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बिहार का बनगांव : साम्प्रदायिक सौहार्द का अनुपम उदाहरण


  संदीप कुलश्रेष्ठ
             बिहार के सहरसा जिले की नगर पंचायत बनगाँव में 133 साल से हर रविवार विभिन्न धर्मों की धर्म सभा आयोजित होती है। इस गाँव के करीब 20 हजार हिन्दू अपने नाम के साथ खां उपनाम लगाते है। बोलचाल में भी उसका उपयोग होता है। दिवाली, जन्माष्टमी और होली जैसे बड़े त्यौहारों के कर्ताधर्ता मुस्लिम ही होते हैं। इस प्रकार यह गाँव देश में साम्प्रदायिक सद्भाव का एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है।
लगाते है खां उपनाम -
                इस नगर पंचायत बनगाँव के कई गाँवों में 15 से 20 हजार हिन्दू अपने नाम में खां लगाते हैं। इस गांव में मिश्र, झा, चौधरी आदि उपनाम लगाने वाले भी हैं। पर सबसे ज्यादा उपनाम खां ही लगाते हैं। जैसे भोलानाथ खां, शंकर खां, हेमचन्द्र खां, अरविन्द खां आदि। यहाँ भोलानाथ खां रिटायर्ड शिक्षक है, शंकर खां किसान है, हेमचन्द्र खां स्वास्थ्य विभाग से रिटायर्ड है, अरविन्द खां बोकारो में व्यवसाय करते थे, अब गांव में ही रहते है आदि। उक्त नाम सुनकर हर कोई चौंक जाता है। जब ये लोग गाँव से बाहर शहरों में जाते है, तब भी लोग ऐसे ही चौंक जाते है। किन्तु ये सहज रहते हैं। उन्होंने इसे आत्मसात कर लिया है। 
मिलजुलकर मनाते है त्यौहार -
              यहाँ के लोग मानते है कि उनके पुरखों ने मुगलकाल में अपने नाम के साथ खां उपनाम लगाना शुरू किया था। इसके पीछे कई कहानियां प्रचलित है। लेकिन सही वजह कोई नहीं जानता। कई किताबों में भी हिन्दुओं के खां उपनाम होने का जिक्र है। यहाँ अनेक पीढ़ियों से होली, दीपावली, जन्माष्टमी जैसे हिन्दू त्यौहारों में मुख्य कर्ता-धर्ता मुस्लिम ही होते हैं। 
133 साल से हो रही धर्मसभा -
             इस गाँव में 133 साल से हर रविवार को धर्मसभा होती है। इसमें सभी धर्मों के लोग हिस्सा लेते है। बताया जाता है कि इसकी शुरूआत मिथिलांचल के संत कवि लक्ष्मीनाथ गोस्वामी ने की थी। यह अपने आप में देश में अकेला विलक्षण उदाहरण है। 
कृष्ण की मूर्ति के लिए मुस्लिम लाते है मिट्टी -
             हर साल कृष्ण जन्माष्टमी पर इस गाँव में भगवान कृष्ण की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी मुस्लिम परिवार के ही लोग लेकर आते हैं। इस बनगाँव में अलग-अलग गौत्र के लोग एक ही गाँव में रहते है। इसलिए बेटे-बेटियों की शादी गाँव में ही कर देते है। इस प्रकार साम्प्रदायिक सद्भाव की यह परंपरा लगातार चल रही है।
बनगांव से प्रेरणा लेने की है जरूरत -
             देश में साम्प्रदायिक सद्भाव की अत्यन्त आवश्यकता है। इसके लिए देशभर के गाँवों और शहरों को इस बनगांव से प्रेरणा लेने की जरूरत है। विभिन्न धर्मों के लोग मिलजुल कर विभिन्न त्यौहार मनाते हैं। ये अपने आप में अनुपम उदाहरण है ही। हिन्दूओं के प्रमुख त्यौहारों के कर्ता-धर्ता भी मुस्लिम होते हैं, यह भी प्रेरणास्पद है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले 133 साल से बनगांव में धर्म सभा नियमित रूप से आयोजित हो रही है। इससे दूसरे लोगों को प्रेरणा लेने की जरूरत है।
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