24 सालों से मध्यप्रदेश के पेंशनरों के साथ हो रहा है अन्याय !
डॉ. चन्दर सोनाने
केन्द्र सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों और पेंशनरों को जुलाई 2024 से 3 प्रतिशत डीए और डीआर देने के आदेश दे दिए गए हैं। इस प्रकार केन्द्र के कर्मचारियों और पेंशनरों को वर्तमान में महंगाई भत्ता और मंहगाई राहत बढ़कर 53 प्रतिशत हो गया है। किन्तु मध्यप्रदेश के कर्मचारियों और पेंशनरों को अभी केवल 46 प्रतिशत मंहगाई भत्ता और महंगाई राहत ही प्राप्त हो रही है। इस प्रकार केन्द्र के कर्मचारियों की तुलना में मध्यप्रदेश के कर्मचारियों और पेंशनरों को 7 प्रतिशत कम महंगाई भत्ता और महंगाई राहत प्राप्त हो रही है। यही नहीं मध्यप्रदेश की सरकार अपने पेंशनरों से भी भेदभावपूर्ण व्यवहार कर रही है। इसकी लंबी सूची है। मध्यप्रदेश के पेंशनरों के साथ पिछले 24 सालों से अन्याय हो रहा है।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 के तहत नए राज्यों के रूप में मध्यप्रदेश से 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश से 9 नवंबर 2000 को उत्तरांचल और बिहार से 5 नबंबर 2000 को झारखंड राज्य अस्तित्व में आया। इन किसी भी राज्य में एक दूसरे राज्य की सहमति के बिना महंगाई राहत का भुगतान हो रहा है। राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की छठवीं अनुसूची की धारा 49 में पेंशनर्स के संबंध में जिम्मेदारी के विभाजन की बात का उल्लेख है। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा इसकी गलत व्याख्या कर विगत 24 वर्षों से मध्यप्रदेश के पेंशनरों के साथ अन्याय किया जा रहा है। पेंशन देनदारियों के लिए नियत अनुपात मध्यप्रदेश के लिए 76 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ के लिए 24 प्रतिशत है। इसका-समायोजन वित्तीय वर्ष के अंतिम माह मार्च में होना निर्धारित किया गया है। पुनर्गठित राज्यों में उत्तर प्रदेश से उत्तरांचल एवं बिहार से झारखंड में महंगाई राहत के भुगतान में दोनों राज्य सरकारों की परस्पर सहमति लिए बिना लगातार भुगतान समय-समय पर हो रहा है। किन्तु एक मात्र मध्यप्रदेश राज्य ही है, जो छत्तीसगढ़ से पेशनरों की महंगाई राहत के लिए सहमति मांगता है और जबसे छत्तीसगढ़ राज्य सहमति देता है, तब से मध्यप्रदेश के पेंशनरों को महंगाई राहत मिलती आ रही है। इसमें भी अनेक बार भेदभाव हो चुका है। ऐसा उक्त किसी भी राज्यों में नहीं हो रहा है। यह अजूबा केवल मध्यप्रदेश में ही हो रहा है!
भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष जनवरी एवं दिसंबर में साल में दो बार अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की वृद्धि के आधार पर महंगाई भत्ता और महंगाई राहत की घोषणा की जाती है। भारत सरकार द्वारा केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों और पेंशनरों और केंद्रीय वेतनमान पाने वाले राज्यों के अधिकारियों और पेंशनरों की क्षतिपूर्ति स्वरूप वर्ष में दो बार महंगाई भत्ता/महंगाई राहत की घोषणा करता है। केंद्र सरकार की मंशा यह रही कि तत्काल प्रभाव से अधिकारियों और कर्मचारियों को इसका आर्थिक लाभ प्राप्त हो सके। किंतु मध्यप्रदेश के पेंशनर्स ने कभी भी महंगाई राहत समय पर प्राप्त नहीं की है। प्रदेश के शासन और प्रशासन की मेहरबानी पर पेंशनर निर्भर है। उनकी जब मर्जी होती है, तब से वे मंहगाई राहत की घोषणा करते हैं।
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने छठे वेतनमान का एरियर देते समय भी ऐसा ही किया था। प्रदेश के अधिकारियों और कर्मचारियों को छठे वेतनमान का एरियर दे दिया गया था, किन्तु पेंशनरों को एरियर की राहत राशि नहीं दी गई थी। मध्यप्रदेश के पेंशनर एसोसिशन द्वारा उच्च न्यायालय जबलपुर में याचिका लगाकर 1 जनवरी 2006 से 31 अगस्त 2008 तक की 32 माह की छठे वेतनमान की एरियर राशि देने की माँग की गई थी। उच्च न्यायालय द्वारा पेंशनरों के हित में निर्णय लेने के बाद भी राज्य सरकार ने पेंशनरों को एरियर राशि नहीं दी। इस कारण पेंशनर्स एसोसिएशन ने उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका लगा दी थी। तब से उस पर तारीख पर तारीख मिल रही है।
इसी प्रकार पेंशनर एसोसिएशन ने छठें वेतनमान की एरियर राशि देने के उच्च न्यायालय के आदेश के आधार पर पेंशनरों के सातवें वेतनमान की जनवरी 2016 से मार्च 2018 तक 27 माह की एरियर राशि भी पेंशनरों को नहीं देने पर उच्च न्यायालय में याचिका लगा दी है। उच्च न्यायालय द्वारा 27 जनवरी 2021 को याचिका स्वीकार भी कर ली है। किन्तु राज्य सरकार एरियर राशि नहीं देने पर अड़ी है और उच्च न्यायालय से तारीख पर तारीख ले रही है!
राज्य सरकार द्वारा पेंशनरों के साथ किए जा रहे भेदभाव का एक और उदाहरण देखिए। केन्द्र सरकार ने 13 नवम्बर 2017 को मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को पत्र जारी कर पेंशनरों के हित में निर्देश भी जारी किए थे। उसके अनुसार केन्द्र सरकार के गृह विभाग ने 13 नवम्बर 2017 को पेंशनर्स एसोसिएशन मध्यप्रदेश भोपाल को चिट्ठी लिखकर धारा 49 के उन्मूलन की जानकारी भी दे दी थी। इस पत्र की प्रतिलिपि उन्होंने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव को भी दी थी। इसके बावजूद दोनों राज्य इस अति महत्वपूर्ण पत्र को दबाकर बैठ गए हैं। मध्यप्रदेश पेंशनर्स एसोसिएशन द्वारा अनेक बार राज्य सरकार को इस पत्र का हवाला देते हुए धारा 49 के उन्मूलन की चर्चा करते हुए छत्तीसगढ़ से सहमति नहीं माँगने का अनुरोध किया था, किन्तु राज्य सरकार के कानों पर जूं नहीं रैंगी ! इसके साथ ही यह भी उल्लेखनीय है कि धारा 49 यदि लागू भी होती है तो वह सन् 2000 के पहले सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों पर लागू होगी! इसके बाद सेवानिवृत्त होने वाले किसी भी कर्मचारी पर यह लागू नहीं होगी। इस महत्वपूर्ण बिन्दू को भी राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी घोलकर पी गए हैं।
मध्यप्रदेश के अनेक पेंशनर्स एसोसिएशनों द्वारा समय-समय पर सैकड़ो बार पेंशनरों के साथ पिछले 24 साल से हो रहे अन्याय को बंद कर न्याय दिलाने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री, वित्त मंत्री, मुख्य सचिव और वित्त सचिव को पत्र भेजकर और मिलकर निवेदन किया, किन्तु उसका कोई सकारात्मक परिणाम अभी तक नहीं मिला है। प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव दिसम्बर 2023 से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने है। उनसे आशा है कि वे पेंशनरों की पुकार को सुनेंगे और उन्हें न्याय दिलायेंगे !
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