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दीवाली का ईनाम….गालियों की बौछार !-कीर्ति राणा (वरिष्ठ पत्रकार)


दीवाली का ईनाम….गालियों की बौछार !
♦️कीर्ति राणा  (वरिष्ठ पत्रकार)   
अभी जब निजी संस्थानों में दीपावली पर अपने स्टॉफ को गिफ्ट बांटे जा रहे थे तो मुझे करीब दो  दशक पुराना एक प्रसंग याद आ गया। 
इस महापर्व पर निजी संस्थानों से जुड़े नॉन स्टाफर सहयोगी को भी उम्मीद रहती है कि उसे ईनाम मिलेगा ही।लेकिन जब उसके काम को अनदेखा कर दिया जाता है तो उसका गुस्सा लावा बन कर फूट पड़ता है। 
बात तब की है जब मैं उज्जैन में पदस्थ था।इंदौर कार्यालय ने दीवाली गिफ्ट भेजने के लिये उज्जैन कार्यालय में एचआर हेड से भी कर्मचारियों की लिस्ट मंगवाई।जितने नाम दिये थे उतने गिफ्ट और मिठाई पैकेट प्राप्त हो गए। दीपावली पूजन हुआ, लिस्ट मुताबिक स्टॉफ के साथियों को गिफ्ट मिल गये। अगले दिन कार्यालय का अवकाश था।
ऑफिस में जब फिर से वर्किंग शुरु हुई। उस सुबह हम लोग मॉर्निंग मीटिंग में व्यस्त थे कि मार्केटिंग विभाग से  झगड़े जैसी आवाजें और फिर गालियां सुनाई देने लगी। साथियों ने बताया सफाईकर्मी नाराज हो रहा है कि सारे लोगों को दीपावली की गिफ्ट मिली लेकिन उसे नहीं दी गई। एचआर वाले कह रहे थे तुम्हारी गिफ्ट नहीं आई तो कहां से दे।तुम स्टॉफ में नहीं हो। 
उसका कहना था टॉयलेट साफ करते समय तो मेरा नाम याद रहता है। सफाई के लिये तो रोज बुला लेते हो। टॉयलेट की सफाई, झाडू-पोछे के लिये तो मेरा नाम याद रहता है। जब बाकी के नाम लिखे तो लिस्ट में मेरा नाम क्यों नहीं लिखा। वह अपना गुस्सा निकाले जा रहा था। 
उसे मैंने अपने केबिन में बुलाया, साथियों ने भी उसे समझाया। गिफ्ट-मिठाई के पैसे उसकी जेब में जबरन रखे वो कहता रहा बाबूजी आप क्यों दे रहे हो। उन लोगों ने क्यों नहीं मेरे बारे में सोचा। जैसे-तैसे उसे समझाया-शांत किया। वह जाते-जाते भी मार्केटिंग-एचआर वालों को सुनाये जा रहा था तुम लोगों से तो बाबूजी अच्छे जो मेरा ध्यान रखा। तुम लोगों ने तो इतना भी नहीं किया मेरे लिए। 
इस घटना का जिक्र इसलिये नहीं कि मैंने कोई महान काम किया। दरअसल वार-त्यौहार पर हम अकसर उन लोगों को कई बार भूल जाते हैं जिनकी रोजमर्रा के काम में बराबर की भागीदारी रहती है लेकिन कॉरपोरेट के नियमों से बंधे होने के कारण हम मानवीयता भी भूल जाते है।पांच सौ रुपये इतनी बड़ी राशि भी नहीं थी, चाहते तो मिसलेनियस एक्सपेंडिचर राशि से भी मिठाई-गिप्ट का इंतजाम कर के उसे खुश कर सकते थे। या भेजी गई लिस्ट में उसका नाम भी जोड़ कर भेज देते और इंदौर मुख्यालय में उसके सहयोग की जानकारी दे देते तो बाकी स्टॉफर के साथ उसके लिये भी गिफ्ट पैकेट मिल जाता।

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