top header advertisement
Home - आपका ब्लॉग << इच्छा, इच्छाएँ और मन -सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर

इच्छा, इच्छाएँ और मन -सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर


इच्छा, इच्छाएँ और मन

-सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर

और आदमी भी क्या है, एक इच्छा के भीतर और भी इच्छाएं पनपती रहती हैं। उसका क्या उसकी भोली इच्छा थी कि अच्छा बनूँ। मगर यह भी अंतिम इच्छा की तरह नहीं था। उसकी और भी इच्छाएँ चलती रहीं साथ-साथ में।

चटोरा है मन। उसके मन में समोसा खाने  की इच्छा सतत बनी रहती है। मगर यह भी है चटनी या आलू के बिना उन्हें पूरा करना असंभव रहा। मन है उसको दारू पीने की इच्छा जितनी रही, उसका एक अंश भी नहीं पिया उसने अब तक, ऐसा उसका कहना है।

मन चंचल है। उसकी राजा बनने से अधिक इच्छा रहती है उसकी आँखों में आँखें डालकर प्यार करता रहे। उससे बात करने की इच्छा भी प्रबल बनी रहती है। प्यार है, वह कभी खत्म या चाहत कम नहीं होती। वह तो बढ़ती रहती है। 

मनुष्य घुमंतु है। उसका मन पर्यटक है। एक इच्छा प्रबल रहती है। अमेरिका या यूरोप न सही पर वह किसी ऐसे देश में जाने की इच्छा रखता है,अवश्य ही, जहाँ लोग हॉर्न की आवाज तक से चौंक जाते हैं लोग। मगर दुनिया में कुछ लोगों का बुरा नसीब भी है। उन्हें युद्ध के टैंक की आवाजों से रोज सामना करना पड़ता है।
 
उसके सीने में एक संवेदनशील दिल धड़कता है। उसकी बच्चों से मिलने की इच्छा होती है। ऐसे बच्चों से जिनका बचपन माँ-बाप की लड़ाइयों में नष्ट हो गया है। उनका बचपन या तो सिर्फ अस्पतालों में बीत गया है। उनका समय रोने से अधिक उन्हें चुप कराने में ही बीत गया। 

अनंत फिल्में देखी इच्छाओं से परे जाकर। तब भी मार-धाड़ करने की मन में इच्छा नहीं हुई। प्यार करने की इच्छा पर ही मन ठहरा हुआ है। अनंत बार प्यार किया उन लड़कियों से, पर उनसे यह चंचल मन कभी मिला ही नहीं।उनसे मिलने की संभावना भी कहीं नहीं दिखाई दी। जिनसे मेरा मन मिला ही नहीं इस जीवन में, कभी अभाव में या समाज के दबाव में। 

अब मन उनसे क्या अपेक्षा रखता है। किसी बैंक खाते की तरह बस रिश्ता बना रहे। वह मन का बना रहे। रिश्ता भविष्य में काम आने का भ्रम लिए ही सही।

मन का क्या है? उसकी हर रात इच्छाएँ प्रबल होती है। हर रात की इच्छाएँ एक गहरी सुरंग में उसको ले जाती हैं।जहाँ मन नींद को चकमा देते हुए प्रवेश करता है। उसकी उम्र और बेचैनी के हिसाब से इच्छा की प्रबलता पनपती है। और फिर मन की उसमें से न निकलने की इच्छा। 
ऐसा भी नहीं है, सुबह से पहले ही दम तोड़ देती है ये इच्छाएँ।

उसकी इच्छाओं में शहर आना कभी नहीं रहा। क्योंकि उसकी गाँव में जीवन गुजारना एक इच्छा थी।मगर अब गाँव-गाँव नहीं रहे। और वह जीवन भी जीवन कहाँ रहा!

.......000...

Leave a reply