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मैं उसकी आत्मकथा सुनता हूँ -सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर


मैं उसकी आत्मकथा सुनता हूँ

-सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर

अभी कुछ दिनों से मैंने भारी भरकम व्याख्याओं, संवादों, जिरह से भरी पुस्तकें पढ़ना छोड़ दी है। इन दिनों मैं किताब नहीं पढ़ रहा हूँ। इन दिनों मैं पढ़ रहा हूँ जंगल। उसकी खोई सुन्दरता को खोज रहा हूँ। उसकी कराह सुनने का यत्न कर रहा हूँ। उसके आँसू, उसके दर्द को महसूस कर रहा हूँ।

उसकी पीड़ा सुन रहा हूँ। उसकी कहानियों में पता लगा रहा हूँ पलाश के मुरझा जाने का कारण। जंगल का दर्द, पेड़ की पीड़ा। जीव जंतु तथा परिंदों की व्यथा-कथा का हिस्सा है, जिसे जंगल अपने आत्मकथ्य में लिखता है।

जंगल की अपनी एक प्रेयसी थी। उसके साथ वह अपनी रास लीला में मस्त थी। उसके बाहुपाश में, उसके आलिंगन में वह डूबी रहती थी। पर कम्बख्त खलनायक पतझर उसकी प्रेमिका का हाथ पकड़कर ले गया उस ओर। वह उसे उस ओर ले गया जिधर भयंकर ज्वाला धधक रही थी। उसे उसी ओर ले गया जिस ओर लगी थी बड़ी भयानक आग।

जंगल पर क्या-क्या गुजर रही है। अपने आत्मकथ्य में और भी कुछ लिखा है। वह लिख रहा है पानी की तलाश में भटकते हए प्यासे हिरन की कहानी। चारों ओर पतझर की आग है। ताल-तालाब सूख गए हैं। सभी तरफ प्यास ही प्यास है।

इसमें भी है एक ओर कहानी है। वह भूना गया है। आग में भूना गया है। इसलिए कि वह उन्हें और स्वादिष्ट लगता है। कैसा दर्द है, पीड़ा है पर है जब जंगल की आग में भूनकर वह तैयार किया गया है। उसी आग में भूनी हुई रह जाती है उसकी देह। जंगल में स्वाद और स्वादिष्ट देह स्वाद के बीच हिरन क्या जाने जरूरी विमर्श क्या है? 

असली बात क्या है ? कहानी क्या है? जलते जंगल में हिरन की प्यास। उस आग में हिरन की मौत को समझिए। फिर भूने गए हिरन के गोश्त की व्यथा की कथा भी जंगल की आत्मकथा में भी है। 

जंगल अपनी आग को आत्मकथा में और भी बहुत कुछ लिखता है। वहां, यदा-कदा
बीच में कहीं जान-माल की हानि का उल्लेख करते हुए लिखता है। नुकसान का आंकलन भी किया गया है। और भी देखा समझा गया... क्या है..?  

उसने लिखा है, अपने यहां की वही पुरानी जड़ी-बूटियों का जल कर राख हो जाना भी। इसका भी आंकलन किया गया। फिर भी जंगल ने अपनी नई पौध के लिए, भविष्य के अंकुर के लिए भी क्या-क्या सुरक्षित है, यह भी लिखा।

नई पौध के लिए पेड़ बचे हैं, उनके फलों को बचा लिया गया है। कौवों और कोयलों के लिए भी बहुत कुछ बचा रह गया है। इसलिए अब मैं कठिन शब्दावली से भरी पुस्तकें नहीं पढ़ता, मैं जंगल की खामोशी, उसकी कराह, उसकी आत्मकथा सुनता हूँ।

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