भाजपा को यहां डबल इंजन की सरकार का भरोसा है तो कांग्रेस को डबल एंटी इंकम्बेंसी की -एक सरकार के खिलाफ और दूसरा रावत के खिलाफ।
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